Chandradhar Sharma Guleri : आखिर ऐसा क्या है कि सौ साल बाद भी `उसने कहा था` का कायम है जलवा

बाबा नागार्जुन की एक कविता याद आती है। शीर्षक है कालिदास सच सच बतलाना। वह कालिदास की कुछ अमर कृतियों के विषय में उनसे तीन सवाल करते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Tue, 07 Jul 2020 07:05 AM (IST) Updated:Tue, 07 Jul 2020 11:01 AM (IST)
Chandradhar Sharma Guleri : आखिर ऐसा क्या है कि सौ साल बाद भी `उसने कहा था` का कायम है जलवा
Chandradhar Sharma Guleri : आखिर ऐसा क्या है कि सौ साल बाद भी `उसने कहा था` का कायम है जलवा

नई दिल्ली [नवनीत शर्मा]। बाबा नागार्जुन की एक कविता याद आती है। शीर्षक है 'कालिदास सच सच बतलाना। वह कालिदास की कुछ अमर कृतियों के विषय में उनसे तीन सवाल करते हैं। इंदुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोए थे... कामदेव के भस्म होने पर रति रोई या तुम रोए थे और अंतिम प्रश्न ... रोया यक्ष कि तुम रोए थे? भाव यह था कि सृजक जब किसी पात्र को महसूस करता है या सिरजता है, उसे शक्ल देता है तो उसमें स्वयं इस प्रकार शामिल हो जाता है कि उसकी पीड़ा को जीवंत अभिव्यक्ति दे देता है।

इसी कविता के आलोक में एक पात्र हमें दिखता है। वह प्रेमी है, वीर है, बुद्धिमान है, वादे का पक्का है, छोटी उम्र में युद्ध के मैदान में देश के काम आ जाता है। नाम और पहचान है, 'नं 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह!! वह प्रथम विश्व युद्ध में लड़ा... इस उम्मीद में कि जिनके लिए लड़ रहा है, वे एक दिन उसके देश को आजाद कर देंगे।

उससे पहले कुछ प्रश्न हैं। क्या इन्सानों की तरह कहानियों की भी उम्र होती है? कितना ही साहित्य लिखा जाता है। कुछ भूल जाता है, कुछ याद रह जाता है। लेकिन ऐसी कौन सी कहानी है, जिसके साथ कई पीढिय़ों का किशोरवय व्यतीत हुआ है? यह कहानी है 'उसने कहा था। यह कहानी नगरकोट यानी कांगड़ा के जलजले के 11 साल बाद 1915 में लिखी गई। जाहिर है तब, जंग को छिड़े हुए एक साल हुआ था।

हिमाचल प्रदेश में गुलेर रियासत की जड़ों वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी पर विश्वयुद्ध का कितना प्रभाव रहा होगा कि जंग के एक साल बाद ही उन्होंने ऐसी कहानी लिख दी जिसमें कहानीकार कहीं से भी बनावटी नहीं लगता। युद्ध का वातावरण, सर्दी और उसमें स्वदेश की याद... युद्धजन्य स्थितियां, सब वास्तविक महसूस होता है। युद्ध तो 1918 में समाप्त हुआ था।

सरस्वती में प्रकाशित होने के बाद यह कहानी पूरी तरह छा चुकी थी। लोगों को तो इसने अपनी अद्वितीयता के आगोश में लिया ही, अब तक यह कहानी गुलेरी जी के संपादकत्व, उनके निबंधों और अन्य कई विधाओं में निष्णात होने की चमक पर छाई हुई है। प्रचुर लेखन के बावजूद 'उसने कहा था ही गुलेरी जी की पहचान बन गई। क्यों हुआ ऐसा? इस प्रश्न के उत्तर की खोज में एक सदी से विद्वानों ने योगदान किया है।

किसी ने इसे फ्लैशबैक की तकनीक का कमाल बताया है। कुछ इसमें गुलेरी जी को कई भाषाओं में पारंगत बताते हैं जो वह थे ही। पूर्व के संयुक्त पंजाब में जो क्षेत्र आते हैं, उनमें इसे आंचलिक शब्दों के बेलाग इस्तेमाल के लिए याद किया जाता है। हिमाचल के कतिपय आलोचक को और कुछ नहीं दिखा तो उसने इस कहानी में अश्लीलता का आरोप भी जडऩा चाहा। यह और बात है कि लोगों के इस प्रकार के आकलन को वसीम बरेलवी के उस शेर के आलोक में देखा: 

कितनी आसानी से मशहूर किया है खुद को मैंने अपने से बड़े शख्स को गाली देकर। इस कहानी पर इतनी चर्चा के बावजूद नामवर सिंह भी यही कह गए कि इस कहानी का अभी और मूल्यांकन होना शेष है। जीवन में जब हर पल परिवर्तन देखने में आता है, इस कहानी में ऐसा क्या है कि यह सौ साल बीतने के बाद भी बारहमासी बनी हुई है। इसका एक जवाब तो इस कहानी की तमाम खूबियां हैं, जिनमें स्वाभाविक रूप से कथ्य और शिल्प भी शामिल हैं।

दूसरा इसलिए भी कि युद्ध में वीरता, प्रेम में आदर्श, भारतीय सामाजिकता के मूल्यों का चित्रण इससे बेहतर क्या होगा। अमृतसर में रेशम का सालू आढऩे वाली लड़की जब सूबेदारनी बन जाती है तो वह लहना सिंह से यही कहती है कि जैसे मुझे बिगड़े हुए घोड़े से बचाया था, वैसे ही मेरे पति और पुत्र की भी रक्षा करना। ये वे आदर्श थे जिनकी जड़ें अब कुछ कुछ हिलने लगी हैं। 

इसके बावजूद उसने कहा था की ख्याति का सबसे बड़ा कारण संभवत: बाबा नागार्जुन की उपरोक्त कविता की परतों में छुपा है। लहना सिख है, पंजाबी है लेकिन उससे और उसके मित्रों से खंदक में कई पहाड़ी संदर्भ कहलवा देते हैं। उदाहरण के लिए पहाड़ का गीत... लाणा चटाका कद्दुए नूं। फिर जब लहना कहता है, 'मैं तो बुलेल की खड्ड में मरूंगा। फिर नगरकोट का जलजला... सूरज निकलता नहीं और खाई में दोनों तरफ से चम्बे की बावलियों के से सोते झर रहे हैं... एक धावा हो जाय, तो गरमी आ जाय।

यह संभव नहीं है कि सृजक जिन पात्रों को गढ़े उनमें शामिल न हो। इस ऐतबार से वह सूबेदारनी में हैं, वजीरा सिंह में हैं, लेकिन उनका प्रखर, मेधावी, आदर्शवादी, प्रेमी रूप केवल और केवल लहना सिंह में बोला है। अब इससे अधिक क्या बताएं हम कि लहना कौन है?

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