पराली जलाने को लेकर दूसरे राज्यों पर नहीं है किसी का ध्यान; दिल्ली के करीब होने से हरियाणा, पंजाब व उप्र पर मचता है हंगामा

पराली जलाने को लेकर सभी का ध्यान पंजाब और हरियाणा पर ही ज्यादा रहता है। जबकि देश के कई अन्य राज्यों में भी धड़ल्ले से पराली जलाई जाती है। ऐसे राज्य दिल्ली के आस पास ही नहीं सिमटे हैं बल्कि सुदूर पूरब से लेकर मध्य भारत तक फैले हैं।

By TaniskEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 01:36 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 01:36 AM (IST)
पराली जलाने को लेकर दूसरे राज्यों पर नहीं है किसी का ध्यान; दिल्ली के करीब होने से हरियाणा, पंजाब व उप्र पर मचता है हंगामा
पराली जलाने को लेकर दूसरे राज्यों पर नहीं है किसी का ध्यान।

नई दिल्ली, आइएएनएस। पराली जलाने को लेकर सभी का ध्यान पंजाब और हरियाणा पर ही ज्यादा रहता है। जबकि देश के कई अन्य राज्यों में भी धड़ल्ले से पराली जलाई जाती है। ऐसे राज्य दिल्ली के आस पास ही नहीं सिमटे हैं, बल्कि सुदूर पूरब से लेकर मध्य भारत तक फैले हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से रविवार को मिली तस्वीरों के मुताबिक देश भर में पराली जलाई जा रही है। तस्वीरों के मुताबिक असम के धेमाजी जिले में छह स्थानों, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में दो स्थानों, झारखंड के धनबाद और मध्य प्रदेश के गुना जिले और ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में भी पराली जलती पाई गई है।

गुजरात के भरूच में दो, जुनागढ़ में एक, कच्छ में पांच और सूरत में पांच जगहों पर पराली जलने की तस्वीर कैद हुई है। इसके अलावा राजस्थान के सिरोही में एक और उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में तीन, खीरी में दो और इटावा एवं झांसी में एक-एक स्थानों पर पराली जलती पाई गई है। इसको के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सटे उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले में 35 जगहों पर पराली जलाने की तस्वीर मिली है। राष्ट्रीय राजधानी से सटे होने के कारण हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में पराली जलाने से रोकने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इन राज्यों में इसको रोकने के लिए कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन दूसरे राज्यों शायद ही पराली जलाने से रोकने की कोशिश होती है।

एक और पहलू यह है कि केवल उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में ऐसे कानून हैं जो पराली जलाने को अपराध मानते हैं, लेकिन शायद ही कोई मुकदमा चलाया जाता है क्योंकि ये घटनाएं काफी होती हैं। दूरदराज के इलाकों में और सरकारी तंत्र के पास सभी आग पर नजर रखने के लिए लोग नहीं हैं। सेंटर फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (सीएसए) के कार्यकारी निदेशक जी.वी. रामंजनेयुलु के अनुसार इसा मुख्य कारण क्राप पैटर्न है। समस्या केवल चावल के बाद गेहूं की फसल प्रणाली के साथ है, जो पंजाब और हरियाणा में आम है। अन्य राज्यों में चावल के बाद ज्यादातर दालों की खेती होती है।

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