मैकेनिकल फिटर से रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स का फ्लाइंग ऑफिसर बनने का ख्वाब हुआ पूरा

मैकेनिकल फिटर से रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स फ्लाइंग ऑफिसर बनने का तजिंदर कुमार का सफर किसी ख्वाब के हकीकत में तब्दील होने जैसा है। लुधियाना में बीते बचपन सरकारी स्कूल संघर्ष और सफलता के सफर की बातें उन्होंने की साझा...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 21 Sep 2020 02:58 PM (IST) Updated:Mon, 21 Sep 2020 02:58 PM (IST)
मैकेनिकल फिटर से रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स का फ्लाइंग ऑफिसर बनने का ख्वाब हुआ पूरा
रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स फ्लाइंग ऑफिसर तजिंदर कुमार की फाइल फोटो

मिड डे। तजिंदर लुधियाना में बिताए बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘अक्सर लोगों को कहते सुना है कि पैसों से खुशी नहीं खरीदी जा सकती। मैं इस बात से असहमत हूं। मेरे पिता 12 घंटे, हफ्ते में छह दिन और रविवार को आधा दिन काम करते थे। इतनी मेहनत के बावजूद अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण करना उनके लिए मुश्किल था। बचपन में गरीबी इतनी देखी कि लगता है कि उस समय पैसा होता तो शायद हम थोड़े खुशहाल रह पाते।’

लुधियाना के गांव जमालपुर के नजदीक एक छोटी सी बस्ती में पैदा हुए तजिंदर के सपने बड़े थे। वह मैकेनिकल इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन इस राह में सबसे बड़ी अड़चन उनकी गरीबी थी। तजिंदर बताते हैं, ‘मेरे भाई को आठवींकक्षा में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि परिवार की आर्थिक मदद के लिए काम करना जरूरी था। मैं सबसे छोटा था। इसलिए मुझे सरकारी स्कूल में पढ़ाई जारी रखने का मौका मिला। वहां मेज-कुर्सी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहींथीं। मैं जमीन पर बैठने के लिए अपनी टाट साथ लेकर जाता था। वहां गर्मी के मौसम में बेहद गर्मी और सर्दी के मौसम में अत्यधिक ठंड सताती थी।’

जब परिवार के लिए सरकारी स्कूल में पढ़ाई का प्रतिमाह दस रुपए शुल्क देना कठिन हो गया तो तजिंदर को एक पीसीओ बूथ में पार्ट टाइम काम करना पड़ा। तजिंदर याद करते हैं, ‘मैं मां के साथ उपले बनाने के काम आने वाले सड़क पर पड़े गाय के गोबर को एकत्र किया करता था। ऐसे करीब सौ-दो सौ उपले बेचकर हमारी बीस रुपए तक कमाई हो जाती थी। इस तरह तमाम आर्थिक दुश्वारियों से गुजरते हुए मेरी दसवीं तक पढ़ाई हुई।’

पिता ओम प्रकाश धन की कमी के कारण उनकी पढ़ाई बीच में छुड़वाने को मजबूर महसूस करते थे, पर तब तजिंदर ने कहा कि काम करके वह अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाएंगे। तजिंदर कहते हैं, ‘मैंने एक नौकरी शुरू की, जिसमें मुझे प्रतिमाह एक हजार रुपए पारिश्रमिक मिलता था। इस तरह किसी प्रकार मेरी बारहवींतक पढ़ाई पूरी हुई।’

तजिंदर ने लुधियाना में आईटीआई में एक डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया। दो साल के सर्टिफिकेट कोर्स के बाद उन्होंने बतौर मैकेनिकल फिटर एक साल तक काम किया। तजिंदर बताते हैं, ‘मेरी तनख्वाह इतनी कम थी कि उसमें परिवार का गुजारा होना मुश्किल था। इसी दरम्यान एक दुबई की फर्म आईटीआई आई, जिन्हें टेक्नीशियंस की तलाश थी। कुछ राउंड के साक्षात्कार के बाद मेरा चयन हो गया। अगस्त 2003 में मैं दुबई पहुंच गया।’ दुबई में एक हजार दिरहम मिलते थे, जो भारतीय मुद्रा में उस समय दस हजार रुपए के बराबर थे।

दुबई में तीन साल काम का ये सिलसिला जारी रहा। फिर एक दोस्त ने ऑस्ट्रेलिया में काम करने के मानकों के बारे में बताया। तजिंदर कहते हैं, ‘मैंने आईईएलटीएस टेस्ट दिया, जिसका माध्यम अंग्रेजी था। मेरी अंग्रेजी ज्यादा अच्छी नहींथी, क्योंकि पढ़ाई का माध्यम पंजाबी रहा था। मुझे पता था कि इसमें सफल नहीं हो सकूंगा।’ अपने पहले असफल प्रयास के बाद तजिंदर ने अंग्रेजी टीवी कार्यक्रम और फिल्में देखना शुरू किया। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अर्जित करने के बाद उन्होंने टेस्ट पास किया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए पूरी आधिकारिक प्रक्रिया में उनकी बचत का सारा धन खर्च हो गया। यह राशि करीब पांच हजार ऑस्ट्रेलियन डॉलर थी। उनके एक करीबी दोस्त ने एक हजार डालर खर्च करके फ्लाइट टिकट और ऑस्ट्रेलिया में रहने की व्यवस्था की।

तजिंदर याद करते हैं, ‘एक बेहतर जिंदगी और जीविका की तलाश में मैं ऑस्ट्रेलिया पहुंच गया। मेरे पास नौकरी नहींथी, लेकिन सपने थे। रोज सुबह उठकर नौकरी की तलाश में जुट जाता था। आधा दिन ऑनलाइन नौकरी की तलाश करने में बीत जाता था। वहां की सरकार रोजगार की तलाश में आए विदेशियों को नौकरी की खोज करने के लिए कंप्यूटर और प्रिंटर मुहैया कराती है। मैंने उस दौरान जीवनयापन के लिए झाड़ू-पोंछा और टॉयलेट साफ करने का काम किया।’ इस तरह कई हफ्ते गुजर गए, पर नौकरी नहीं मिली। उनके पास सिर्फ एक टाइम खाने के पैसे होते थे और पास में बस कुछ डॉलर ही बचे थे, तभी उनकी नजर रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स के एक विज्ञापन पर पड़ी। तजिंदर कहते हैं, ‘वहीं से मेरी जिंदगी का रुख बदल गया। शुरुआत में मैं मैकेनिकल फिटर की नौकरी के लिए आवेदन करना चाहता था, पर पता चला कि वह पद दो साल बाद भरा जाएगा। इसलिए मैंने एविओनिक्ट टेक्नीशियन के पद के लिए आवेदन किया।’

मार्च 2010 में तजिंदर को एक आधिकारिक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें उनका चयन किए जाने की सूचना थी। इसके बाद तीन माह का प्रशिक्षण आरंभ हुआ। तजिंदर बताते हैं, ‘करीब डेढ़ साल बाद मैं सिडनी में पदस्थ था। वहां एयरक्राफ्ट सी130 जे हरक्यूलिस की मरम्मत करने का मुझे मौका मिला। मेरे माता-पिता कभी स्कूल नहींगए। इसलिए वे मेरे संघर्ष और फैसलों की वजहों को नहींसमझ सकते, लेकिन जब वे मेरे चेहरे पर मुस्कान देखते हैं तो उनका रोम-रोम प्रसन्नता से भर उठता है।’

तजिंदर ने यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स से इंजीनियरिंग में स्नातक इस साल पूरा किया है। ऑफिसर बनने का उनका प्रशिक्षण जारी है। जल्द ही वह रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फोर्स में अधिकारी के तौर पर सेवाएं देंगे। इस प्रकार उनका एक सपना पूरा हुआ। क्या अब उनकी आंखें कोई नया ख्वाब बुन रही हैं? इस पर तजिंदर कहते हैं, ‘मैं रक्षा क्षेत्र में काम करना चाहता हूं। अगर मैं एक टॉयलेट सफाईकर्मी से फ्लाइंग ऑफिसर बनने का सफर तय कर सकता हूं तो मुझे लगता है कि मैं यह भी मुमकिन कर सकता हूं।’

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