क्वाड करेगा कमाल! अफगानिस्तान, दक्षिण चीन सागर में बढ़ते चीनी वर्चस्व को लेकर टिकी दुनिया की नजरें

चीनी वर्चस्व को थामने के लिए भारत जापान अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने क्लाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलाग यानी क्वाड(QUAD) का गठन किया। अब 24 सितंबर को अमेरिका में इसकी बैठक होने जा रही है। क्वाड देशों की मीटिंग पर दुनिया की नजरें टिकी।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 10:33 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 10:33 AM (IST)
क्वाड करेगा कमाल! अफगानिस्तान, दक्षिण चीन सागर में बढ़ते चीनी वर्चस्व को लेकर टिकी दुनिया की नजरें
क्वाड देशों की बैठक पर दुनिया की नजरें टिकी।(फोटो: दैनिक जागरण)

नई दिल्ली, जेएनएन। चीन की आक्रामकता से दुनिया परेशान हैं। कुछ देश सीधे उसकी इस हरकत से त्रस्त हैं तो कुछ को आभासी चिंता खाए जा रही है। अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम यानी बीस साल बाद अमेरिका की वापसी और चीन की वहां पर बढ़ी दखल ने दशकों से चले आ रहे दक्षिण चीन सागर विवाद में घी का काम किया है। चीन को थामने के लिए भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने क्लाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलाग यानी क्वाड का गठन किया। अब 24 सितंबर को अमेरिका में इसकी बैठक हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी इस मीटिंग में शिरकत करेंगे जहां दक्षिण चीन सागर और अफगानिस्तान में बढ़ते चीनी वर्चस्व के अलावा द्विपक्षीय मसलों पर इन देशों के बीच वार्ता होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से यह इनकी पहली आमने-सामने की बैठक होगी।

इस तय कार्यक्रम से पहले ही आस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता से लैस युद्धपोत मुहैया कराने के लिए ब्रिटेन और अमेरिका ने करार किया है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता लाने और साझा हितों को सुरक्षित करने के लिए इन देशों ने एयूकेयूएस (आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) नामक संगठन बनाया है। क्वाड से ही चीन को मिर्ची लगती थी, वह इसे एशियाई नाटो बताता फिरता था, अब इस घटनाक्रम से उसे बर्र ने डंक मार दिया है। क्वाड से आगे क्वाड प्लस की भी बात हो रही है। ऐसे में अगर इन देशों के बीच पारस्परिक आíथक, सामरिक और कूटनीतिक संबंध ज्यादा मजबूत होते हैं तो ड्रैगन की कमर टूटने में कोई दो राय नहीं। इस नए घटनाक्रम के बाद अफगानिस्तान और दक्षिण चीन सागर में बढ़ते चीनी वर्चस्व के आलोक में हो रही क्वाड देशों की मीटिंग पर दुनिया की नजरें टिकी हुई है। ऐसे में चीन पर दबाव बनाने में क्वाड की कामयाब की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

क्या है क्वाड?

2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया साथ आए थे। इसे सुनामी कोर ग्रुप नाम दिया गया था। उस समय इस गठजोड़ ने राहत एवं बचाव कार्यो को गति देने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि तात्कालिक उद्देश्य पूरा होने के बाद यह समूह बिखर गया। 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री एबी शिंजो ने क्वाड के गठन का विचार दिया था। हालांकि आस्ट्रेलिया ने समर्थन नहीं किया और यह गठजोड़ नहीं बन पाया। 2017 में आसियान सम्मेलन से ठीक पहले आस्ट्रेलिया साथ आया और क्वाड अस्तित्व में आया।

नाटो नहीं है क्वाड

नाटो

- यह सांस्कृतिक रूप से समान पश्चिमी देशों का रणनीतिक गठजोड़ है

- नाटो के सभी देश रूस को एक साझा खतरे के रूप में देखते हैं

- गठन के समय सोवियत संघ को रोकने की स्पष्ट रणनीति थी

क्वाड

- क्वाड के सदस्य देशों के बीच बहुत ज्यादा सांस्कृतिक समानता नहीं है

- चीन से साझा खतरे जैसी कोई स्पष्ट तस्वीर इन देशों के बीच नहीं है

- चीन के साथ सभी सदस्य देशों के गहरे कारोबारी रिश्ते हैं

अभी कई कदम चलना है

कूटनीतिक मोर्चे पर अभी क्वाड को बहुत मजबूत होने की जरूरत है। अभी यह औपचारिक संगठन का रूप नहीं ले पाया है। जापान इसकी लोकतांत्रिक पहचान पर जोर देता रहा है, जबकि भारत का पूरा जोर काम के स्तर पर गठजोड़ को लेकर है। इन सबसे इतर, आस्ट्रेलिया इस बात से बचता रहा है कि इस समूह को औपचारिक संगठन का स्वरूप दिया जाए। फिलहाल सभी देश चीन से जुड़ी अपनी चिंताओं को लेकर एक धरातल पर हैं। चारों देश एक रचनात्मक एजेंडा बनाने के पक्ष में हैं।

चीन पर लगाम

बात चाहे हिंद-प्रशांत क्षेत्र की हो या उससे इतर की, दुनिया के लोकतांत्रिक देश क्वाड को चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर नकेल की तरह देख रहे हैं। माना जाता है कि चीन को रोकना संभव नहीं है, लेकिन उसके समानांतर एक आर्थिक व सामरिक गठजोड़ उसे चुनौती जरूर दे सकता है। क्वाड इस मामले में सक्षम है। अभी क्वाड एक अस्थायी समूह है, जिसे आíथक व सुरक्षा आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में ढाला जा सकता है। फिलहाल विभिन्न एप पर प्रतिबंध लगाकर और आत्मनिर्भरता की नीति पर बढ़ते हुए भारत ने दिखा दिया है कि सरकार चीन का सामना करने के लिए तैयार है।

क्वाड से अमेरिका के हित

क्वाड के अन्य देशों के साथ गठजोड़ अमेरिका के लिए स्वाभाविक है। आस्ट्रेलिया और जापान से उसकी संधियां हैं और भारत उसका महत्वपूर्ण रणनीतिक साङोदार है। डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने इन देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया और अब बाइडन प्रशासन भी क्वाड पर आगे बढ़ रहा है। अपनी बदली हुई रणनीति के तहत अमेरिका क्वाड की मजबूती को चीन की कमजोरी के तौर पर देखता है।

फसाद की जड़

हिंदू-प्रशांत क्षेत्र से अमेरिका के आर्थिक हित जुड़े हैं। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में 1.9 लाख करोड़ डालर (करीब 140 लाख करोड़ रुपये) का अमेरिकी कारोबार दो महासागरों और कई महाद्वीपों को छूने वाले इस क्षेत्र से होकर गुजरा था। दुनिया का 42 फीसद निर्यात और 38 फीसद आयात यहीं से होकर जाता है। इस क्षेत्र की यथास्थिति को बदलने की चीन की कोशिश अमेरिका के लिए चिंता की बात है। दूसरी ओर, जिस तरह से चीन लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन कर रहा है, उसने दुनिया सहित अन्य क्वाड देशों की चिंता भी बढ़ाई है।

जापान के लिए भी है बहुत कुछ

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री एबी शिंजो खुला एवं मुक्त हंिदू-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की दिशा में क्वाड के महत्व को स्वीकारते थे। उन्होंने ट्रंप प्रशासन को इसके लिए तैयार करने में भूमिका निभाई थी। जापान दुनियाभर से अपने कारोबार के लिए समुद्री रास्ते पर बहुत हद तक निर्भर है। जापान के रक्षा बलों ने आस्ट्रेलिया और भारत के साथ संबंधों को मजबूत किया है। साथ ही, उसने पूरे क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग, ट्रेड और इन्फ्रा के विकास पर निवेश किया है। इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता क्वाड के अन्य सदस्य देशों की ही तरह जापान के लिए भी चिंता का कारण है। जापान इस क्षेत्र में चीन की आर्थिक गतिविधियों पर भी नजर रखे हुए है। चीन के बढ़ती दखल को रोकने के लिए वह दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को सहयोग व कारोबार का नया विकल्प देना चाहता है।

भारत के पास मौका

अमेरिका व चीन के बीच ट्रेड वार, कोरोना के मामले में चीन का दुनिया को देरी से बताना और वुहान, हांगकांग, शिनजियांग और गलवन घाटी मामलों में चीन की आक्रामक नीति ने भारत के समक्ष रास्ते खोल दिए हैं। भारत अपनी नीतियों में बदलाव कर व्यापक निवेश हासिल कर सकता है। इससे रोजगार की स्थिति सुधरेगी और क्वाड में भारत की अहमियत भी बढ़ेगी। क्वाड के सदस्य देश संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हुए और साइबर सिक्योरिटी सिस्टम को मजबूत कर डिफेंस डिप्लोमेसी बढ़ा सकते हैं। क्वाड समान विचारधारा वाली ऐसी लोकतांत्रिक शक्तियों का समूह है, जो द्विध्रुवीय दुनिया की विचारधारा को खत्म करने और बहुपक्षीय व्यवस्था को बनाने का माध्यम बनेगा।

गठबंधन के आयाम

दुनियाभर में हालात तेजी से बदल रहे हैं। इस समय 5जी और 6जी तकनीकों को भी ध्यान में रखकर कदम बढ़ाने की जरूरत है। चीन का सामना करना है तो टेक्नोलाजी के क्षेत्र में उसकी दिग्गज कंपनियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसी तरह भारत और जापान के बीच का रणनीतिक गठजोड़ दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है। क्वाड देश नौसना और अन्य मामलों में अपनी विशेषज्ञता का भी लाभ ले सकते हैं। इससे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है।

साझी परेशानी बना चीन

क्वाड के सभी सदस्य देशों के साथ चीन के संबंध तनावपूर्ण हैं। अमेरिका के साथ चीन की तनातनी जगजाहिर है। वहीं कोरोना महामारी के स्रोत की जांच की मांग के बाद से आस्ट्रेलिया भी चीन के आर्थिक प्रतिबंध ङोल रहा है। भारत और जापान का चीन के साथ सीमाई विवाद है।

कुछ और साथियों की जरूरत

क्वाड को अभी हिंदू-प्रशांत क्षेत्र में कुछ और देशों के सहयोग की जरूरत है। क्वाड को लोकतांत्रिक देशों का गठजोड़ कहा जा रहा है, लेकिन दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड जैसे लोकतंत्र इसका हिस्सा नहीं हैं। सभी सदस्य देशों को दायरा बढ़ाने पर विचार करना होगा। क्वाड की ताकत इससे जुड़ने वाले देशों और उनके पारस्परिक साङो हितों से तय होगी। सामूहिक आत्मनिर्भरता इसकी पहली कसौटी बनेगी।

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