सुप्रीम कोर्ट ने भी माना उम्मीद से कम समय में पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था और आम आदमी का जीवन

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुई अभूतपूर्व स्थिति का डटकर सामना किया और अर्थव्यवस्था और आम आदमी का जीवन उम्मीद से कम समय में पटरी पर लौट रहा है। पढ़ें सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्‍पणी...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 11:03 PM (IST) Updated:Wed, 24 Feb 2021 11:31 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने भी माना उम्मीद से कम समय में पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था और आम आदमी का जीवन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत ने कोविड-19 महामारी से पैदा हुई अभूतपूर्व स्थिति का डटकर सामना किया...

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुई अभूतपूर्व स्थिति का डटकर सामना किया और अर्थव्यवस्था व आम आदमी का जीवन उम्मीद से कम समय में पटरी पर लौट रहा है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने आपदा प्रबंधन कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि देश में कानूनी और प्रशासनिक साधन थे ताकि राज्य को महामारी से उत्पन्न होने वाले कई संकटों से बचाया जा सके और उनका प्रबंधन किया जा सके।

अदालत ने कहा कि महामारी ने अप्रत्याशित स्थिति से सीखने के लिए सभी लोगों पर अपने प्रभाव छोड़े हैं। अदालत ने कहा कि समाज के हर व्यक्ति का जीवन अचानक से बदल गया। काम करने के तरीके से लेकर सामाजिक सुरक्षा और मानवाधिकारों तक वृहद अर्थव्यवस्था से लेकर घर की आय में बदलाव आया। महामारी ने सबको इतना मजबूत बना दिया है कि अगर भविष्य में मुश्किल हालात पैदा होते हैं तो वे इस अनुभव से उसका सामना कर सकेंगे।

इसके साथ ही पीठ ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा के अभ्यíथयों की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने वैश्विक महामारी के कारण अक्टूबर, 2020 में सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा का आखिरी अवसर ले चुके छात्रों या महामारी के दौरान उम्रसीमा पूरी कर चुके छात्रों को परीक्षा का एक और मौका दिए जाने का अनुरोध किया गया था। इन अभ्यíथयों ने याचिका में महामारी के कारण परीक्षा की तैयारियों में मुश्किलों का हवाला दिया था।

बता दें कि केंद्र ने नौ फरवरी को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह अपना आखिरी मौका गंवाने वाले छात्रों समेत अभ्यर्थियों को एक बार उम्रसीमा में छूट के खिलाफ है। ऐसे छात्रों को इस साल एक और मौका देने से दूसरे उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होगा। मालूम हो कि सामान्य श्रेणी के छात्र 32 साल की उम्र तक छह बार यूपीएससी सिविल सेवा की परीक्षा दे सकते हैं, ओबीसी श्रेणी के छात्र 35 साल की उम्र तक नौ बार और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्र 37 साल की उम्र तक जितनी बार चाहें उतनी बार परीक्षा दे सकते हैं।

केंद्र शुरुआत में अतिरिक्त मौका देने के पक्ष में नहीं था, लेकिन बाद में उसने पीठ के सुझाव पर ऐसा किया। उसने पांच फरवरी को कहा था कि 2020 में परीक्षा के अपने आखिरी अवसर का इस्तेमाल करने वाले छात्रों को इस साल एक और मौका मिलेगा बशर्ते वे आयुसीमा की शर्त को पूरा करते हों।

सुनवाई के दौरान केंद्र ने देश में सिविल सेवा परीक्षा शुरू होने के बाद से यूपीएससी द्वारा दी गई छूट के संबंध में विस्तृत जानकारी न्यायालय को दी थी और बताया कि वर्ष 1979, 1992 और 2015 में परीक्षा पैटर्न में बदलाव के कारण अभ्यíथयों को छूट दी गई थी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 30 सितंबर को देश के कई इलाकों में बाढ़ और कोविड-19 महामारी की वजह से यूपीएससी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा टालने का अनुरोध स्वीकार करने से भी इन्कार कर दिया था।

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