किसी भी शिक्षा नीति के तीन प्रमुख लक्ष्य, छात्र-हित; ज्ञान की प्रगति और राष्ट्र निर्माण

किसी भी शिक्षा नीति के तीन प्रमुख लक्ष्य होने चाहिए- छात्र-हित ज्ञान की प्रगति और राष्ट्र निर्माण। एनईपी 2020 तीनों ही लक्ष्यों का एक साथ संधान करने में सक्षम है। इसमें वर्तमान समय की जरूरतों को समझने और उनके अनुरूप शिक्षा का ढांचा बनाने की विधिवत तैयारी दिखती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 10:06 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 10:07 AM (IST)
किसी भी शिक्षा नीति के तीन प्रमुख लक्ष्य, छात्र-हित; ज्ञान की प्रगति और राष्ट्र निर्माण
योग्य व सक्षम अकादमिक नेतृत्व लाया जाए तो यह कार्य असंभव नहीं।

प्रो. निरंजन कुमार। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) की पहली वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिलकुल ठीक कहा कि राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में एनईपी की बड़ी भूमिका होगी। निसंदेह भारतीयता की महान विरासत से परिपूर्ण, महात्मा गांधी के विजन से अनुप्राणित और डा आंबेडकर के दिए संविधान से प्रतिबद्ध एनईपी आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम है। इसमें एक ओर हमारी शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान कमियों को दूर करने के प्रविधान हैं, तो दूसरी ओर 21वीं सदी के बदलते हुए भारत की आंतरिक और वैश्विक चुनौतियों का सामने करने की तैयारी भी। चरित्र निर्माण या अच्छे व्यक्ति के निर्माण के लिए एनईपी विशेष सजग है।

यही नहीं, विद्यार्थी अपनी संभावनाओं-क्षमताओं को पूर्ण साकार कर सकें, इसके लिए स्कूली शिक्षा, उच्चतर शिक्षा से लेकर प्रोफेशनल शिक्षा तक भारतीय भाषाओं में अध्यापन पर बल दिया गया है। अनेक प्रतिभाएं अभी सिर्फ अंग्रेजी माध्यम के कारण पिछड़ जाती हैं। यूनेस्को की 2008 की एक रिपोर्ट के अनुसार मातृभाषा में सीखना आसान होता है। मातृभाषा में बच्चा चीजों को समझता है जबकि इतर भाषाओं में उसे रटना पड़ता है। यह उत्साहजनक है कि अपने यहां आठ राज्यों में तमिल, तेलुगु, मराठी, बांग्ला और हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई आगामी सत्र से शुरू होने जा रही है।

सबका साथ, सबका विकास के लिए सबको शिक्षा की महत्वाकांक्षी योजना एनईपी का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। वर्तमान में राइट टू एजुकेशन आठवीं कक्षा और 14 साल तक के बच्चों के लिए है। एनईपी में एजुकेशन फार आल का लक्ष्य है, जिसमें माध्यमिक स्तर तक 18 वर्ष के सभी बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क होगी।

आत्मनिर्भर भारत का संबंध रोजगार से भी है। दुर्भाग्य से मैकाले माडल पर आधारित वर्तमान प्रणाली में किताबी ज्ञान पर जोर है, जो नौकरी ढूंढने वाले बेरोजगारों की फौज तैयार कर रही है। एनईपी में महात्मा गांधी के श्रम-सिद्धांत के अनुरूप स्कूल से लेकर कालेज स्तर पर पाठ्यक्रम से इतर क्रियाकलापों, स्किल डेवलपमेंट और वोकेशनल ट्रेनिंग पर भी बल है। युवाओं को यह स्वावलंबन की दिशा में ले जाएगा। इससे रोजगार देने वालों यानी स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा।

एनईपी में स्ट्रीम की वर्तमान खांचेबंदी के खात्मे से अब साइंस या कामर्स का छात्र आर्ट्स-सोशल साइंस के विषय भी पढ़ सकेगा। इससे छात्रों में एक बहुर्विषयक दृष्टि विकसित होगी। स्नातक स्तर पर मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट स्कीम अथवा हाल में स्थापित एकेडेमिक बैंक आफ क्रेडिट्स अन्य क्रांतिकारी प्रविधान हैं। इसके अलावा शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन में टेक्नोलाजी पर बल दिया जाएगा। दीक्षा, स्वयं, ई-पीजी पाठशाला या विद्वान आदि डिजिटल प्लेटफार्म इसमें सहायक होंगे। स्वास्थ्य, कृषि, जल और जलवायु परिवर्तन संबंधी योजना-प्रबंधन में आर्टििफशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिकतम तकनीक को बढ़ावा देने पर भी जोर है।

एनईपी की चुनौतियां भी हैं। गुणवत्तापरक शिक्षकों के लिए नेट/जेआरएफ परीक्षा और पीएचडी प्रवेश परीक्षा में बदलाव की जरूरत है। पाठ्यक्रम पुनर्रचना और डिजिटल डिवाइड अन्य चुनौतियां हैं। बजट की भी समस्या होगी। शिक्षा पर जीडीपी के छह प्रतिशत के बराबर व्यय का लक्ष्य है। लेकिन यह भी ज्यादा नहीं। अन्य वैकल्पिक संसाधन भी तलाशने पड़ेंगे।

भारत लोकल से ग्लोबल, रोजगार से अनुसंधान और चरित्र निर्माण से भौतिक उपलब्धि तक हर दृष्टि से एनईपी 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने वाला एक दूरदर्शी अभिलेख है। शिक्षण-संस्थानों के स्तर पर इसका क्रियान्वयन एक चुनौती अवश्य है, लेकिन योग्य व सक्षम अकादमिक नेतृत्व लाया जाए तो यह कार्य असंभव नहीं।

[प्रख्यात शिक्षाविद]

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