सोने की बारीक कारीगरी से कांच पर उभरता 'थेवा आर्ट', दोबारा पहचान दिलाने की कोशिश शुरू

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले को लोग अफीम की पैदावार की वजह से ही ज्यादा जानते हैं लेकिन यहां का हस्तशिल्प भी बहुत ख्यात है। कांच पर सोने की कारीगरी वाली थेवा आर्ट को दोबारा पहचान दिलाने की कोशिश शुरू हुई है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sat, 16 Jan 2021 01:52 PM (IST) Updated:Sat, 16 Jan 2021 01:52 PM (IST)
सोने की बारीक कारीगरी से कांच पर उभरता 'थेवा आर्ट', दोबारा पहचान दिलाने की कोशिश शुरू
थेवा आर्ट को ऑनलाइन बाजार से जोड़ने की तैयरी की जा रही है।

मंदसौर, आलोक शर्मा। मंदसौर जिले में गुमनामी में जा रही हस्तशिल्प कला को भी अब एक ब्रांड बनाने की तैयारी की जा रही है। इसमें सबसे प्रमुख थेवा आर्ट है। कांच पर सोने की कारीगरी के रूप में प्रसिद्ध यह प्राचीन हस्तशिल्प कला अब पहचान के संकट से गुजर रही है। पहले तो वैसे ही कद्रदान नहीं मिल रहे हैं और बाजार भी नहीं होने से इसके कारीगर गुमनाम जैसे ही हो रहे हैं। जिला प्रशासन थेवा आर्ट के साथ ही दूसरे हस्तशिल्प कला को पूरे विश्व से रूबरू कराने के लिए ऑनलाइन बाजार से जोड़ने जा रहा है। वहीं जिले में लगने वाली प्रदर्शनियों में अब बाहर के बजाय स्थानीय स्तर पर बनने वाली वस्तुओं को ही रखा जाएगा।

मंदसौर जिले की हस्तशिल्प में प्रमुख रूप से थेवा आर्ट, खिलचीपुरा में बुनकरों द्वारा चादर व अन्य कपड़े तैयार करने सहित बर्तनों पर मीनाकारी है। इन सभी को अभी तक एक अच्छा प्लेटफार्म नहीं मिलने से कोई पहचान नहीं बन पाई है। अब प्रशासन ने तय किया है कि महेश्वर की साड़ियां, बाग की प्रिंट जैसा ही जिले की हस्तशिल्प को एक ब्रांड की तरह प्रस्तुत किया जाएगा। इसके लिए कलाकारों को आíथक रूप से मदद की जाएगी और उन्हें बाजार भी उपलब्ध कराएंगे। हस्तशिल्प को पूरे विश्व तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनियों से भी संपर्क कर इनकी मार्केटिंग करने की पूरी तैयारी कर ली गई है।

बेल्जियम के कांच पर ही होती है सोने की कारीगरी

थेवा आर्ट मूलत: प्रतापगढ़ से निकली हुई कला है। पर अब इसके कारीगर मंदसौर में भी रहने लगे हैं और मप्र सरकार से पुरस्कार भी ले चुके हैं। इसमें रंग बिरंगे बेल्जियम कांच के ऊपर सोने से कारीगरी कर गहने बनाए जा रहे हैं। राष्ट्रपति व शिल्प गुरू पुरस्कार विजेता गिरीश राज सोनी कहते हैं कि कांच व सोने की जुगलबंदी से बनने वाले आभूषणों की तरफ अब लोगों का रुझान नहीं है। वहीं इसका प्रचार-प्रसार भी पहले जैसा नहीं रहा है। प्रतापगढ़ में लगभग 400 साल पहले महाराजा सावनसिंह के समय नाथुराजजी सोनी ने इस कला का अविष्कार किया था। तभी से उनकी पीढ़ियां इसे सहेजे हुए हैं। पर अब इनके सामने भी यह समस्या आ रही है कि समय ज्यादा लगने और दाम कम मिलने के चलते नई पीढ़ी इससे अलग हो रही है। एक आइटम तैयार करने में चार से पांच दिन लगते हैं। बहुत ही बारीकी से सारा काम हाथ से ही करना पड़ता है।

डाक टिकट भी जारी कर चुकी है भारत सरकार

गिरीश राज सोनी ने वर्ष 2002 में आठ इंच डायमीटर की थेवा आर्ट में एक प्लेट बनाई है। इसमें राजा द्वारा हाथी पर बैठकर शेर के शिकार को जाने से लेकर शेर का मारकर लाने तक की कहानी उकेरी गई थी। इस प्लेट को तैयार करने में एक माह से अधिक समय लगा था। इसी प्लेट पर गिरीश राज को शिल्प गुरू पुरस्कार मिल चुका है। वहीं भारत सरकार ने इसी प्लेट पर पांच रुपये का डाक टिकट भी जारी किया था। सोनी को राष्ट्रपति पुरस्कार, शिल्प गुरु पुरस्कार, राज्य पुरस्कार के साथ यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत किया गया है। पत्नी उषा सोनी को भी महारत है।

मनोज पुष्प, कलेक्टर: मंदसौर जिले के सभी प्रमुख हस्तशिल्पों को अब प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रोजेक्ट चालू कर दिया है। इसमें थेवा आर्ट, बर्तनों पर मीनाकारी, लच्छे तैयार करने सहित सभी तरह को शामिल करेंगे। पूरे विश्व का बाजार उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॅार्म से जोड़ेंगे। अब जिले में लगने वाली प्रदर्शनियों में जिले के ही कलाकारों को शामिल करेंगे। आíथक सहायता दिलाएंगे व नए लोग सीखना चाहेंगे तो उन्हें भी ट्रेनिंग दिलाएंगे।

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