प्रशांत ने हजारों दिव्यांगों को बनाया बाहुबली, जर्मन तकनीक से बने रोबोटिक हाथों को दिया नया रूप

प्रशांत गाडे ने जर्मन तकनीक से ढाई से तीन लाख रुपये में बनने वाले रोबोटिक हाथ में बदलाव किया और इसके निर्माण को महज दस-बारह हजार के खर्च में समेटकर कौशल सिद्ध कर दिखाया। इन हाथों से दिव्यांग खाना खा सकते हैं कंप्यूटर और बाइक भी चला सकते हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 06:41 PM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 06:41 PM (IST)
प्रशांत ने हजारों दिव्यांगों को बनाया बाहुबली, जर्मन तकनीक से बने रोबोटिक हाथों को दिया नया रूप
स्वनिर्मित रोबोटिक हैंड (स्वचलित हाथ) का आरोपण कर हजारों दिव्यांगों को बाहुबली बना रहे प्रशांत

कुमार अजय, वाराणसी। इस कहानी की शुरुआत कोई दो दशक पहले हुई। मध्य प्रदेश के खंडवा निवासी गाडे परिवार के बुजुर्ग मुखिया का देहावसान हो गया। अंतिम गृह स्नान के लिए घर के आंगन में जब पार्थिव शरीर को वस्त्रों से मुक्त किया जाने लगा तो वहीं मौजूद दिवंगत के मासूम पौत्र प्रशांत गाडे के मन में बाल जिज्ञासा उभरी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? पिता बोले-बेटा, जहां दादा जी जा रहे हैं, वहां कोई कुछ नहीं ले जा पाता। इस कठोर सत्य की जड़ें बालक प्रशांत गाडे के अंतस में गहराई तक बैठ गईं। उनके उत्कंठित मन ने 'लेकर नहीं जा सकते तो क्यों न दुनिया को कुछ देकर जाएं' का जज्बाती फलसफा गढ़ा। प्रशांत आज स्वनिर्मित रोबोटिक हैंड (स्वचलित हाथ) का आरोपण कर हजारों दिव्यांगों को बाहुबली बना रहे हैं। असली नायक का मान पा रहे हैं।

दिव्यांग महिला के दर्द ने बदली जीवन की धारा

प्रशांत हाल ही में चार दिनों के काशी प्रवास में 90 से भी अधिक दिव्यांगों को स्पंदित हाथ का उपहार देकर पुणे रवाना हो गए। दिवंगत दादा की इच्छा पूरी करने के लिए प्रशांत ने इंजीनियरिंग में दाखिला तो लिया था, किंतु नौकरी व पैकेज की अंधी होड़ से उचाट होकर पढ़ाई बीच में छोड़ दी। एक दिन उनकी मुलाकात दोनों हाथों से वंचित एक दिव्यांग महिला से हुई। उस महिला के दर्द को प्रशांत ने अपना बना लिया और पढ़ाई में हासिल ज्ञान को गहन शोध की गहराइयों तक पहुंचाया।

तीन लाख के जर्मन रोबोटिक हैंड को दस हजार में बना रहे

जर्मन तकनीक से ढाई से तीन लाख रुपये में बनने वाले रोबोटिक हाथ में बदलाव किया और इसके निर्माण को महज दस-बारह हजार के खर्च में समेटकर प्रशांत ने अपना कौशल सिद्ध कर दिखाया। इन हाथों से दिव्यांग खाना खा सकते हैं, वजन उठा सकते हैं, कंप्यूटर और बाइक भी चला सकते हैं। बिजली से एक घंटे चार्ज करने के बाद एक हाथ 48 घंटे तक काम करता है। हालांकि जर्मन रोबोटिक हैंड को चार्ज करने की जरूरत नहीं पड़ती।

प्रशांत के जज्बे से सुधा मूर्ति भी प्रभावित

28 वर्ष के इस नौजवान के काम को इंफोसिस की चेयरपर्सन और जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता सुधा मूर्ति का भी समर्थन हासिल है। सुधा मूर्ति के द्वारा समर्थित अपने इनाली फाउंडेशन के माध्यम से प्रशांत गाडे ने हजारों दिव्यांगों को हाथ देकर उनके अधूरे व्यक्तित्व को पूर्णता दी है। महाराष्ट्र के पुणे में स्थित प्रशांत की वर्कशाप में 30 से ज्यादा इंजीनियर और वर्कर काम करते हैं।

स्वयंसेवी संस्थाएं उनसे रोबोटिक हैंड लेकर दिव्यांगों में मुफ्त वितरित करती हैं। काशी में भी भारत विकास परिषद, वरुणा की ओर से आयोजित तीन दिवसीय निशुल्क शिविर में 90 से अधिक दिव्यांगों को खुद की बांहों का सहारा प्रशांत ने दिया। इनमें काशी के अलावा पूर्वांचल के अन्य जिलों व बिहार के दिव्यांग भी शामिल हैं।

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