तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी, इस बार जून में मैं मायके नहीं आ पाऊंगी

इस बार जून बड़ी मुश्किलें लेकर आया है। हर वर्ष छुट्टियां आते ही अपने मायके की तरफ जाने वाले कदमों में इस बार कोविड ने बेडि़यां डाल दी हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 07:16 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 08:33 AM (IST)
तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी, इस बार जून में मैं मायके नहीं आ पाऊंगी
तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी, इस बार जून में मैं मायके नहीं आ पाऊंगी

वंदना वालिया बाली।

बचपन की वो सारी यादें,

दिल में मेरे समायी हैं।

बड़े लाड से पाला,

कह के कि तू पराई है।

संस्कार मुझ को दिए वो सारे,

हर दर्द सिखाया सहना।

जिसके आंचल में बड़े हुए

आ गया उसके बिन रहना।

इंतजार में बीत जाते हैं,

यूं ही महीने ग्यारह।

जून के महीने में जा के,

देखती हूं चेहरा तुम्हारा।

कितने भी पकवान बना लूं,

कुछ भी नहीं अब भाता है।

तेरे हाथ का बना खाना,

मां बहुत याद आता है।

शरीर जरूर बूढ़ा होता है,

पर मां-बाप नहीं होते हैं।

जब बिटिया ससुराल से आती है,

तो खुशी के आंसू रोते हैं।

तेरे साये में आ के मां मुझ को मिलती है जन्नत

खुद मशीन सी चलती हो, मुझ को देती है राहत,

मां कहती है- क्या बनाऊं, बता तुझे क्या खाना है?

पापा कहते - बाहर से क्या लाना है?

जो ग्यारह महीने भाग-दौड़ कर हर फर्ज अपना निभाती है, जून का महीना आते ही फिर बच्ची बन जाती है।

ग्यारह महीने ख्वाहिशें मन के गर्भ में रहती हैं,

तेरे पास आते ही मां जन्म सभी ले लेती हैं।

देश पे है विपदा आयी

मैं भी फर्ज निभाऊंगी

इस बार जून के महीने में मैं मायके नहीं आ पाऊंगी।

तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी,

इस बार जून के महीने में मां, मैं मायके नहीं आ पाऊंगी।

श्वेता नाहर की लिखी यह कविता एक मेसेज में सुनी तो आंखें नम हो गईं। लगा यही हाल तो है इस जून में अधिकांश बेटियों का। मायके से मीलों दूर रह रही बेटियां जहां हर साल बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां शुरू होते ही सामान तैयार कर लेती थीं, वे इस बार कोविड 19 से सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए मायके नहीं जा पा रही हैं।

क्या उमड़ रहा है इनके दिलों में? क्या मिस कर रही हैं, इस वक्त सबसे ज्यादा? इसी बात को टटोला हमने, आइए आप भी जानें...

मौसम भी सुहाना नहीं लगेगा

अंबाला कैंट निवासी निशा शर्मा गर्मी की छुट्टियों में शिमला स्थित अपने मायके जाती रही हैं। वह बताती हैं कि कई साल से चली आ रही यह रुटीन इस बार टूट जाएगााक्योंकि एक शहर से दूसरे में जाने में खतरा तो है ही साथ ही क्वारेंटाइन के नियमों का पालन करने का चक्कर भी है।

निशा के पेरेंट्स यानी शिमला के फिंगास एस्टेट निवासी एके गर्ग और राज कुमारी का कहना है कि बेटी के साथ अपने नाती-नातिन की इंतजार भी उन्हें रहता है। सब के आने से शिमला के मौसम के साथ-साथ घर का माहौल भी मनभावन हो जाता है। इस बार सब सूना ही रह जाएगा।

सुरक्षा के लिए इस जून सहना होगा सूनापन

गुरुग्राम की आरती शर्मा कपिला के माता-पिता चंडीगढ़ में रहते हैं। वह बताती हैं कि जून में मायके जाना तो हर साल का मानो नियम सा बन गया था। हालांकि बीच में भी कभी-कभार चक्कर लग जाता है लेकिन जून की छुट्टियों में बच्चों को भी ननिहाल जाने की आदत पड़ चुकी है। वह तो हर साल पूरी छुट्टियां नानी के पास ही बिताता रहा है, वह और भी ज्यादा मायूस है वहां न जा पाने के कारण।

 

मेरी मां वीना शर्मा कैंसर सर्वाइवर हैं और पापा राज कुमार भी वृद्धावस्था की चुनौतियां तो झेल ही रहे हैं। ऐसे में मुझे उनकी फिक्र रहती है। इस बार माहौल ऐसा बन गया है कि उनके पास जाना संभव नहीं हो पा रहा। किसी तरह उनके पास पहुंचने का तरीका निकाल भी लें, तो यह डर सताता है कि कहीं रास्ते से संक्रमण उनके घर में न पहुंचा दें। एक मात्र सहारा वीडियो कॉलिंग का नजर आता है।

दूसरी ओर वीना शर्मा कहती हैं कि बहुत बुरा लग रहा है कि इस महीने का वो आकर्षण, वो रौनक नहीं होगी। कहते हैं कि असल से सूद ज्यादा प्यारा होता है, इसलिए नाती अनीश को ज्यादा मिस कर रही हूं। लेकिन कोरोना के कारण स्थिति को देखते हुए सुरक्षित रहने के लिए इस बार जून का सूना पन सहना होगा।

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