दो-तिहाई प्रवासी कामगार शहरों को लौटे, गांवों में कुशल कारीगरों के लिए काम की खासी कमी

शोध में यह भी पाया गया कि प्रवासी कामगारों को अपने गांवों में लौटने पर छोटी-मोटी मजदूरी करने को ही मिली। इसका मतलब है कि गांवों में कुशल कारीगरों के लिए काम की कमी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 09:06 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 09:09 PM (IST)
दो-तिहाई प्रवासी कामगार शहरों को लौटे, गांवों में कुशल कारीगरों के लिए काम की खासी कमी
दो-तिहाई प्रवासी कामगार शहरों को लौटे, गांवों में कुशल कारीगरों के लिए काम की खासी कमी

नई दिल्ली, प्रेट्र। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन में अपने गृह नगरों और राज्यों को लौटे प्रवासी मजदूरों और कामगारों में से करीब दो-तिहाई लोग शहरों को वापस लौट आए हैं या फिर वह अपने काम पर लौटने के बारे में सोच रहे हैं। जबकि गांवों में कुशल कामगारों के लिए उनके स्तर के काम की कमी है। यह जानकारी एक नए शोध में दी गई है जोकि 4,835 परिवारों पर किए गए सर्वे पर आधारित है।

शोध में बताया गया है कि 11 राज्यों के 48 जिलों में 24 जून से आठ जुलाई तक यह सर्वे किया गया है। 29 फीसद प्रवासी मजदूर जो अपने गांवों को लौट गए थे, वह अब शहरों को लौट आए हैं। जबकि 45 फीसद श्रमिक शहरों को वापस लौटना चाहते हैं। शोध में बताया गया है कि गांवों में कुशलता वाले रोजगार की कमी है। इसीलिए करीब दो-तिहाई श्रमिक रोजगार के लिए शहरों को या तो लौट गए हैं या फिर लौटने की इच्छा रखते हैं। शोध में यह भी पाया गया कि प्रवासी कामगारों को अपने गांवों में लौटने पर छोटी-मोटी मजदूरी करने को ही मिली। इसका मतलब है कि गांवों में कुशल कारीगरों के लिए काम की कमी है।

43 फीसद परिवार खानपान में कर रहे कटौती

शोध में यह भी पाया गया कि हर चार परिवारों में से एक परिवार (24 फीसद प्रवासी कामगार) अपने बच्चों को स्कूल से निकालने के बारे में सोच रहा है। वहीं 43 फीसद परिवार खानपान में कटौती कर रहे हैं। जबकि 55 फीसद का कहना है कि वह खानपान में कटौती करने के बारे में सोच रहे हैं। उनकी खानपान की जरूरतें बहुत हद तक सरकारी वितरण प्रणाली पर निर्भर हैं, इसीलिए इसमें बढ़ोतरी से लोगों को खानेपीने का सामान बाहर से कम खरीदना पड़ा। आर्थिक संकट से जूझ रहे इन परिवारो ने अपने कीमती सामान गिरवी रखना पड़ा। साथ ही 15 फीसद परिवार अपने पालतू पशुओं को बेचकर अपने परिवार को पाल रहे हैं।

इस शोध को दो संस्थानों ने अंजाम दिया है। आगा खान ग्रामीण समर्थन कार्यक्रम ने अनलॉक के असर का अध्ययन किया। दूसरी ओर सामाजिक विकास पर काम करने वाले ग्रामीण सहारा, आइ-शिक्षण, प्रदान, साथी-अप, सेवा मंदिर एंड ट्रांसफॉरमेशन रूरल इंडिया फाउंडेशन ने इसका अध्ययन किया है।

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