दुश्‍मन के रडार की पकड़ में नहीं आ सकता है INS Kavaratti, परमाणु और रासायनिक हमले में भी कारगर

आईएनएस कवरत्‍ती के भारतीय नौसेना में शामिल होने से उसकी ताकत और अधिक बढ़ गई है। ये दुश्‍मन के रडार से बचा रह सकता है। साथ ही परमाणु और रासायनिक हमलों में भी निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 22 Oct 2020 11:46 AM (IST) Updated:Thu, 22 Oct 2020 12:56 PM (IST)
दुश्‍मन के रडार की पकड़ में नहीं आ सकता है INS Kavaratti, परमाणु और रासायनिक हमले में भी कारगर
आईएनएस कव‍रत्‍ती से बढ़ गई भारतीय नौसेना की ताकत

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने गुरुवार (22 अक्‍टूबर 2020) को आईएनएस कवरत्‍ती को भारतीय नौसेना के सुपुर्द कर दिया। पनडुब्बी रोधी प्रणाली से लैस ये स्‍वदेशी युद्धपोत आईएनएस कवरत्ती कई मायनों में बेहद खास है। ये एक स्‍टील्‍थ वार शिप है। इसका अर्थ है कि ये दुश्‍मन के रडार की पकड में नहीं आ सकता है। इसका डिजाइन डायरेक्‍टरेट ऑफ नेवल डिजाइन ने तैयार किया था और इसको कोलकाता के गार्डन रिसर्च शिपबिल्‍डर्स एंड इंजीनियर्स ने तैयार किया है। आइए जानते हैं आईएनएस कवरत्‍ती की कुछ खास बातें:- 

यह प्रोजेक्ट-28 के तहत स्वदेश में निर्मित चार पनडुब्बी रोधी जंगी स्टील्थ पोत में से आखिरी जहाज है, जो कमरोटा क्‍लास का है। प्रोजेक्‍ट 28 को 2003 में सरकार की मंजूरी मिली थी। इसके तहत तीन अन्‍य युद्धपोत में से एक आईएनएस कमोरटा को 2014 में नौसेना में शामिल किया गया था। इसके बाद आईएनएस कदमद को 2016 और आईएनएस किल्‍टन को 2017 में नौसेना में शामिल किया गया था। आईएनएस कवरत्‍ती में लगे 90 फीसद चीजें स्‍वदेश में निर्मित हैं। इसमें कार्बन कंपोजिट का इस्‍तेमाल किया गया है। नौसेना में शामिल करने से पहले इसकी सभी तकनीकी स्‍तरों पर जांच और ट्रायल किया गया है। इसमें लगे सेंसर काफी दूरी से भी दुश्‍मन की सबमरीन का पता लगा सकते हैं। भारत के इस जंगी जहाज की खास बात ये है कि ये रडार की पकड़ में नहीं आता है। आईएनएस कवरत्ती में अत्याधुनिक हथियार प्रणाली है। इसमें लगे खास सेंसर पनडुब्बियों का पता लगाने और उनका पीछा करने में सक्षम हैं। ये पोत परमाणु, रासायनिक और जैविक युद्ध की स्थिति में भी काम करेगा। इसका नाम 1971 में बांग्‍लादेश में छिड़ी आजादी की लड़ाई के दौरान तैनात आईएनएस कवरत्‍ती से लिया गया है जो अरनाला क्‍लास मिसाइल युक्‍त युद्धपोत से लिया गया है। इसने बांग्‍लादेश के मुक्ति संग्राम ने अहम भूमिका निभाई थी। इसको बनाने की शुरुआत जनवरी 2012 में हुई थी। मई 2015 में इसको लॉन्‍च किया गया। फरवरी 2020 में इसका ट्रायल शुरू हुआ था। 3300 टन वजनी ये युद्धपोत 109 फीट लंबा है। इसकी ऊंचाई करीब चार मंजिला इमारत के बराबर है। ये युद्धपोत 25 किलोनॉट या 46 किमी प्रतिघंटे की गति से समुद्र का सीना चीरते हुए आगे बढ़ सकता है। इसमें एक बार में 123 कर्मी रह सकते हैं, जिसमें 17 अधिकारी भी शामिल हैं। इस पर जमीन से हवा में मार करने वाली बराक मिसाइल के साथ एंटी सबमरीन रॉकेट लॉन्‍चर भी लगा है। इसके अलावा इसमें 6 टॉरपीडो ट्यूब भी हैं। इसमें 76 एमएम की ओटीओ मेलारा गन लगी है। इसके अलावा इसमें क्‍लोज इन वेपन सिस्‍टम (close-in weapon system/CIWS)लगा है, जो अपनी तरफ आती हुई किसी भी मिसाइल का पता लगाकर उसको ध्‍वस्‍त कर सकता है।

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