मान-मनौवल, ताकत-तेवर, पुरस्कार-तिरस्कार के बीच हो ही गया शिवराज सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार

मंत्रिमंडल विस्तार जिस तरह से एक-एक दिन आगे टलता जा रहा था पहली बार यह अनुभव किया गया कि राजनीति में वास्तव में एक-एक दिन का महत्व है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 12:24 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 01:42 PM (IST)
मान-मनौवल, ताकत-तेवर, पुरस्कार-तिरस्कार के बीच हो ही गया शिवराज सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार
मान-मनौवल, ताकत-तेवर, पुरस्कार-तिरस्कार के बीच हो ही गया शिवराज सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार

मध्य प्रदेश [आशीष व्यास]। मान-मनौवल, ताकत और तेवर, पुरस्कार व तिरस्कार के बीच बीते गुरुवार आखिरकार शिवराज सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हो ही गया। भारतीय राजनीति में आमतौर पर मंत्री पद के लिए संतुलन-समन्वय का सिद्धांत चुनाव जीतने के बाद लागू होता है। यदि कहीं कुछ आधारभूत असंतोष होता भी है, तो गुटीय समीकरणों के आधार पर सुलह कर कलह दूर कर ली जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश में इस बार का राजनीतिक नवाचार, कई अर्थो में बुनियादी बदलाव का नया केंद्र बनकर उभरा है।

मंत्रिमंडल विस्तार जिस तरह से एक-एक दिन आगे टलता जा रहा था, पहली बार यह अनुभव किया गया कि राजनीति में वास्तव में एक-एक दिन का महत्व है। पांच साल में से करीब डेढ़ साल कांग्रेस सरकार के खाते में दर्ज हैं। उसके बाद 100 दिन की शिवराज सरकार भी हम देख चुके हैं। सरकार को अब शासन का सपना-संकल्प पूरा करना होगा। गुरुवार को शपथ लेकर सभी नए मंत्री आजीवन पेंशन, राजधानी में सरकारी आवास, गाड़ी, मुफ्त यात्र और नौकर-चाकर जैसी सुविधाओं के हकदार हो गए हैं।

सुविधाओं-अधिकारों की यह परिभाषा बहुत स्पष्ट है, लेकिन जिम्मेदारियों-जवाबदेहियों से जुड़ी जानकारियां क्या किसी शपथ-पत्र में शब्द समेट पाती हैं? क्या चुने गए मंत्री यह दावा कर पाते हैं कि वे कैसे और कितना काम करेंगे? दूरदर्शी रणनीतिकार की तरह क्या उनके पास कोई रोड मैप है? ऐसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि विस्तार के बाद आकार लेने वाले मंत्रिमंडल में अधिकांश सदस्य स्नातक, स्नातकोत्तर और एलएलबी हैं।

कुछ एमबीए, पीएचडी और डॉक्टर भी हैं। दुर्लभ संयोग यह भी है कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल में सभी सदस्यों का पेशा कृषि है। यानी सभी किसान हैं। उम्मीद की जा सकती है कि हमेशा राजनीति का मुद्दा बनते किसान अब ज्यादा परेशान नहीं होंगे। खेत-खलिहान से जुड़ी सभी समस्याएं राजनीतिक चातुर्य से प्राथमिकता सूची में दर्ज हो जाएंगी। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होगा? इसलिए कि यह जरूरी नहीं कि परंपरागत किसान परिवार से संबंध रखने वाला सर्वश्रेष्ठ कृषि मंत्री हो! या फिर पेशे से चिकित्सक स्वास्थ्य विभाग की बुनियादी बीमारी को तत्काल ठीक कर पाए! जरूरी तो यह भी नहीं है कि एमबीए करने वाला अपने प्रबंधकीय कौशल से, अपने विभाग को उन्नति के नए आंकड़ों तक पहुंचा दे!

अब यह शोध का विषय हो सकता है कि शैक्षणिक योग्यता और व्यावहारिक समझ के अंतर को नीति-निर्धारक कैसे आंकते-समझते हैं। यदि बुनियादी मसलों को ही सुलझाया नहीं जा पा रहा है तो बहुत स्पष्ट है कि अब मंत्रिमंडल में भी विषय-विशेषज्ञों की आवश्यकता है। यह सही है कि किताबी पढ़ाई या डिग्री से किसी की क्षमता का आकलन नहीं किया जा सकता है। फिर भी उन्हें उनकी रुचि के अनुसार दक्ष तो बनाया ही जा सकता है।

टाइगर स्टेट में टाइगर की राजनीति : 

मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों टाइगर-टशन चल रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान राजभवन के बाहर खड़े होकर भाजपा से राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने विरोधियों पर निशाना साधा और कहा, ये ना भूलें, टाइगर अभी जिंदा है! इसी बात को सिंधिया ने भाजपा कार्यालय में भी दोहराया। तब दिग्विजय सिंह और कमल नाथ का नाम लेकर कहा कि वो ये ना भूलें कि टाइगर अभी जिंदा है! बात खत्म फिर भी नहीं हुई।

शुक्रवार को भी उन्होंने कहा, चील उन्हें नोचने को तैयार बैठी है, मगर वो ये ना भूलें कि टाइगर अभी जिंदा है! दरअसल यह जुमला पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तब बोलना शुरू किया था जब सत्ता से हटने के बाद वे भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कमल नाथ सरकार पर प्रहार करते थे। अब चर्चा यह है कि यह जुमला शिवराज के लिए शुभ रहा है। वे मध्य प्रदेश की राजनीति के टाइगर बनकर उभरे और चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। 

पिछले कुछ महीनों से चर्चा से बाहर हो गए इस जुमले को अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिंदा कर दिया है। कांग्रेसियों के तेवर देख लगता नहीं कि राज्य में राजनीति का केंद्र बना टाइगर जल्द जंगल में वापस जाएगा! पलटवार में पहले दिग्विजय सिंह सामने आए। ट्वीट कर कहा, सिंधियाजी जंगल का कानून भूल रहे हैं, जहां एक ही टाइगर रहता है। देखना ये है कि कौन सा टाइगर जिंदा रहता है। कमल नाथ ने भी चुप्पी तोड़ दी। बोले, देखना होगा कागज का टाइगर है या सर्कस का टाइगर, कौन सा टाइगर अभी जिंदा है।

राजनीतिक बयानों का टाइगर- 

विवाद राज्य की राजनीति में अब लंबा दौर देखेगा। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद उपचुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा इसी बहाने कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की कोशिश भी कर रही है। आकर्षक और आक्रामक शैली में सिंधिया की यह ललकार ग्वालियर-चंबल के बड़े इलाके तक भी पहुंच रही है। आने वाले उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीटें इसी क्षेत्र की हैं। माना जा रहा है कि टाइगर पर सवार होकर शिव-ज्योति का यह प्रकाश भाजपा के लिए उम्मीद का नया उजाला ला सकता है। (संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश)  

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