Positive India: लॉकडाउन में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की आस बने नौजवान

Positive India घर से डोनर्स को ब्लड बैंक तक लाने का काम शुरू सैनेटाइजेशन का रखा जा रहा है पूरा ध्यान

By Rajat SinghEdited By: Publish:Mon, 30 Mar 2020 05:40 PM (IST) Updated:Mon, 30 Mar 2020 07:47 PM (IST)
Positive India:  लॉकडाउन में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की आस बने नौजवान
Positive India: लॉकडाउन में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की आस बने नौजवान

अमित शर्मा (जयपुर)। Positive India: कोरोना से बचने का एक ही तरीका है, घर में रहें और सुरक्षित रहें। देशभर में लॉकडाउन है और कमोबेश उसका पालन भी हो रहा है। लेकिन एक बीमारी ऐसी है, जिसमें 7 से 15 दिन के अंदर अस्पताल जाकर रक्त चढ़वाना जिंदगी बचाने के लिए जरूरी है। यहां हम थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की बात कर रहे हैं। लॉकडाउन के मद्देनजर जब शहरों-गांवों और कस्बों में कर्फ्यू की सी स्थिति है तो आखिर इन बच्चों के लिए ब्लड कहां से आएगा?

इसी पसोपेश में जयपुर के कुछ युवा घर-घर जाकर ब्लड डोनर्स को ब्लड बैंक तक ला रहे हैं और लोगों से इस काम के लिए ब्लड डोनेशन करवा रहे हैं, ताकि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के जीवन पर संकट न आए। जागरण डॉट कॉम ने एक फेसबुक पोस्ट में जयपुर के पंकज अग्रवाल की अपील देखी। उन्होंने थैलेसीमिया बच्चों का हवाला देते हुए लिखा था कि इन बच्चों को मदद की जरूरत है, जो ब्लड डोनेशन करना चाहें, हमें बताएं, हम घर से आपको ब्लड बैंक तक ले आएंगे और घर पर छोड़कर जाएंगे।

पंकज अग्रवाल के मुताबिक, लॉकडाउन होने से थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए ब्लड का संकट सामने दिख रहा था। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को 7 से 15 दिन के अंदर एक बार PRBC (पैक्ड रैड ब्लड सैल) चढ़ाना होता है। थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चों के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बनता, इस कारण उन्हें नियमित ब्लड चढ़ाना होता है।

पंकज ने बताया कि 12 साल पहले जयपुर के कुछ युवाओं ने मिलकर युवा सामाजिक सेवा संस्था की स्थापना की थी, जिसके जरिए वो नियमित ब्लड कैंप, एसडीपी डोनेशन की व्यवस्था राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल सवाई मानसिंह अस्पताल के लिए कराते आ रहे हैं। लॉकडाउन के वक्त आउटडोर कैंप लग नहीं सकता। लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी भी है और साथ ही ये कोरोना को देखते हुए खतरनाक भी है। ऐसे में वो और उनके साथी घर-घर जाकर डोनर्स को अपनी कार के जरिए ब्लड बैंक तक ला रहे हैं। इसमें सोशल डिस्टैंसिंग का भी खयाल रखा जा रहा है और सैनेटाइजेशन का भी। ब्लड डोनेशन के बाद उन्हें घर तक छोड़ा भी जा रहा है।

जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल के सुप्रिटेंडेंट डॉ. डी. एस. मीणा के मुताबिक लॉकडाउन के बीच ब्लड की कमी का खतरा तो था, लेकिन हम उसे पूरी तरह से कंट्रोल किए हुए हैं। कैंसर पेशेंट, थैलेसीमिया पेशेंट और लाइफ सेविंग जैसे मामलों में रक्त की आपूर्ति बाधित नहीं होने दी जाएगी। थैलेसीमिया पेशेंट्स को एसएमएस में भी ब्लड चढ़वाया जा रहा है, साथ ही राज्य सरकार ने प्राइवेट ब्लड बैंक्स को भी बिना किसी चार्ज के ब्लड ट्रांस्फ्यूजन के आदेश जारी किए हैं। ब्लड की कमी न आए, इसके लिए डोनर्स को मोटिवेट किया जा रहा है, समाज सेवी संस्था भी इस ओर काम कर रही हैं।

युवा संस्था के अध्यक्ष पंकज अग्रवाल बताते हैं कि राजस्थान में पिछले दो दिन में उन्होंने 22 रक्तदाताओं से रक्तदान कराया है, जिससे 22 थैलेसीमिया बच्चों की मदद हो सकी है, साथ ही 22 कैंसर पेशेन्ट्स को आरडीपी भी मिल पाई है। इस जानकारी के साथ अपील भी की गई है कि ऐसे मौके पर जरूरतमंदों की मदद को जो आगे आना चाहें, ब्लड डोनेट करना चाहें, एसएमएस अस्पताल के ब्लड बैंक आकर रक्तदान कर सकते हैं, ऐसी इमरजेंसी सर्विस और सोशल कॉज के लिए पुलिस भी लॉकडाउन में डोनर्स को जाने दे रही है।

क्या होता है थैलेसीमिया

जयपुर के मेट्रो मास अस्पताल में बच्चों के डॉक्टर वीरेन्द्र मित्तल बताते हैं कि थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है, जिसमें हीमोग्लोबिन के संश्लेषण में दिक्कत आती है। ऐसे बच्चों का हीमोग्लोबिन लैवल हमेश कम रहता है। उसे मेंटेन करने के लिए उनकी उम्र के हिसाब से उन्हें 7 से 15 दिन में एक बार रक्त चढ़ाना होता है। ये रक्त पीआरबीसी होता है और ल्यूको रिड्यूस ब्लड ही बच्चों को चढ़ता है। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों में अगर बोन मैरो ट्रांसफर हो जाए तो ठीक, नहीं तो उन्हें ताउम्र रक्त चढ़ाना होता है। रक्त की मात्रा उनकी उम्र और वजन पर निर्भर करती है। भारत में 1938 में थैलेसीमिया का पहला केस सामने आया था। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया मेजर की डिजिज के साथ जन्म लेते हैं।    

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