सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली LDF विधायकों को राहत, केरल सरकार की अपील की खारिज

Ruckus in Assembly in 2015 न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और सांसदों के विशेषाधिकार उन्हें आपराधिक कानून के खिलाफ प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं देता है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 12:12 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 12:12 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली LDF विधायकों को राहत, केरल सरकार की अपील की खारिज
कोर्ट ने 15 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

नई दिल्ली, पीटीआइ/एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केरल विधानसभा में हंगामा के मामले में एलडीएफ विधायकों को राहत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें 2015 में राज्य विधानसभा के अंदर हंगामे के संबंध में एलडीएफ विधायकों के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले को वापस लेने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और सांसदों के विशेषाधिकार उन्हें आपराधिक कानून के खिलाफ प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं देता है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति एम आर शाह की पीठ ने याचिकाओं पर 15 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

Supreme Court dismisses Kerala Govt's petition seeking a direction to withdraw cases against prominent CPI (Marxist) leaders for alleged vandalism in the Kerala state Assembly in 2015 when the current ruling party in the state was in Opposition pic.twitter.com/7TVdci6TW2

— ANI (@ANI) July 28, 2021

13 मार्च, 2015 को तत्कालीन विपक्ष के एलडीएफ सदस्यों ने भ्रष्टाचार के आरोप का सामना कर रहे तत्कालीन वित्त मंत्री केएम मणि को बजट पेश करने से रोकने के लिए सदन में तोड़फोड़ की थी। उन्होंने स्पीकर की कुर्सी को पोडियम से उठाकर फेंक दिया था और पीठासीन अधिकारी की डेस्क पर लगे कंप्यूटर, की-बोर्ड और माइक जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरणों को क्षतिग्रस्त कर दिया था।

केरल हाई कोर्ट ने 12 मार्च को जारी अपने आदेश में राज्य सरकार की याचिका को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था। केरल सरकार का कहना है कि घटना उस समय हुई थी जब विधानसभा का सत्र चल रहा था और अध्यक्ष की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता था। हाई कोर्ट का कहना था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों से सदन की प्रतिष्ठा बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।

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