MV Act के तहत सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा- दामाद के साथ रहने वाली सास मुआवजे की हकदार

Supreme Court ON MV Act सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अपने दामाद के साथ रहने वाली सास मोटर वाहन अधिनियम (एमवी अधिनियम) के प्रावधान के तहत एक कानूनी प्रतिनिधि है। याचिका के तहत मुआवजे के दावे की हकदार हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 07:11 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 10:15 PM (IST)
MV Act के तहत सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा- दामाद के साथ रहने वाली सास मुआवजे की हकदार
मोटर वाहन अधिनियम (एमवी अधिनियम) पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

 नई दिल्ली, एएनआइ। मोटर वाहन अधिनियम (एमवी अधिनियम) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अपने दामाद के साथ रहने वाली सास मोटर वाहन अधिनियम के तहत 'कानूनी प्रतिनिधि' है और दावा याचिका के तहत मुआवजे की हकदार है। न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि भारतीय समाज में सास का बुढ़ापे में उनके रखरखाव के लिए अपनी बेटी और दामाद के साथ रहना और अपने दामाद पर निर्भर रहना कोई असामान्य बात नहीं है। पीठ ने कहा कि खंडपीठ ने कहा, 'यहां सास मृतक की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती है, लेकिन वह उसकी मृत्यु के कारण निश्चित रूप से पीड़िता है। इसलिए, हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि वह मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत 'कानूनी प्रतिनिधि' है और दावा याचिका को जारी रखने की हकदार है।

केरल हाईकोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती

न्यायालय ने यह टिप्पणी 2011 की एक मोटर वाहन दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की पत्‍‌नी द्वारा दायर उस अपील पर की, जिसमें केरल हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि अपने दामाद के साथ रहने वाली सास मृतक की कानूनी प्रतिनिधि नहीं है। हाई कोर्ट ने मुआवजे की राशि भी कम कर दी थी।मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ताओं को मुआवजे के रूप में 74,50,971 रुपये देने का आदेश दिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे घटाकर 48,39,728 रुपये कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा राशि बढ़ाकर 85,81,815 रुपये कर दिया और दावा याचिका दाखिल किए जाने के दिन से 7.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से आठ दिन के भीतर भुगतान करने को कहा।

मुआवजे का निर्धारण नहीं हो सकता सटीक

शीर्ष अदालत ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान 'न्यायसंगत और उचित मुआवजे' की अवधारणा को सर्वोपरि महत्व देते हैं। यह एक लाभकारी कानून है, जिसे पीड़ितों या उनके परिवारों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। एमवी अधिनियम की धारा 168 'न्यायसंगत मुआवजे' की अवधारणा से संबंधित है, जिसे निष्पक्षता, तर्कसंगतता और समानता की नींव पर निर्धारित किया जाना चाहिए। हालांकि इस तरह का निर्धारण कभी भी अंकगणितीय रूप से सटीक या सही नहीं हो सकते हैं। अदालत द्वारा आवेदक द्वारा दावा की गई राशि के बावजूद न्यायसंगत और उचित मुआवजा देने का प्रयास किया जाना चाहिए।

कानूनी प्रतिनिधि की होनी चाहिए व्यापक व्याख्या

शीर्ष अदालत ने कहा कि एमवी अधिनियम 'कानूनी प्रतिनिधि' शब्द को परिभाषित नहीं करता है। आम तौर पर 'कानूनी प्रतिनिधि' का अर्थ उस व्यक्ति से होता है जो कानूनी तौर पर मृत व्यक्ति की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें कोई भी व्यक्ति शामिल होता है, जिसमें क्षतिपूरक लाभ प्राप्त करने का कानूनी अधिकार होता है। पीठ ने आगे कहा कि एक 'कानूनी प्रतिनिधि' में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है, जो मृतक की संपत्ति में हस्तक्षेप करता है। ऐसे व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी होना जरूरी नहीं है। कानूनी उत्तराधिकारी वे व्यक्ति होते हैं जो मृतक की जीवित संपत्ति को विरासत में पाने के हकदार होते हैं। ऐसे में एक कानूनी उत्तराधिकारी कानूनी प्रतिनिधि भी हो सकता है।

मोटर वाहन अधिनियम हितकारी कानून

शीर्ष अदालत ने कहा, 'हमारे विचार में मोटर वाहन अधिनियम के अध्याय-12 के उद्देश्य की पूर्ति के लिए 'कानूनी प्रतिनिधि' शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए थी और इसे केवल मृतक के पति या पत्‍‌नी, माता-पिता और बच्चों तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। जैसा कि ऊपर देखा गया है, मोटर वाहन अधिनियम पीड़ितों या उनके परिवारों को मौद्रिक राहत प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया हितकारी कानून है।' 

सुप्रीम ने किया मुआवजे का निर्धारण

शीर्ष अदालत ने कहा कि दुर्घटना के समय मृतक की उम्र 52 वर्ष थी। वह सहायक प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा था और 83,831 रुपये मासिक वेतन प्राप्त कर रहा था। पीठ ने कहा कि आय की गणना के समय अदालत को मृतक की वास्तविक आय पर विचार करना होगा और संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए मुआवजे को बढ़ाकर 85,81,815 रुपये करना चाहिए।

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