देश के माथे पर एक कलंक की तरह था इंदिरा का आपातकाल, 10 बिंदुओं में जानें- इससे जुड़ी कुछ खास बातें

इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल के खिलाफ जय प्रकाश नारायण ने पूरे देश को एकजुट किया और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया। इस आंदोलन की बदौलत 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हार हुई थी।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 10:01 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 10:55 AM (IST)
देश के माथे पर एक कलंक की तरह था इंदिरा का आपातकाल, 10 बिंदुओं में जानें- इससे जुड़ी कुछ खास बातें
इंदिरा गांधी ने की थी देश में आपातकाल की घोषणा

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारत में लगी इमरजेंसी की घटना को चार दशक से भी ज्‍यादा समय बीत चुका है, लेकिन जब जब इसका दिन आता है तो हर बार इसकी याद भी ताजा हो जाती है। भारत के इतिहास में ये पहला मौका था जब देश ने इस तरह का दौर देखा था। आपातकाल की घोषणा के साथ ही देश के नागरिकों के सभी अधिकार भी खत्‍म हो गए थे। ये सही मायने में सत्‍ता पक्ष और लोगों के बीच एक ऐसे संघर्ष की शुरुआत थी जिसमें आखिरी जीत भी लोगों की ही हुई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून 1975 की रात को देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसके पीछे एक बड़ी वजह उनका कोर्ट द्वारा सत्‍ता से बेदखल किए जाने का डर था। ये आपातकाल 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए लगाया गया था। कुछ बिंदुओं में जाने उस वक्‍त की घटना।  दरअसल 12 जून 1975 को आए इलाहाबाद कोर्ट के फैसले ने इंदिरा गांधी के सियासी जमीन को हिलाकर रख दिया था। जज जगमोहन लाल सिन्‍हा ने उन्‍हें चुनाव में अनियमितताओं का दोषी पाते हुए उनकी संसद सदस्‍यता छह वर्षों के लिए रद कर दी थी। इतना ही नहीं कोर्ट ने उन्‍हें छह साल तक चुनाव लड़ने से भी रोक दिया था। इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन में ये किसी सियासी भूचाल की ही तरह था। कोर्ट के आदेश के बाद इंदिरा गांधी काफी दुखी थीं। माना जाता है कि उस वक्‍त इंदिरा गांधी ने भी इस्‍तीफा देने का मन बना लिया था। उस वक्‍त कांग्रेस के अध्‍यक्ष देवकांत बरुआ हुआ करते थे। उन्‍होंने इंदिरा को सलाह दी थी कि वो खुद कांग्रेस की कमान संभाल लें और उन्‍हें पीएम बना दें। इन दोनों ही बातों से इंदिरा गांधी का मन बदलने का काम संजय गांधी ने किया था। उन्‍होंने ही इंदिरा गांधी को सलाह दी थी वो आपातकाल की घोषणा कर इस समस्‍या से बच सकती हैं। उस वक्‍त तक संजय गांधी इंदिरा गांधी के सबसे बड़े सलाहकार भी थे। इंदिरा गांधी उनकी बातों पर आंख बंद करके विश्‍वास करती थीं। उनकी सलाह को मानते हुए ही इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। हालाकि 24 जून को कोर्ट के फैसले पर इंदिरा गांधी को स्‍टे मिल चुका था, इसके बाद भी उन्‍होंने आपातकाल की घोषणा की थी। इस घोषणा के साथ ही इंदिरा गांधी के बंगले से एक नारा भी निकला था, जो इंदिरा इज इंडिया का था। इसको कांग्रेसियों ने हाथों हाथ लिया था। इस दौर में पूरा देश कांग्रेस बनाम विपक्ष हो गया था। आपातकाल की घोषणा के साथ ही इंदिरा गांधी के इस फैसले के खिलाफ सबसे पहले बिगुल लोकनायक जय प्रकाश ने फूंका था। उन्‍होंने दिल्‍ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली की और लोगों को इस फैसले के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया। उन्‍होंने सीधेतौर पर इंदिरा गांधी को ललकारा था और लोगों से इंदिरा गांधी को सत्‍ता से बेदखल करने की अपील की थी। जय प्रकाश की अपील देश भर में एक आग की तरह फैल गई थी। देश भर में इंदिरा गांधी के खिलाफ लोग एकजुट हो गए थे। जगह जगह प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया था। साथ ही सरकार ने अपनी तरफ से इन प्रदर्शनों को कुचलने की भी तैयारी बड़े ही जोर-शोर तरीके से की थी। हजारों की संख्‍या में लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन्‍हें जेलों में बंद कर दिया गया था। आनंदमार्ग के अंतर्गत आने वाले करीब सौ से अधिक संगठनों को भी सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल में मीडिया की भी आजादी छीन ली गई थी। अखबारों में जाने वाली हर खबर को पहले देखा जाता था और उसके बाद ही इसको छपने की इजाजत दी जाती थी। मनमानी करने वाले अखबारों को रातों-रात बंद करने की सरकार ने मुहिम शुरू कर दी थी। दूसरी तरफ जेपी के आंदोलन के साथ सारा देश एकजुट हो गया था। देश के हर कोने में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इनका मकसद केवल इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व वाली सरकार को हटाना था। देश के कोने कोने में राजनेताओं की धरपकड़ की जा रही थी। जनसंध के कई बड़े और छोटे नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी इस दौर में जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। जेल में रहते हुए ही उन्‍होंने इंदिरा गांधी की हुकूमत के खिलाफ एक कविता रच डाली थी, जिसको बाद में काफी लोकप्रियता हासिल हुई। इस कविता में बरुआ को भी निशाने पर लिया गया था। ये दौर ऐसा था जिसमें कई सारे नारे देश में गूंज रहे थे। इनमें से एक नारा पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने भी दिया था। ये था, जेल का ताला टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा। जिस वक्‍त पूरे देशा में इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे उसी वक्‍त सुषमा और जॉर्ज फर्नांडिस भी इस मुहिम को आगे बढ़ाने में लगे थे। उस वक्‍त वो एक ट्रेड यूनियन के बड़े नेता था। गिरफ्तारी से बचने के लिए वो लगातार वेश और अपना ठिकाना बदल रहे थे। उन्‍होंने भी इंदिरा गांधी के खिलाफ लोगों को उठ खड़े होने का आहृवान किया था। जब उन्‍हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया तो सुषमा ने ये नारा दिया था। उस वक्‍त सुषमा ने आपातकाल के खिलाफ न सिर्फ लोगों को जागरुक किया बल्कि इस मुहिम को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा इसका भी खाका तैयार किया था। आपातकाल और इसके खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन हुए उसका ही नतीजा था कि 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी अपनी ही सीट हार गई थीं। मजबूरन उन्‍हें पीएम हाउस छोड़ना पड़ा था। ये उनके लिए बेहद शर्मनाक पल था।

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