ट्विटर केस: रविशंकर बोले- कानून का पालन करना ही पड़ेगा, गाजियाबाद मामले में क्‍यों नहीं उठाया कदम

सोशल मीडिया की नई गाइडलाइन पर केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ये गाइडलाइन अचानक नहीं आई हैं ये काम पिछले 3-4 साल से चल रहा था। 25 मई को 3 महीने की अवधि पूरी हो गई।

By TilakrajEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 02:51 PM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 03:26 PM (IST)
ट्विटर केस: रविशंकर बोले- कानून का पालन करना ही पड़ेगा, गाजियाबाद मामले में क्‍यों नहीं उठाया कदम
25 मई को 3 महीने की अवधि पूरी हो गई।

नई दिल्‍ली, एएनआइ। सोशल मीडिया के लिए नए नियमों को न मानने पर ट्विटर के खिलाफ केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है। हालांकि, ट्विटर के तेवर भी अब कुछ नरम पड़ते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया की नई गाइडलाइन पर केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ये गाइडलाइन अचानक नहीं आई हैं, ये काम पिछले 3-4 साल से चल रहा था। इन गाइडलाइन का संबंध सोशल मीडिया के उपयोग से नहीं, सोशल मीडिया के दुरुपयोग से है, ताकि जब इनका दुरुपयोग किया जाए, तो लोग शिकायत कर सकें।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 25 मई को 3 महीने की अवधि पूरी हो गई। मैंने फिर भी कहा कि ट्विटर को एक अंतिम नोटिस और दो। जब दूसरे इन नियमों का पालन कर सकते हैं, तो फिर ट्विटर को क्‍या आपत्ति है। तीन पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए आपको बहुत बड़ी परीक्षा आयोजित करनी है? व्यापार करो, आपके यूजर्स सवाल पूछे उसका स्वागत है, लेकिन भारत के संविधान और कानून का पालन करना पड़ेगा।

उन्‍होंने कहा, 'जब भारतीय कंपनियां अमेरिका या दूसरे देशों में आईटी बिजनेस करने जाती हैं, तो क्या वो अमेरिका या दूसरे देशों के कानूनों का पालन करती हैं या नहीं? आपको भारत में व्यापार करना है, प्रधानमंत्री और हम सबकी आलोचना करने के लिए आपका स्वागत है। लेकिन भारत के संविधान, नियमों का पालन करना होगा।

गाजियाबाद के वीडियो पर इन दिनों काफी बवाल हो रहा है। ट्विटर से भी इस सिलसिले में पूछताछ हो चुकी है। कुछ लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कानून और आईटी मंत्री होने के नाते मैं इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा। इस बारे में पुलिस जांच करेगी। लेकिन अगर ट्विटर का एक ट्वीट को मैनिपुलेटेड या अनमैनिपुलेटेड ट्वीट घोषित करने के लिए नियम है, तो ये गाजियाबाद मामले में लागू क्यों नहीं हुआ?

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