Madhya Pradesh : जिस मिल में करती थीं काम, वहीं की मशीन खरीद मालिक बनीं आदिवासी महिलाएं

मीना राहंगडाले के घर मवेशी बांधने की जगह पर मशीन लगाई गई और काम शुरू हो गया। राइस मिल संचालन में मशीन चलाने के अलावा धान खरीदी चावल बिक्री आदि का काम भी देखना होता है। अतिरिक्त अन्य लोगों की सेवाएं भी ली जा रही हैं।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sat, 09 Jan 2021 04:30 PM (IST) Updated:Sat, 09 Jan 2021 05:21 PM (IST)
Madhya Pradesh : जिस मिल में करती थीं काम, वहीं की मशीन खरीद मालिक बनीं आदिवासी महिलाएं
महिलाओं ने पहले ग्रामीण आजीविका मिशन से मिले मार्गदर्शन से स्व-सहायता समूह 'योग्यता' बनाया।

गुनेश्वर सहारे, जबलपुर। कोरोनाकाल में आपदा से घबराए बिना सामूहिक प्रयास से जीवन में बदलाव लाने का प्रेरक करिश्मा कर दिखाया है 14 आदिवासी महिलाओं ने। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की बिरसा तहसील के छोटे से गांव चिचगांव की इन महिलाओं ने उद्यमिता का उदाहरण पेश करने के साथ न केवल खुद की आमदनी बढ़ाने का जतन कर लिया बल्कि अब वे कई अन्य लोगों को रोजगार दे रही हैं। महिलाएं जिस राइस मिल में काम करती थीं, कोरोना काल में उसकी मशीन खरीदकर खुद की मिल स्थापित कर ली। यह उद्यमिता उनके सहयोग और सहकार की भावना से उपजी और अब सबके सपने भी साकार करेगी। इन महिलाओं ने पहले ग्रामीण आजीविका मिशन से मिले मार्गदर्शन से स्व-सहायता समूह 'योग्यता' बनाया।

इसकी अध्यक्ष बनीं मीना राहंगडाले

वे बताती हैं कि कोरोनाकाल में लॉकडाउन के कारण गांव से 12 किमी दूर बिरसा में काम के लिए जाने वाली महिलाओं का रोजगार छिन गया था। राइस मिल में काम करने वाली महिलाएं एकत्र हुई और खुद का रोजगार स्थापित करने का मन बनाया। यह बात भी पता थी कि वे जिस राइस मिल में काम करती थीं, उसका मालिक मशीन बेचना चाहता था।

सदस्य वर्षा राहंगडाले ने मशीन खरीद राइस मिल शुरू करने की तरकीब सुझाई। समूह में मशीन खरीदने और खुद की राइस मिल चलाने पर सहमति बनी। इस काम के लिए सभी ने एकजुट होकर बचत के रपये जमा किए। 14 महिलाओं ने 40-40 हजार रपये प्रति सदस्य यानी 5.6 लाख रपये एकत्र कर लिए। समूह ने साढ़े पांच लाख रपये का ऋण बैंक से लिया। आजीविका मिशन ने इस काम में मदद की।

समूह के अतिरिक्त अन्य लोगों की भी ली जा रही हैं सेवाएं 

मीना राहंगडाले के घर मवेशी बांधने की जगह पर मशीन लगाई गई और काम शुरू हो गया। राइस मिल संचालन में मशीन चलाने के अलावा धान खरीदी, चावल बिक्री आदि का काम भी देखना होता है। इसके लिए समूह के अतिरिक्त अन्य लोगों की सेवाएं भी ली जा रही हैं। छह लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है। समूह में मीना और वर्षा के अलावा कविता, खेलन, यशोदा, रेखा, नानन, लक्ष्मी, हीरन, गायत्री, रेखा, गीता शामिल हैं।

खर्च काटकर 2.87 लाख रुपये धान की मिलिंग से प्राप्त हुए 

बीते सात महीने में कोरोना काल होने और काम-धंधा पूरी गति से न चलने के बावजूद खर्च काटकर 2.87 लाख रुपये धान की मिलिंग से प्राप्त हो चुके हैं। सदस्यों ने अभी इसमें से कुछ नहीं लिया है। आमदनी का बंटवारा भी नहीं हुआ है। पहला उद्देश्य है कि मशीन के लिए लिया गया ऋण चुका दिया जाए। शुरआती दौर की आय से भी अनुमान है कि स्थितियां अनुकूल होते ही पहले के मुकाबले अधिक आय होगी। जाहिर है सपने भी पूरे होंगे और आत्मविश्वास कई गुना बढ़ेगा।

बालाघाट में आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश बेदुआ ने बताया कि कोरोना काल में महिलाओं ने रोजगार करने का मन बनाया था। महिलाओं ने खुद अपने पास की आधी राशि जमा की। साथ ही ऋण लेकर राइस मिल का संचालन शुरू कर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर रही हैं।

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