मौत देने वाले हाथ अब संवार रहे हैं बच्‍चों की जिंदगी, बदल रही है सोच, संवर रहा जीवन

कभी इस महिला नक्‍सली ने अपने हाथों में बंदूक थाम ली थी। लेकिन अब वह इस राह को छोड़कर बच्‍चों को पढ़ा रही है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 12 Dec 2019 11:23 AM (IST) Updated:Fri, 13 Dec 2019 01:42 AM (IST)
मौत देने वाले हाथ अब संवार रहे हैं बच्‍चों की जिंदगी, बदल रही है सोच, संवर रहा जीवन
मौत देने वाले हाथ अब संवार रहे हैं बच्‍चों की जिंदगी, बदल रही है सोच, संवर रहा जीवन

कोंडागांव [पूनमदास मानिकपुरी]। कहते हैं, ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब उसका उपयोग संहार की बजाए सृजन में किया जाए। आत्मसमर्पित महिला नक्सली (सुरक्षा दृष्टि से नाम छुपाया गया) को आज इस बात बड़ा सुकून मिलता है कि जिन हाथों में गरजती बंदूकों से कभी वह मौत देती थी, उन्हीं हाथों में चॉक थामकर आज वह बच्चों को ककहरा पढ़ाकर उनकी जिंदगी संवार रही है।

आज देते हैं सम्‍मान

वही लोग जो कभी उससे घृणा करते थे, आज सम्मान देते हैं। पिता की मौत के बाद नक्सल संगठन से उसका मोहभंग हुआ और मुख्यधारा में लौटकर अपनी जिंदगी, अपने ज्ञान को सार्थक बनाने में लगी हुई है। वह जिस गांव में पैदा हुई, वहां लोकतंत्र की बजाए क्रांति के गीत ही गूंजते थे।

थाम ली थी बंदूक 

ऐसे माहौल में दसवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही उसने बंदूक थाम ली थी। खेलकूद में तेज थी। दसवीं तक पढ़ी थी। इसलिए संगठन में उसे अक्षर ज्ञान से वंचित नक्सलियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी मिली। इतना ही नहीं, वह नक्सलियों के उस स्कूल में भी पढ़ाती थी, जहां बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ क्रांति का भी पाठ पढ़ाया जाता था। वह आज भी पढ़ा रही है, लेकिन लक्ष्य संहार नहीं बल्कि सृजन है।

रेडियो से पता चला पुनर्वास नीति के बारे में 

पिता की मौत के बाद जब उसने ¨हसा छोड़ने का निर्णय लिया तो रेडियो ने राह दिखाई। समाचार के जरिये उसे सरकार की पुनर्वास नीति के बारे में पता चला। इसके बाद वह जंगल से भाग आई। सितंबर 2018 में उसने कोंडागांव एसपी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। 25 जून 2019 को उसे गोपनीय सैनिक बना दिया गया, जिसमें एवज में उसे कुछ मानदेय मिलता है।

बहुत खुश है दोहरी भूमिका से 

आज वह अपनी दोहरी भूमिका से बहुत खुश है। आत्मसमर्पण के बाद नक्सलियों के निशाने पर आ जाने से डर नहीं लगता? पूछने पर वह शांत भाव से कहती है- मरना तो सभी को एक दिन है ही। वहां रहकर मरने और यहां रहकर मरने में बहुत फर्क है। वह आज करीब 50 बच्चों को पढ़ा रही है, जिसमें पुलिस लाइन के अलावा आसपास की बस्तियों के बच्चे भी आते हैं।

क्‍या कहते हैं पुलिस अधिकारी 

कोंडागांव के पुलिस अधीक्षक सुजीत कुमार का कहना है कि काम के प्रति उसके लगन और समर्पण को देखते हुए उसे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा दिया गया है। आगे रायपुर की तर्ज पर कोंडागांव में भी पुलिस विभाग द्वारा विद्यालय खोला जाएगा। वहां उसे बतौर शिक्षक नियुक्त करेंगे।

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