नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुचारु एवं समग्रता से क्रियान्वयन द्वारा देश की शिक्षा बदलेगी

जिस देश में आज भी इंटरनेट स्पीड और स्मार्ट फोन की उपलब्धता के साथ शिक्षा से जुड़े तमाम संसाधन अविकसित स्तर पर हों वहां शिक्षा क्षेत्र में उठाए गए ये कदम वैश्विक जगत से कदमताल में कितने उपयोगी साबित होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 12:59 PM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 12:59 PM (IST)
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुचारु एवं समग्रता से क्रियान्वयन द्वारा देश की शिक्षा बदलेगी
नई शिक्षा नीति के अब तक की उपयोगिता और भविष्य की राह की पड़ताल आज सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

अतुल कोठारी। यह नए दौर का भारत है। नई तरह की सोच रखता है। दुनिया से कदमताल करने के साथ अपनी परंपरा और मूल्यों को अक्षुण्ण रखना भी इसकी एक अदा है। कभी हम विश्व गुरु थे। हमारे मनीषियों ने दुनिया को ज्ञान का जो उजियारा दिया, उससे दुनिया तो आगे बढ़ी लेकिन वक्त की दौड़ में हम पिछड़ते गए। देश-काल और परिस्थितियां भी इसकी जिम्मेदार रहीं। 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक हम फिर से उठ खड़े होने लगे हैं। किसी देश के समग्र निर्माण में शिक्षा का अहम योगदान होता है।

पुराने जमाने की सोच वाली 1986 में बनी शिक्षा नीति को त्याग कर हमने भविष्य की जरूरतों को ध्यान रख नई शिक्षा नीति लागू की। 29 जुलाई को इसके एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने नई शिक्षा नीति को राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में बड़ी आहुति करार दिया। सही बात है, कोई भी देश जो सीखेगा, वही सिखाएगा और उसी दिशा में उसके आचार-विचार और व्यवहार आगे बढ़ेंगे। कोविड-काल की चुनौतियों के मद्देनजर तमाम सहूलियतों की खूबियों वाली इस शिक्षा नीति का खुलापन और दबावरहित होना सबसे बड़ा गुण है।

भारतीय शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियां कम नहीं है। सबको शिक्षा, सस्ती शिक्षा, गुणवत्ता युक्त शिक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाली शिक्षा आज समय की दरकार है। आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है। युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम के साथ-साथ देश में डिजिटल और टेक्नोलाजी का बुनियादी ढ़ाचा खड़ा करने का काम जोरों पर है। देश की अर्थव्यवस्था को एआइ आधारित बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में ये कदम क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस देश में आज भी इंटरनेट स्पीड और स्मार्ट फोन की उपलब्धता के साथ शिक्षा से जुड़े तमाम संसाधन अविकसित स्तर पर हों, वहां शिक्षा क्षेत्र में उठाए गए ये कदम वैश्विक जगत से कदमताल में कितने उपयोगी साबित होंगे। ऐसे में नई शिक्षा नीति के एक साल पूरे होने पर इसकी अब तक की उपयोगिता और भविष्य की राह की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

किसी भी राष्ट्र की उन्नति में वहां की शिक्षा व्यवस्था की महती भूमिका होती है। इसका स्पष्ट प्रभाव समाज, संस्कृति, राजनीति एवं अर्थव्यवस्था पर परिलक्षित होता है। इसलिए राष्ट्र का निर्माण करने हेतु सबसे पहले वहां की शिक्षा-व्यवस्था को सशक्त, समर्थ एवं राष्ट्रानुकूल बनाने की आवश्यकता होती है। यूनेस्को की डैलर्स समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ‘किसी भी देश की शिक्षा का स्वरूप उस देश की संस्कृति एवं प्रगति के अनुरूप होना चाहिए।’ इसमें एक शब्द ‘प्रकृति’ को भी जोड़ना उचित होगा। तात्पर्य यह है कि किसी भी देश की शिक्षा-व्यवस्था जिस प्रकार की होगी, देश और समाज भी वैसा ही बनेगा। शिक्षा किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। शिक्षा का आधारभूत लक्ष्य चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास है। आज चरित्र का संकट एक प्रकार से विश्व की अधिकतर समस्याओं की जड़ में है। शिक्षा के इस महत्वपूर्ण लक्ष्य के साथ दो और सहायक बातें अपेक्षित हैं। शिक्षा के द्वारा देश एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूíत हो तथा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान प्राप्त हो सके। किसी भी देश के निर्माण हेतु यह तीनों आधारभूत बातें आवश्यक है।

नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व विकास को पूर्व प्राथमिक शिक्षा से ही संज्ञान में लिया गया है। छात्र खेल-खेल में एवं गतिविधियों द्वारा सीखें जिससे उन छात्रों में सृजनात्मकता, रचनात्मकता एवं नवाचार की दृष्टि का विकास हो सके, इस प्रकार के प्रविधान किए गए हैं। चरित्र-निर्माण हेतु भारतीय मूल्यों, संवैधानिक मूल्यों एवं सामुदायिक सेवा आदि का समावेश किया गया है। छात्रों के समग्र विकास हेतु सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा, कौशल विकास का विद्यालयी शिक्षा से ही पाठ्यक्रमों में समावेश की बातें हैं। इस प्रकार छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा प्रदान कर उन्हें रोजगार की याचना करने वाले से रोजगार देने वाला बनाने की संकल्पना पूरी होगी। इससे देश आत्मनिर्भरता की दिशा में भी आगे बढ़ेगा।

शिक्षा पर खर्च किया गया एक डालर अर्थव्यवस्था में 10 से 15 डालर का योगदान देने में सक्षम है। स्कूल में बिताया गया हर साल यानी पढ़ाई के हर बढ़ते स्तर के साथ व्यक्ति को मिलने वाला संभावित वेतन बढ़ता है। दुनिया के सबसे गरीब 46 देशों में यदि 15 से ज्यादा उम्र की 75 फीसद अतिरिक्त आबादी गणित की शिक्षा में कम से ओईसीडी के न्यूनतम मानक तक भी शिक्षा हासिल कर ले, तो उनकी अर्थव्यवस्था अपने आधार से 2.1 फीसद ऊपर उठ सकती है। इससे 10.4 करोड़ लोगों को बेहद गरीबी की सीमा से बाहर लाया जा सकता है। (यूनेस्को 2012)

किसी भी देश के विकास में शोध कार्य का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है, इस हेतु शिक्षा नीति में ‘राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान’ के गठन का प्रविधान किया गया है। छात्रों के समग्र विकास से ही देश एवं समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकेगी एवं राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के समाधान हेतु छात्र सक्षम बनेंगे। किसी भी देश का निर्माण अतीत को विस्मृत करके नहीं किया जा सकता। इस शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा के समावेश के साथ-साथ ई-लर्निंग, आनलाइन शिक्षा आदि के प्रविधान द्वारा प्राचीन एवं आधुनिकता के समन्वय की बात कही गई है। इसी प्रकार विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के साथ आध्यात्मिकता को जोड़ने की बात भी है। इस संबंध में डा राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, ‘समय आ गया है जब अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय ही हमें आण्विक युग में सुरक्षा प्रदान कर विकास की ओर उन्मुख कर सकेगा।’ वास्तव में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में एक सार्थक पहल कही जाएगी।

किसी भी देश का निर्माण मात्र कुछ वर्गो के विकास से संभव नहीं हो सकता। लिहाजा समावेशी शिक्षा अर्थात दलित, पिछड़े-वंचित वर्ग, महिला, शारीरिक दृष्टि से अक्षम तथा गांव-कस्बों, पहाड़ी एवं जनजातीय क्षेत्रों के छात्रों के विकास हेतु भी अनेक कदम उठाने होते हैं, जो इस नई नीति में सुस्पष्ट हैं। स्वतंत्रता पश्चात पहली बार ऐसा हुआ है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु विशेष शिक्षा क्षेत्र की संकल्पना रखी गयी है। साथ ही छात्रओं की शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक विशेष ‘जेंडर समावेशी कोष’ की भी अवधारणा है। देश के विकास में भाषा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। मातृभाषा में शिक्षा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक दृष्टि है। इस नीति में मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषाओं में प्राथमिक से लेकर उच्च एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान करने की केवल बात नहीं गई है, बल्कि शिक्षा नीति के एक वर्ष निमित्त आयोजित कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री ने इंजीनियरिंग की शिक्षा इसी वर्ष से आठ भारतीय भाषाओं में प्रारंभ करने की घोषणा भी की है। 

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