समयपूर्व रिहाई की नीति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार को राजी, कई सवालों के ढूंढने होंगे जवाब

शीर्ष अदालत ने उम्रकैद की सजा भुगत रहे एक दोषी की ओर से दाखिल याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार और अन्य से चार हफ्ते में जवाब तलब किया है। यह याचिका शुक्रवार को जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 07:46 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 07:46 PM (IST)
समयपूर्व रिहाई की नीति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार को राजी, कई सवालों के ढूंढने होंगे जवाब
समयपूर्व रिहाई की नीति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार को राजी, कई सवालों के ढूंढने होंगे जवाब

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर विचार के लिए राजी हो गया है जिसमें दोषियों की समयपूर्व रिहाई से जुड़े कानूनी मुद्दे को उठाया गया है। शीर्ष अदालत इस बात पर विचार करेगी कि दोषियों की समयपूर्व रिहाई के लिए विचार करते समय उस वक्त प्रभावी नीति लागू होगी अथवा उसे दोषी ठहराए जाने के वक्त जो नीति प्रभावी थी।

शीर्ष अदालत ने उम्रकैद की सजा भुगत रहे एक दोषी की ओर से दाखिल याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार और अन्य से चार हफ्ते में जवाब तलब किया है। याचिका में राज्य सरकार को उसे इस आधार पर रिहा करने के निर्देश देने की मांग की गई है कि वह रेमिशन (छूट इत्यादि) की अवधि समेत 20 साल से अधिक की सजा भुगत चुका है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसका मामला दोषी ठहराए जाने के वक्त प्रभावी समयपूर्व रिहाई की नीति के तहत आता है।

यह याचिका शुक्रवार को जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई, जिस पर पीठ ने नोटिस जारी करने का आदेश दिया। अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के जरिये दाखिल याचिका के मुताबिक, याचिकाकर्ता और अन्य को ट्रायल कोर्ट ने 1996 में दोषी ठहराया था और सितंबर, 2005 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। दोषी ठहराए जाने के वक्त समयपूर्व रिहाई की चार दिसंबर, 1978 की नीति प्रभावी थी। पहली बार इस नीति में 10 जनवरी, 2012 को अहम बदलाव किए गए थे। इसमें यह प्रविधान किया गया था कि समयपूर्व रिहाई के लिए उम्रकैद की सजा भुगत रहे कैदियों को 20 साल की वास्तविक सजा और कुल 26 साल की सजा काटनी होगी। जबकि दिसंबर, 1978 की नीति के मुताबिक, 18 दिसंबर, 1978 के बाद उम्रकैद की सजा पाए दोषियों को समयपूर्व रिहाई के लिए 14 साल की वास्तविक सजा और 20 साल की कुल सजा काटनी होगी।

याचिका के मुताबिक, पिछले साल दिसंबर में अधिकारियों ने दिसंबर, 1978 के बजाय जनवरी, 2012 की नीति के आधार पर समयपूर्व रिहाई के उसके आवेदन को खारिज कर दिया था। जबकि याचिकाकर्ता की समयपूर्व रिहाई के मामले पर चार दिसंबर, 1978 की नीति की रोशनी में विचार होना चाहिए।

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