विश्‍व हिंदी दिवस: दुनिया के 200 से अधिक विश्‍वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है हिंदी, इसकी किरणों से रोशन हो रहा वैश्विक समाज

दुनिया भर में हिंदी का विकास प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्‍व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसी उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं विदेश में रह रहे भारतवंशियों सहित हिंदी के कुछ सच्चे प्रशंसक। जिनकी पहल से मिट रही है भाषा की दीवार

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 12:52 PM (IST) Updated:Sun, 10 Jan 2021 12:52 PM (IST)
विश्‍व हिंदी दिवस: दुनिया के 200 से अधिक विश्‍वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है हिंदी, इसकी किरणों से रोशन हो रहा वैश्विक समाज
पूरी दुनिया में उजाला बिखेर रही है हिंदी

प्रो. निरंजन कुमार। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। 10 जनवरी को मनाए जाने वाले विश्व हिंदी दिवस पर यह कथन नए अर्थों में भी समीचीन हो जाता है कि हिंदी का दावा अब साहित्यिक परिधि से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित होना है। दुनिया में हिंदी का विकास करने तथा इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से हर साल विश्‍व हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा 10 जनवरी 2006 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता और अनुराग पैदा करना, हिंदी के लिए वातावरण तैयार करना एवं हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। अंतत: संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में इसे स्थान दिलाना है।

परदेस में प्रभावी रहे आप्रवासी

दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदी के बढ़ते कदमों के पीछे आप्रवासी भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है, जिनमें अपनी मातृभूमि, संस्कृति, विचार और सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों से जुड़ने की एक बेचैनी रहती है। विदेशी धरती पर भारतीय तत्वों की परिपूर्ति भाषायी स्तर पर कोई भाषा अकेले कर सकती थी, तो वह हिंदी ही रही है, जो भौगोलिक विस्तार के साथ-साथ बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से भी सबसे ज्यादा थी। यह अनायास नहीं कि विदेश गए भारतीयों ने हिंदी भाषा और साहित्य को भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में अपनाया और उसे बढ़ावा देने का प्रयास किया। आप्रवासी भारतीयों के संपर्क में आए अनेक विदेशियों को भी भारतीय संस्कृति-खास तौर से भारतीय जीवन मूल्यों जैसे वसुधैव कुटुंबकम्, पारिवारिक जुड़ाव, सहिष्णुता के भाव आदि ने खूब प्रभावित किया। हिंदी सिनेमा ने भी इनको खासा आकर्षित किया। पिछले दशकों में व्यापार और राजनीतिक कारण भी एक आधार बना है। भारत-भारतीयता से जुड़ने के क्रम में अनेक विदेशियों ने न सिर्फ हिंदी सीखी, बल्कि अपने-अपने देशों में वे ‘हिंदी के एंबेसडर’ भी बने।

हिंदी से जुड़े हैं दिल

शुरुआत पड़ोसी देश चीन से। साम्यवादी क्रांति के बाद 1962 और फिर वर्तमान में भले ही चीनी शासकों ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा, लेकिन चीन का भारत से गहरा रिश्ता भी रहा है। 20वीं सदी में जहां चीन के केवल एक विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम था, वहीं आज 11 चीनी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। श्रीरामचरितमानस का चीनी भाषा में अनुवाद चीन के प्रोफेसर जिन दिंग हान ने किया है। चीन में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने हिंदी-चीनी मुहावरा कोश भी तैयार किया है। चीनी प्रोफेसर वांग शू ने भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों पर कार्य किया है, तो एक अन्य प्रोफेसर च्यांग चिंग ख्वेई ने चीन में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। सूरदास पर उनका विशेष शोधकार्य है। हिंदी में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार दिया गया है। हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आंसू’ के मर्मज्ञ च्यांग हिंदी में कहानियां भी लिखते हैं। एक अन्य प्रोफेसर यू लोंग यू को ‘भारत अध्ययन’ के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। चीन में हिंदी की लोकप्रियता तो काफी बढ़ी है किंतळ् इन विद्वानों का यह भी मानना है कि भारत-चीन के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों के चलते चीन में हिंदी का सही तरीके से प्रसार नहीं हो पाया।

मनोरंजन के साथ भाषा ज्ञान

एशियाई देशों में जापान में हिंदी की लौ जलाने वालों में प्रोफेसर ताकाकुसु अग्रगण्य हैं, जिनके प्रयासों से जापानी विश्वविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन शुरू हुआ। टोकियो विश्वविद्यालय में तो एम. फिल. और पीएच. डी. की सुविधा उपलब्ध है। प्रोफेसर हिंदेआकी इशिदा और दोशिकुमी मिजुनो ने अनुवाद कार्य में महती कार्य करते हुए विद्यार्थियों को दक्षता प्राप्त करने में मदद की है। सेत्स सुजुकि नामक एक प्रोफेसर का मानना है कि भारतीय लोक कथाओं की जापानी लोक कथाओं पर गहरी छाप है। छात्रों की सुविधा के लिए टोकियो विश्वविद्यालय में जापानी-हिंदी और हिंदी-जापानी शब्दकोश भी तैयार किए गए हैं। इसके अतिरिक्त इंदो बुंकाकु (भारतीय साहित्य) नामक पत्रिका भी यहां से निकलती है। पिछले सालों में जापान में हिंदी फिल्मों की मांग बढ़ी है। इससे भी जापानी लोगों के बीच हिंदी भाषा सीखने का रुझान बढ़ रहा है। प्रो. मिजोकामी जापानियों को हिंदी सीखने के लिए श्रवण-वाचन पद्धति को उपयोगी समझते हैं और महाभारत व रामायण धारावाहिक और फिल्मों को महत्वपूर्ण मानते हुए इनके माध्यम से हिंदी सिखाते हैं। आज हिंदी भाषा-साहित्य पूरे जापान में लोकप्रिय है। हजारों की संख्या में जापानी छात्र हिंदी अध्ययन करते हैं।

शब्दकोश में डूबा मन

यूरोपीय देशों में इंग्लैंड के कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड, लंदन एवं यॉर्क विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा व साहित्य में अध्ययन-अनुसंधान का कार्य चल रहा है। ब्रिटिश हिंदी विद्वानों में डॉ. रोनाल्ड स्टुअर्ट मैक्ग्रेगर, डॉ. रूपर्ट स्नेल आदि महत्वपूर्ण नाम हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. मैकग्रेगर शीर्ष भाषा विज्ञानी, व्याकरणकार, अनुवादक और हिंदी साहित्य के इतिहासकार रहे हैंर्। हिंदी व्याकरण पर ‘एन आउटलाइन ऑफ हिंदी ग्रामर’ के साथ-साथ उनका ‘हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ काफी प्रसिद्ध रहा है। लंदन विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. रूपर्ट स्नेल ब्रजभाषा और अवधी के अलावा मध्यकालीन हिंदी साहित्य के बड़े विद्वान हैं, उनकी पुस्तक ‘हिंदी: टीच योरसेल्फ’ पूरी दुनिया में लोकप्रिय है।

इसी तरह रूस में मॉस्को विश्वविद्यालय, लेनिनग्राद विश्वविद्यालय, रूसी मानविकी विश्वविद्यालय व सेंट पीटर्सबर्ग और ताशकंद विश्वविद्यालय आदि दर्जनों संस्थानों में छात्र हिंदी पढ़ते हैं। मॉस्को के ‘जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र’ ने ‘हिंदी रूसी शब्दकोश’ का प्रकाशन किया है। रूस के हिंदीप्रेमियों में पीटर वरान्निकोव का दिल भारत में बसता है। उन्होंने श्रीरामचरितमानस का रूसी में अनुवाद किया और हिंदी सिनेमा पर केंद्रित पत्रिका भी निकाली। अन्य विद्वानों में जाल्मन दीप शित्स का ‘हिंदी व्याकरण’ एक मानक ग्रंथ है तो डॉ. अलेक्सांद्र सेंकेविच ने ‘हिंदी ज्ञानकोश’ का निर्माण किया है। प्रोफेसर येवोनी येलिशेव ने ‘सुमित्रानंदन पंत और आधुनिक हिंदी कविता’ नामक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक पुस्तक लिखी है। रूसी आलोचक डॉ. अलेक्सांद्र की पुस्तक ‘समकालीन हिंदी साहित्य और समाज’ साहित्य और समाज के अंत:संबंधों को नई दृष्टि से परिभाषित करती है।

हिंदी के प्रामाणिक जानकार

फिनलैंड के हेलसिंकी विश्वविद्यालय में अनेक वर्ष से हिंदी पढ़ाई जा रही है। प्रोफेसर तातिक तिक्के ने ‘हिंदी-फिनिश शब्दकोश’ तैयार किया तथा ‘गोदान’ का फिनिश भाषा में रूपांतर भी किया है। नार्वे के ओस्लो विश्वविद्यालय में हिंदी का एक संपूर्ण विभाग है। प्रोफेसर जेन्स ब्रोरगिन ने गीता का नार्वेजियन भाषा में अनुवाद किया है, तो नार्वेजियन में बाल रामायण प्रकाशनाधीन है। हालांकि बेल्जियम के हिंदी प्रेमी-विद्वान कामिल बुल्के के बिना यह चर्चा अधूरी रहेगी। यद्यपि बुल्के ने भारत में रहकर कार्य किया, लेकिन अपने आभामंडल से अनेक विदेशियों को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया। हिंदी खड़ी बोली, ब्रज, अवधी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान बुल्के को राम नाम की ऐसी लगन लगी कि राम कथा की उत्पत्ति पर उन्होंने अब तक का सबसे प्रामाणिक शोध किया। कामिल बुल्के का अन्य महत्वपूर्ण कार्य ‘अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश’ है। उनका यह शब्दकोश इतना प्रामाणिक माना जाता है कि आज भी किसी शब्द के अर्थ पर विवाद होने पर लोग कामिल बुल्के की डिक्शनरी की तरफ रुख करते हैं। हिंदी सेवा के लिए उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

और अंत में बात दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली व संपन्न देश अमेरिका की, जहां 110 से ज्यादा विश्वविद्यालयों-कॉलेजों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। प्रोफेसर माइकल शपीरो, कैरीन शोमर, क्रिस्टी मेरिल, फिलिप लुटजेनडोर्फ, टाइलर विलियम्स आदि नाम प्रमुख हैं जो वहां हिंदी के लिए समर्पित हैं। आज दुनिया के 200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था है। अगर हम भारतीय हिंदी की शक्ति को ठीक से पहचानें तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी सच्चे अर्थों में विश्वभाषा बन जाएगी!

भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, युगांडा, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, रूस, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड आदि देशों में हिंदी बोली-समझी जाती है।

137 देशों में मौजूद हैं हिंदीभाषी अथवा हिंदी प्रेमी लोग

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं)

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