DATA STORY: पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन में इस तरह हो रहा इजाफा

2020 की पहली छमाही में पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की हिस्सेदारी 10 फीसदी दर्ज की गई है। यह जानकारी थिंक टैंक एजेंसी एम्बर की रिपोर्ट में सामने आई है। भारत भी अपनी 10 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन विंड और सोलर की मदद से कर रहा है।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 11:35 AM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 04:56 PM (IST)
DATA STORY: पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन में इस तरह हो रहा इजाफा
भारत में पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन 2015 में तीन प्रतिशत था।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/पीयूष अग्रवाल। दुनिया के बड़े देशों में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को लेकर काफी काम हुए हैं। प्रदूषण की खतरनाक स्थिति को दूर करने के लिए ये प्रयास काफी कारगर माने जाते हैं। जर्मनी, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में पवन और सौर ऊर्जा में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि वैश्विक कोयला उत्पादन में हो रही लगातार कमी के साथ मेल खाती है। दुनियाभर के देश विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से दूरी बना रहे हैं।

2020 की पहली छमाही में पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की हिस्सेदारी 10 फीसदी दर्ज की गई है। यह जानकारी जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे थिंक टैंक एजेंसी एम्बर की रिपोर्ट में सामने आई है। भारत भी अपनी 10 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन विंड और सोलर की मदद से कर रहा है, जबकि अमेरिका 12 फीसदी, चीन, जापान और ब्राजील 10 फीसदी एवं तुर्की 13 फीसदी बिजली का उत्पादन पवन और सौर ऊर्जा से कर रहा है, वहीं यूरोपीय यूनियन 21 फीसदी और यूनाइटेड किंगडम 33 फीसदी पवन और सौर ऊर्जा की मदद से उत्पादित कर रहा है। भारत में आया यह बदलाव काफी अहम है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में पवन और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन 2015 में जहां तीन प्रतिशत था, जो 2020 में बढ़कर दस फीसदी हो गया।

पेरिस क्लाइमेट चेंज संधि के 2015 में हस्ताक्षर होने के बाद कई देशों ने जहां सौर और पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन के शेयर को दोगुना किया, वहीं भारत ने तीन गुना किया है। चीन, जापान और ब्राजील का 2015 में शेयर चार फीसदी से बढ़कर दस फीसदी हो गया, जबकि अमेरिका का 6 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गया। वहीं, भारत का 2015 में सौर और पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन का शेयर 3.4 प्रतिशत था, जो अब 10 हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत एशियन देशों में कोयले का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। वहीं कोयला उत्पादन का शेयर 77 फीसदी से घटकर 68 फीसदी हो गया।

वैज्ञानिकों ने पहले भी चेताया है कि यदि दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे उत्सर्जन में कमी नहीं की गई तो उसके विनाशकारी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। पहले ही बाढ़, सूखा, तूफान, मानसून में आ रहे बदलाव जैसी आपदाएं काफी बढ़ चुकी हैं, साथ ही उनका स्वरूप भी और विनाशकारी होता जा रहा है। 

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