सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद भुगत रहे कैदियों को निर्देश के बावजूद रिहा नहीं करने पर केरल सरकार की खिंचाई की, जानें क्या है मामला
उम्रकैद की सजा काट रहे दो कैदियों की समय से पहले रिहाई के प्रस्ताव पर फैसला नहीं करने के लिए केरल के अधिकारियों की खिंचाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सरकारी प्रक्रिया को अदालत के निर्देशों का पालन करना होगा।
नई दिल्ली, पीटीआइ। उम्रकैद की सजा काट रहे दो कैदियों की समय से पहले रिहाई के प्रस्ताव पर फैसला नहीं करने के लिए केरल के अधिकारियों की खिंचाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि 'सरकारी प्रक्रिया' को अदालत के निर्देशों का पालन करना होगा। ये दोनों कैदी करीब 28 साल से सजा भुगत रहे हैं। शीर्ष अदालत ने अपने पहले के आदेश के बावजूद इस मुद्दे पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्णय नहीं लिए जाने पर नाराजगी जताते हुए आदेश दिया कि दोषियों को तत्काल जमानत पर रिहा किया जाए।
उल्लेखनीय है करीब दो दशक पहले शराब त्रासदी के एक मामले में इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। उस घटना में 31 लोगों की जान चली गई थी। केरल सरकार की ओर से पेश वकील ने जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कुछ और समय की जरूरत है।
इस पर पीठ ने कहा कि दोषी 28 साल से अधिक समय से हिरासत में हैं। शीर्ष अदालत ने राज्य को इस संबंध में निर्णय लेने के लिए पहले ही समय दे दिया है। इस पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल हैं। राज्य के वकील ने तर्क दिया कि कुछ और समय की जरूरत है क्योंकि यह एक 'सरकारी प्रक्रिया' है, तो पीठ ने कहा कि 'सरकारी प्रक्रिया' को अदालत के निर्देशों का पालन करना होगा।
पीठ, जो दोनों दोषियों की पत्नियों द्वारा जेल से रिहाई की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, ने इस मामले में पारित पहले के आदेशों का उल्लेख किया और कहा कि छह सितंबर को उसने स्पष्ट निर्देश दिया था कि इस मामले में दो सप्ताह के भीतर सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्णय लिया जाए।
वकील मालिनी पोडुवल के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि दोषियों विनोद कुमार और मणिकांतन कुल 28 साल और छूट सहित करीब 30 साल की सजा भोग चुके हैं।
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार, अदालत के निर्देशों के विपरीत काम नहीं कर सकती। हमने जो निर्देश दिया उसके पीछे एक उद्देश्य था। पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि यदि आप अदालत द्वारा दिए गए समय के भीतर निर्णय नहीं ले रहे हैं तो हम उन्हें जमानत पर रिहा करने का निर्देश देंगे। आप हमारे रास्ते में नहीं आ सकते। यह हमारा विशेषाधिकार है। आप प्रस्ताव पर फैसला करने के लिए अपना समय ले सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दोषियों की समय से पहले रिहाई के प्रस्ताव के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य को बार-बार दिए गए अवसर के बावजूद, सरकार द्वारा एक बार फिर और समय मांगा गया है। अतिरिक्त समय के लिए अनुरोध करते हुए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि सरकार छह सितंबर से दो सप्ताह के भीतर प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लेने में असमर्थ क्यों है। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिका लंबित रहने के दौरान दोषियों को जमानत पर रिहा किया जाए।