एनजीटी के लाइसेंस रद करने के आदेश के खिलाफ यूपी के आरा मिल मालिक पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

उत्तर प्रदेश में नई आरा मिलों के लाइसेंस रद करने के एनजीटी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जानें सुप्रीम कोर्ट में आरा मिल मालिकों ने क्‍या दलील दी है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 10:22 PM (IST) Updated:Mon, 10 Aug 2020 03:15 AM (IST)
एनजीटी के लाइसेंस रद करने के आदेश के खिलाफ यूपी के आरा मिल मालिक पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
एनजीटी के लाइसेंस रद करने के आदेश के खिलाफ यूपी के आरा मिल मालिक पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में नई आरा मिलों के लाइसेंस रद करने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। विभिन्न जिलों के 259 आरा मशीन मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 80,000 लोगों के बेरोजगार होने की दुहाई देते हुए राहत की गुहार लगाई है। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी याचिका दाखिल कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट मामले पर 11 अगस्त यानी मंगलवार को सुनवाई करेगा।

अंतरिम रोक लगाने की मांग

एनजीटी ने इस वर्ष 18 फरवरी को उत्तर प्रदेश में नई आरा मिलों को प्रोविजनल लाइसेंस देने का पहली मार्च, 2019 का नोटिस और लाइसेंस दोनों रद कर दिए थे। याचिकाकर्ताओं ने एनजीटी के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। याचिका में कहा गया है कि एनजीटी के आदेश का असर करीब 80,000 लोगों के रोजगार पर पड़ेगा। इन आरा मिलों का प्रदेश में कुल करीब 3,000 करोड़ का निवेश है और करीब 12,000 करोड़ का सालाना टर्नओवर है।

यूपी में लगी थीं 600 आरा मशीनें

प्रदेश सरकार के प्रोविजनल लाइसेंस से करीब 600 आरा मशीनें प्रदेश में लगीं थीं। आरा मिल मालिकों के वकील राजीव दुबे का कहना है कि लाइसेंस की शर्त थी कि छह महीने के अंदर यूनिट स्थापित हो जानी चाहिए। ऐसे में लाइसेंस धारकों ने पत्नी के गहने व पुश्तैनी जमीन बेचकर और बैंक से लोन लेकर यूनिट लगाईं। अभी उनकी ईएमआइ और बुनियादी मदों में खर्च जारी है। एनजीटी के आदेश से लोग परेशान हैं। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में पर्याप्त आरा मशीनें नहीं होने के कारण यहां की ज्यादातर लकड़ी हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब जाती है।

याचिकाकर्ताओं ने दी यह दलील

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआइ) के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 80 लाख घनमीटर लकड़ी प्रतिवर्ष उपलब्ध है जबकि नई आरा मशीन यूनिटों में सिर्फ 13 लाख घनमीटर लकड़ी की प्रतिवर्ष खपत है। पुरानी और नई दोनों तरह की आरा मशीनों की यूनिटों में मिलाकर भी करीब 54 लाख घनमीटर लकड़ी की ही खपत है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि ऐसे में एनजीटी का आदेश सही नहीं है और उसे रद किया जाए।

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट के पांच अक्टूबर, 2015 के आदेश में केंद्र सरकार को लकड़ी आधारित उद्योगों को लाइसेंस जारी करने की इजाजत दी गई। केंद्र ने इसके आधार पर नए सिरे से दिशानिर्देश जारी किए, जिसके आधार पर उत्तर प्रदेश ने भी वर्ष 2018 में नियमों में संशोधन किए। प्रदेश सरकार ने पहली मार्च, 2019 को नए नियमों पर आधारित 1,215 प्रोविजनल लाइसेंस जारी किए। नए लाइसेंस जारी करने को उदय एजुकेशन एंड वेलफेयर ट्रस्ट व अन्य ने एनजीटी में चुनौती दी। उनका तर्क था कि एफएसआइ का सर्वे सही नहीं है। प्रदेश में इतनी लकड़ी उपलब्ध नहीं है जितने लाइसेंस दिए गए हैं। एनजीटी ने प्रदेश सरकार और याचिकाकर्ता दोनों की ओर से पेश दस्तावेज देखने और लंबी सुनवाई के बाद गत 18 फरवरी को प्रदेश सरकार का प्रोविजनल लाइसेंस देने का नोटिस और लाइसेंस दोनों ही रद कर दिए थे।

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