रिजर्व बैंक ने एक डिजिटल करेंसी के रूप में ई-रुपया का आइडिया किया पेश
केंद्रीय बैंकों के लिए डिजिटल के साथ-साथ वर्चुअल का वक्त आ गया है। अगर नकदी पर आधारित अर्थव्यवस्था का ज्यादातर हिस्सा डिजिटल हो गया तो नकली मुद्रा से लेकर आतंकवाद के आर्थिक पोषण और रिश्वतखोरी एवं बेनामी लेन-देन पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा।
संजय वर्मा। जिस वक्त देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत बद से बदतर हो रखी हो और घटती कमाई के चलते आम जनता का हाल बेहाल हो, उस दौर में रुपये-पैसे की कोई चर्चा सुहावनी ही लगती है। ऐसी बातें सुनकर लगता है कि शायद सरकारों, उनकी आर्थिक संस्थाओं और पूंजीपतियों को कोरोना से त्रस्त लोगों का कोई ख्याल आया है। पर इधर जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की ओर से रुपये के इलेक्ट्रानिक चेहरे संबंधी एक प्रारूप की बात कही गई तो मन में सवाल पैदा हुआ कि इसका आम जनता की तकलीफों से भला क्या लेना-देना है? सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) का एक प्रस्ताव पेश करते हुए बताया गया है कि इससे देश में नोट छापने का खर्च बचेगा और नकदी (कैश) पर लोगों की निर्भरता घटेगी। नकली नोटों से जूझती अर्थव्यवस्था और बैंकिंग एवं भुगतान के तमाम डिजिटल उपायों में साइबर लुटेरों की सेंधमारी की हजारों घटनाओं के बीच रिजर्व बैंक के इस विचार पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन देखा जाए तो अब विभिन्न देशों और उनके केंद्रीय बैंकों के लिए डिजिटल के साथ-साथ वर्चुअल या कहें कि क्रिप्टो करेंसी पर काम करने का वक्त आ गया है।
यह कोरोना काल की विवशता है कि दुनिया भर में लोगों को अपना ज्यादातर कामकाज घर बैठे संपन्न करना पड़ा है। इसमें दफ्तरी कामकाज से लेकर कंपनियों की गतिविधियां, बैंकिंग, पढ़ाई और खरीदारी तक-सभी कुछ शामिल हैं। हालांकि बैंकिंग और खरीदारी जैसी आíथक गतिविधियां काफी पहले आनलाइन हो चुकी हैं, लेकिन इधर इनमें कई गुना तेजी आई है। इसके साथ ही साइबर सेंधमारी और लोगों के रुपये-पैसे आनलाइन चुराने की घटनाओं में भी भारी इजाफा हुआ है। इस विडंबना पर चाहें तो हम सिर धुन सकते हैं कि हमारे ही देश में लाखों लोग मजबूरी के चलते या फिर सुविधा की चाह में आर्थिक लेन-देन की जिस आनलाइन व्यवस्था से जुड़े, वहां उन्हें साइबर सेंधमारी से दो-चार होना पड़ा। कभी किसी के खाते से जमा रकम अचानक उड़ जाती है तो कभी एटीएम कार्ड की क्लोनिंग से उन्हें चूना लगा दिया जाता है। इस मामले में सरकारी और निजी, दोनों तरह की बैंकिंग व्यवस्थाएं उन्हें कोई खास दिलासा नहीं दे पाई हैं। यही नहीं, जब देश में पेटीएम, मोबीक्विक, अमेजन-पे और गूगल-पे जैसे निजी इंतजाम धड़ल्ले से भुगतान का प्रबंध कर रहे हैं, तब भी सरकार अपनी ओर से फूलप्रूफ आनलाइन पेमेंट सिस्टम बनाने में हिचकती रही है। इसके अलावा दुनिया में बिटकाइन से लेकर डोजकाइन तक की क्रिप्टो करेंसियां चलन में आ चुकी हैं। हमारे देश में भी तमाम लोगों ने सरकारी बंदिशों के बावजूद इनमें निवेश कर रखा है और बीच के अरसे में इनके जरिये खूब चांदी कूटी है, लेकिन सरकार को इनका महत्व समझने और इसके मजबूत विकल्प तैयार करने में उलझन महसूस होती रही है। ऐसे में, अब जबकि रिजर्व बैंक ने एक डिजिटल करेंसी के रूप में ई-रुपया यानी सीबीडीसी का आइडिया पेश किया है तब कह सकते हैं कि उसका यह कदम देर आयद-दुरुस्त आयद वाला है।
मुश्किल को आसान करे डिजिटल : लेकिन यह डिजिटल करेंसी क्या है और यह बिटकाइन जैसी वर्चुअल यानी क्रिप्टो करेंसी से कितनी अलग है? मोटे तौर पर यह रुपये का इलेक्ट्रानिक रूप होगा। यह व्यवस्था उसी तरह काम करेगी, जिस तरह मौजूदा पेटीएम आदि आनलाइन पेमेंट सिस्टम काम करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इसे बरतने वाले लोग अपने स्मार्टफोन से ही ई-रुपये में भुगतान कर सकेंगे या पैसा ट्रांसफर कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि दुनिया में ऐसी पहली डिजिटल करेंसी चलाने का श्रेय बहामास को मिला है। वहां पिछले वर्ष यानी अक्टूबर 2020 में दुनिया की पहली सरकारी डिजिटल करेंसी लांच की गई थी। एक आकलन कहता है कि दुनिया के 86 प्रतिशत सरकारी बैंक इस समय डिजिटल करेंसी के बारे में अध्ययन कर रहे हैं, ताकि उनके यहां ऐसी मुद्रा लाई जा सके। दुनिया के करीब 14 प्रतिशत सरकारी बैंकों ने इसके लिए बाकायदा पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू कर दिए हैं। हमारा पड़ोसी देश चीन भी इस सूची में शामिल है। चीन ने अपनी डिजिटल करेंसी ई-युआन संबंधी पायलट प्रोजेक्ट 2020 में ही लांच कर दिया था। भारतीय रिजर्व बैंक ने अब इसके बारे में काम शुरू करने की जरूरत इस आधार पर बताई है कि इससे तमाम मुश्किलें पैदा करने वाली नकदी पर लोगों की निर्भरता घटेगी। साथ में नोटों की छपाई और सिक्कों की ढलाई पर होने वाला वह भारी-भरकम खर्च भी बचेगा, जो दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है। कुछ और फायदे भी रिजर्व बैंक ने बताए हैं। जैसे-डिजिटल करेंसी के चलन में आने से नकद लेन-देन के सेटलमेंट में आसानी होगी। विदेशी मुद्रा के लेन-देन के मामले में टाइम जोन (मिसाल के तौर पर अमेरिका और भारत के वक्त में अंतर होने की स्थितियों में) अलग होने के बावजूद सेटलमेंट में कोई देरी नहीं होगी। हम अभी कागजी नोटों और धातुओं के सिक्कों पर टिकी अर्थव्यवस्था के पूरी तरह डिजिटल हो जाने की कल्पना नहीं कर सकते, लेकिन इतना तय है कि अगर नकदी पर आधारित अर्थव्यवस्था का ज्यादातर हिस्सा डिजिटल हो गया तो नकली मुद्रा से लेकर आतंकवाद के आíथक पोषण और रिश्वतखोरी एवं बेनामी लेन-देन पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा।
निवेश का नया जरिया : यूं कागज और सिक्कों पर आधारित अर्थव्यवस्था में करेंसी के रूप-रंग को लेकर कई बदलाव पिछले दशकों में हुए हैं। क्रेडिट और डेबिट कार्ड के वजूद में आने पर हाथ में नकदी लेकर चलने की मजबूरी खत्म हो चुकी है। इसके अलावा प्राय: सभी बैंकों ने नेट-बैंकिंग की सुविधा अपने ग्राहकों को दे रखी है। हालांकि इसमें कई सुरक्षात्मक प्रविधान हैं। इसके लिए खाताधारकों को इंटरनेट से परिचित होना और नेट बैंकिंग के कायदों की जानकारी होना भी जरूरी है। ऐसे में आम खाताधारक इस सुविधा का लाभ नहीं ले पाते हैं। इसके मुकाबले आनलाइन पेमेंट गेटवे (सिस्टम) ज्यादा सुविधाजनक साबित हुए हैं। जैसे कि पेटीएम और गूगल-पे इत्यादि, लेकिन इनका इस्तेमाल भी मोबाइल इंटरनेट रखने वाले और अक्सर शहरी लोग ही कर पाते हैं। गांव-देहात में इनका प्रयोग बहुत सीमित है, लेकिन उपयोग से परे एक मुद्दा करेंसी (मुद्रा) के संचालन, रखरखाव और उनमें निवेश का भी है। यदि किसी मुद्रा में लेन-देन आसान है, उसके रखरखाव में किसी किस्म की धांधली की गुंजाइश नहीं है और उसमें निवेश का भी एक पहलू शामिल है-तो ऐसी मुद्रा की मांग स्वत: बढ़ जाती है। बिटकाइन जैसी क्रिप्टो या कहें कि वर्चुअल करेंसियों ने साबित किया है कि यदि उन्हें खरीद लिया जाए तो वे किसी शेयर या सोने में किए गए निवेश जैसी साबित हो सकती हैं। यह एक अपेक्षाकृत नई बात है, लेकिन सट्टेबाजी, मनीलांडिंग जैसे आíथक अपराधों और आतंकवाद के पोषण (टेरर फंडिंग) में इनके इस्तेमाल की गुंजाइश को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में वर्ष 2018 में ही क्रिप्टो करेंसी में लेन-देन को गैरकानूनी घोषित कर दिया था।
हालांकि बिटकाइन और डोजकाइन आदि मुद्राओं की खरीद-फरोख्त हमारे देश में छिटपुट तौर पर जारी है, लेकिन केंद्र सरकार के रवैये को देखते हुए भारत में इनका भविष्य तब तक अनिश्चित माना जा सकता है, जब तक कि खुद सरकार ऐसी मुद्रा नहीं ले आती है। कुछ वर्ष पहले भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से बिटकाइन की तर्ज पर लक्ष्मीकाइन जारी करने की संभावना पर विचार किया गया था, लेकिन क्रिप्टो यानी कंप्यूटर पर सृजित मुद्राओं के खतरों को भांपते हुए इस योजना को आगे नहीं बढ़ाया गया। इधर तो केंद्र ने वर्चुअल करेंसी पर पाबंदी लगाने का एक विधेयक भी तैयार किया है, जिसे इसी मानसून सत्र में पास कराने की तैयारी है।
बेशक सरकार को जाली करेंसी, साइबर धोखाधड़ी और ब्लैकमनी जैसी चीजों पर रोक लगाने के प्रबंध करने ही चाहिए। पर उसे दुनिया की चाल पर भी निगाह रखनी चाहिए। आज अगर सरकार ई-रुपये यानी डिजिटल करेंसी पर सहमत हो रही है तो उसे यह भी देखना चाहिए कि एलन मस्क जैसे कारोबारी अपनी कंपनी-टेस्ला की कारों की खरीद-फरोख्त में बिटकाइन को स्वीकार करने को तैयार हैं।
वहीं कई देश हैं, जो अब धीरे-धीरे वर्चुअल करेंसी को मान्यता देने लगे हैं। यही नहीं, अब तक जिन देशों के पास तेल और अमेरिकी डालर जैसी विदेशी मुद्रा के बड़े भंडार होते थे, वे अमीर माने जाते थे। पर पिछले कुछ अरसे से यह मिथक टूटता लग रहा है। इसे असल में अब आभासी मुद्रा (डिजिटल, क्रिप्टो या वर्चुअल करेंसी) से चुनौती मिल रही है, जो ‘क्रिप्टोमाइनिंग’ तकनीक से पूरे विश्व में फैलती जा रही है।
आज की तारीख में बिटकाइन पर भी कुछ देशों में पाबंदी है, परंतु उसका कामकाज अभी भी जारी है, बल्कि उसकी जितनी कीमत दुनिया की किसी अन्य मुद्रा की नहीं है। दुनिया में जितनी भी मुद्राएं (करेंसी नोट आदि) हैं, उन पर किसी न किसी बैंक या सरकार का नियंत्रण है। बैंकों और सरकारों की साख और अर्थव्यवस्था की ताकत के हिसाब से उनकी मुद्राओं का मूल्य तय होता है। पर वर्चुअल यानी क्रिप्टो करेंसी इन सारे नियम-कानूनों से परे हैं। इन्हें न तो हकीकत में कागज या सिक्कों के रूप में मुद्रित किया अथवा ढाला जाता है और न ही इन पर किसी बैंक या सरकार का हक होता है। ऐसे में केंद्र सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि डिजिटल करेंसी की तरह ही वह बिटकाइन की तरह अपनी एक क्रिप्टो करेंसी भी तैयार करे।
लक्ष्मीकाइन के रूप में इसका एक विचार कुछ वर्ष पहले आ भी चुका है। कोशिश की जाए कि वह वर्चुअल करेंसी बिटकाइन जैसी सनसनी भले न पैदा करे, लेकिन वित्तीय लेन-देन का सुरक्षित, त्वरित और आसान तरीका जरूर बन सके। बात चाहे डिजिटल करेंसी की हो या वर्चुअल करेंसी की, मोबाइल-इंटरनेट से आसान भुगतान का एक विकल्प जनता को देना एक अच्छी पहलकदमी हो सकती है। इन मुद्राओं के लेन-देन को सुरक्षित करने और इनमें लगी आम जनता की रकम को महफूज रखने की जो भी चुनौतियां हैं, उनसे उबरने के नए रास्ते खोजने ही होंगे, क्योंकि ये बदलते वक्त की मुद्राएं हैं। आगे का जमाना इन्हीं का है। अच्छा है कि अभी से इन्हें सावधानीपूर्वक बरतने के इंतजाम कर लिए जाएं।
[असिस्टेंट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा]