जीवन से बड़ी नहीं होतीं समस्याएं, सहनशीलता से सुलझा सकते हैं हर उलझन

सहनशीलता और त्याग से भी जीवन की छोटी-मोटी उलझनों को सुलझाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात है इस सोच पर टिके रहना है कि जीवन समस्याएं खत्म करती है समस्याएं कभी मानव जीवन को खत्म नहीं करती।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 01:37 PM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 01:37 PM (IST)
जीवन से बड़ी नहीं होतीं समस्याएं, सहनशीलता से सुलझा सकते हैं हर उलझन
मनुष्य हर दिन अपनी हसरतों के पीछे भागता है और नाकाम होने का मलाल करता है।

नई दिल्ली, देवेंद्रराज सुथार। कोरोना काल में जापान में आत्महत्या करने वालों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। इससे चिंतित जापान सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। उसने समाज से अकेलेपन की समस्या को दूर करने के लिए एक मंत्री को नियुक्त किया है। अब देखने वाली बात है कि इससे वहां हालात कितने बदलते हैं। इस स्थिति के लिए कई वजहें हो सकती हैं। आज यह कहें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी कि आधुनिक मनुष्य का जीवन मशीन के रूप में ढलता जा रहा है। मनुष्य हर दिन अपनी हसरतों के पीछे भागता है और हर रात अपनी कोशिशों के नाकाम होने का मलाल करता है। ऐसे में अगर उसे तनाव हो जाए तो उसके लिए जिम्मेदार भी वह खुद ही है। अपने लिए सबकुछ हासिल करने की होड़ लोगों में मची हुई है। संतुष्टि का कोई भी पड़ाव कहीं दिखाई नहीं पड़ता है। परिणामत: समृद्धि के बावजूद अकेलापन आदमी को खाए जा रहा है। कुछ गरीब और नव धनाढ्य परिवार भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

उनके बारे में कहा जा रहा है कि वे महंगाई के कारण दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं इसलिए वे तनाव से ग्रस्त होते जा रहे हैं। आज से 100 वर्ष पहले आज से अधिक अभावग्रस्तता थी, फिर भी उस समय के लोग अधिक जिंदादिल और ईमानदार माने जाते थे। वे भले कम पढ़े लिखे थे, लेकिन उनमें सामाजिकता अधिक थी। वे जीवन को आज जैसा आत्मकेंद्रित नहीं बनाए हुए थे, बल्कि तब उनके जीवन हर्षोल्लास से भरे हुए थे। अब तो त्योहार आते हैं और जाते हैं, हमारी एकरसता जस की तस बनी रहती है। विज्ञान के आविष्कृत उपकरणों के ऊपर हमारी निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि आज जिसके पास जितनी विलासिता की वस्तु है वह उतना ही संपन्न माना जाता है। प्रत्येक दिन नए-नए उपकरण आ रहे हैं। जो आज काफी खर्च कर हासिल किया जाता है, कुछ ही दिन के बाद पुराना हो जाता है। नए ट्रेडिशन की फिर धूम मचने लगती है। फिर नया खरीदने की जद्दोजहद। खुशियों का बाजारीकरण होता जा रहा है। जो इस प्रतियोगिता में शामिल नहीं हैं, उन्हें कंजूस या अनाधुनिक कहकर चिढ़ाया जाता है। पारिवारिक आयोजनों में क्षमता से अधिक खर्च करना और फिर कर्ज में लद जाना मानसिक दबाव की शुरुआत मानी जाती है। कमखर्ची को कंजूसी मानने की परंपरा है।

इन सभी चीजों का समाधान है जीवन को व्यापक दृष्टि से देखना, झूठी प्रतिष्ठा, शान को तिलांजलि देना, दूसरे लोगों की जिंदगी से अपने को जोड़ना, अपनी भावनात्मक समस्याओं को शेयर करना, दूसरों की समझ से अपने को समन्वित करना। सहनशीलता और त्याग से भी जीवन की छोटी-मोटी उलझनों को सुलझा सकते हैं। सबसे बड़ी बात है इस सोच पर टिकना कि समस्याएं मानव जीवन से बड़ी नहीं होतीं। एक और बात याद रखें कि जीवन समस्याएं खत्म करती है, समस्याएं कभी जीवन को खत्म नहीं करती हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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