सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अदालतों में स्थगन से हम पर पड़ रहा अनावश्यक बोझ
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने समक्ष लंबित अग्रिम जमानत याचिका पर कोई विचार नहीं किया। पीठ ने कहा उचित स्तर पर निपटाए जाने के बजाय ऐसे स्थगन इस अदालत पर अनावश्यक बोझ बढ़ा रहे हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। एक व्यक्ति को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि अदालतों में स्थगन से शीर्ष अदालत पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। इस व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका पिछले करीब सात महीने से इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने समक्ष लंबित अग्रिम जमानत याचिका पर कोई विचार नहीं किया। पीठ ने कहा, 'उचित स्तर पर निपटाए जाने के बजाय ऐसे स्थगन इस अदालत पर अनावश्यक बोझ बढ़ा रहे हैं। जांच के दौरान याचिकाकर्ता को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया, जबकि वह जांच में शामिल हुआ था और सहयोग किया था। ऐसे हालात में जब आरोप-पत्र दाखिल किया जा रहा है तो याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने और हमारे समक्ष स्पष्ट की गई कानूनी स्थिति के मद्देनजर अदालत में पेश करने की कोई जरूरत नहीं है।'
शीर्ष अदालत ने उक्त टिप्पणी एक आपराधिक मामले में आरोपित की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिकाकर्ता के खिलाफ गाजियाबाद की विशेष सीबीआइ अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान के आधार पर उसके खिलाफ समन जारी किए गए थे। समन मिलने पर याचिकाकर्ता ने 16 जनवरी, 2021 को अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की थी, जिसे 28 जनवरी को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने तीन फरवरी, 2021 को हाई कोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि आर्डर-शीट से पता चलता है कि हाई कोर्ट में कई कार्यवाही हुईं, सीबीआइ ने जवाबी हलफनामा दाखिल किया, इसके बावजूद अग्रिम जमानत याचिका पर विचार नहीं किया गया।