Supreme Court: नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, थानों में सीसीटीवी लगाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमें ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने पैर पीछे खींच रही है। अदालत ने कहा कि ये नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है और अदालत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर चिंतित है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 06:49 PM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 06:56 AM (IST)
Supreme Court: नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, थानों में सीसीटीवी लगाने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने थानों में सीसीटीवी लगाने को लेकर बिहार और मध्य प्रदेश सरकार को भी फटकार लगाई है।

 नई दिल्ली, एजेंसियां। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) समेत विभिन्न जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने से जुड़े मसले पर केंद्र सरकार के कदम पीछे खींचने पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नाखुशी व्यक्त की। इस मसले को नागरिक अधिकारों से जुड़ा बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे केंद्र सरकार की बहानेबाजी स्वीकार नहीं है। केंद्र ने मामले को स्थगित करने की मांग की थी।जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'हमें ऐसा लग रहा है कि आप कदम पीछे खींच रहे हैं।'

शीर्ष अदालत ने पिछले साल दो दिसंबर को सीबीआइ, एनआइए, ईडी, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), राजस्व खुफिया विभाग (डीआइआइ), सीरियस फ्राड इंवेस्टीगेशन आफिस (एसएफआइओ) समेत ऐसी सभी जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकार्डिग उपकरण लगाने के निर्देश दिए थे जो पूछताछ करती हैं और जिन्हें गिरफ्तारी करने का अधिकार है।मंगलवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के दौरान मेहता ने पीठ को बताया कि स्थगन की मांग इसलिए की गई है क्योंकि इस मामले के विभिन्न प्रभाव हो सकते हैं। इस पर पीठ ने कहा, 'यह नागरिकों के अधिकारों से जुड़ा है। हमें बहानेबाजी स्वीकार नहीं है। हमें इसके असर की चिंता नहीं है।'

शीर्ष अदालत ने मेहता से इन जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए धन आवंटन के बारे में भी सवाल किया। इस पर तुषार मेहता ने हलफनामा दाखिल करने के लिए कुछ समय देने की मांग की। अदालत ने उन्हें हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय दे दिया जिसमें उन्हें धन आवंटन के पहलू के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए समयसीमा का उल्लेख भी करना होगा।

राज्यों को मिला अलग-अलग समय

इस मामले में न्यायमित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे द्वारा शीर्ष अदालत के आदेश के बाद विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा मांगी गई समयसीमा की जानकारी के संबंध में दाखिल चार्ट का भी पीठ ने अवलोकन किया। अदालत ने राज्य सरकारों को पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए पांच महीने का वक्त दिया है। चुनावी राज्यों बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी को इस साल के आखिर तक का समय दिया गया है। जबकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़ों राज्यों को क्रमश: नौ महीने और आठ महीने का समय मिला है। पीठ अब होली की छुट्टियों के बाद इस मामले की सुनवाई करेगी।

सीसीटीवी फुटेज से शिकायतों की जांच में होगी आसानी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि थानों के बाहरी हिस्से में लगने वाले सीसीटीवी कैमरे नाइट विजन वाले होने चाहिए। और साथ ही सरकार से कहा था कि जिन थानों में बिजली और इंटरनेट नहीं वहां वे यह सुविधा उपलब्ध कराएं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सौर/पवन ऊर्जा समेत बिजली मुहैया कराने के किसी भी तरीके का उपयोग करके जितनी जल्दी हो सके बिजली दी जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हिरासत में पूछताछ के दौरान आरोपी के घायल होने या मौत होने पर पीड़ित पक्ष को शिकायत करने का अधिकार है। सीसीटीवी फुटेज से ऐसी शिकायतों की जांच में आसानी होगी।

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