आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के बैंक खातों से पुलिस ले रही लाल आतंक की पैठ की थाह

आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के बैंक खाते इलाके के लोगों की सक्रियता सरकारी योजनाओं में भागीदारी और वहां होने वाले उत्सव व समारोह को संकेतक के तौर पर इस्तेेमाल कर पुलिस नक्सलियों की दहशत का आकलन करती है।

By Monika MinalEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 12:00 AM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 06:02 AM (IST)
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के बैंक खातों से पुलिस ले रही लाल आतंक की पैठ की थाह
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के बैंक खातों से पुलिस ले रही लाल आतंक की पैठ की थाह

जगदलपुर (अनिल मिश्रा)। छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलवाद तेजी से सिमट तो रहा है, लेकिन किस इलाके में अब भी कितना खतरा है, यह जानने के लिए पुलिस ने कई संकेतक बनाए हैं। इसमें सबसे प्रमुख है आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के बैंक खाते, जिनकी मदद से पुलिस इस बात की थाह लेती है कि किस इलाके में नक्सली अब भी कितने मजबूत हैं। इनके अलावा उस इलाके के लोगों की सक्रियता, सरकारी योजनाओं में भागीदारी, वहां होने वाले उत्सव व समारोह आदि ऐसे संकेतक हैं, जिनके जरिये पुलिस नक्सलियों की दहशत का आकलन करती है। दंतेवाड़ा एसपी डा. अभिषेक पल्लव ने मनोविज्ञान में एमडी किया है।

नक्सल इलाके में तैनाती को उन्होंने अपने ज्ञान के आधार पर प्रयोग में लिया है, जिसके बेहतरीन नतीजे दिख रहे हैं। एसपी ने बताया कि दंतेवाड़ा जिले में पुलिस लोन वर्राटू यानी घर वापसी अभियान चला रही है। इसके तहत हर दो-चार दिन में नक्सली आत्मसमर्पण करने को आ रहे हैं। इससे साफ है कि अब उनके कैडर के लोग भी हिंसा से ऊब चुके हैं। जिस इलाके के नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं, वहां कितनी नक्सली दहशत बची है, इसका पता लगाने संकेतक तय किए गए हैं। लोन वर्राटू अभियान में पुलिस नक्सलियों व उनके स्वजन की भरपूर मदद करती है। उनके गांव जाकर स्वजन को राशन, दवाएं व अन्य जरूरत की वस्तुएं देकर अपने पक्ष में करती है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का बैंक खाता, पैन कार्ड, आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र आदि भी बनवाती है। उनके लिए जारी प्रोत्साहन राशि को खाते में डालती है। अगर खाते से रकम निकलती रहती है, तो पुलिस मान लेती है कि उस इलाके में नक्सलियों का खतरा कम हो गया है। इसी आधार पर पुलिस ने इस साल 15 अगस्त को पहली बार 15 गांवों को नक्सलमुक्त घोषित किया है।

यह हैं संकेतक

एसपी डा. पल्लव बताते हैं कि इलाके में वाहनों की बिक्री का बढ़ जाना, आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का बाजार आना-जाना, लोन, पेंशन आदि के लिए बैंक जाना, आधार व पैन कार्ड बनवाने के लिए घर से निकलना आदि इस बात का संकेत होता है कि वहां नक्सलवाद खत्म हो रहा है। बस्तर के आइजी सुंदरराज पी ने बताया, 'किसी इलाके में नक्सलवाद कितना बचा है, इसे जानने के लिए कई पैरामीटर हैं। सुरक्षा के लिहाज से तो यह देखते ही हैं कि पहले और अब वारदात में कितनी कमी आई है, सामाजिक-आर्थिक मापदंड भी देखा जाता है। किसी इलाके में जीवनस्तर में कितना सुधार आया, लोग नौकरी या पढ़ाई में कितनी रुचि ले रहे हैं, यह सब कुछ देखा जाता है। इसी से पता चलता है कि किसी जगह पर नक्सलवाद कितना हावी है।'

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