सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं राज्‍य, बशर्ते...

सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने 7 जजों की बेंच के पास भेजने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने नागराज मामले में फैसले को सही बताया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 05:01 PM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 11:38 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं राज्‍य, बशर्ते...
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं राज्‍य, बशर्ते...

 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कर्मियों के पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सर्वोच्‍च अदालत ने अपने फैसले में सीधे-सीधे पदोन्‍नति में आरक्षण को खारिज नहीं किया है। कोर्ट ने इस मामले को राज्‍यों पर छोड़ दिया है। राज्‍य सरकार अगर चाहे तो वे प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण के लिए कोई डेटा जमा करने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने नागराज मामले में 2006 में दिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से भी इनकार कर दिया है यानि इस मामले को दोबारा 7 जजों की पीठ के पास भेजना जरूरी नहीं है।

बता दें कि 2006 में नागराज से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा था कि सरकार एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है, लेकिन शर्त लगाई थी कि प्रमोशन में आरक्षण से पहले यह देखना होगा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण के लिए किसी भी तरह का डाटा जमा करने की भी जरूरत नहीं है। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की दलील स्वीकार की हैं। फैसला सुनाते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था, इसलिए इस पर फिर से विचार करना जरूरी नहीं है।

गौरतलब है कि सरकार और आरक्षण समर्थकों ने 2006 के एम नागराज के फैसले को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की थी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मांग पर सभी पक्षों की बहस सुनकर गत 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सरकार और आरक्षण समर्थकों का कहना है कि एम नागराज फैसले में दी गई व्यवस्था सही नहीं है। एससी एसटी अपने आप में पिछड़े माने जाते हैं। राष्ट्रपति द्वारा जारी सूची में शामिल होने के बाद उनके पिछड़ेपन के अलग से आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है। जबकि आरक्षण विरोधियों ने एम नागराज फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि उस फैसले में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दी गई व्यवस्था सही कानून है। फैसले के एक भाग पर नहीं बल्कि फैसला आने की पूरी परिस्थितियों पर विचार होना चाहिए। उनका कहना था कि आरक्षण हमेशा के लिए नहीं है ऐसे में पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाए बगैर यह कैसे पता चलेगा कि सरकारी नौकरियों में एससी एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसलिए इन्हें प्रोन्नति में आरक्षण देने की जरूरत है।

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