देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या में इजाफा, दर्ज हुआ इतना बड़ा अंतर

देश की नदियों में प्रदूषण को लेकर पूछे गए सवालों के लिखित उत्तर में केंद्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ([सीपीसीबी)] द्वारा जारी एक रिपोर्ट के आधार पर यह जानकारी दी। पढ़ें पूरी खबर।

By Pooja SinghEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 12:29 AM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 12:29 AM (IST)
देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या में इजाफा, दर्ज हुआ इतना बड़ा अंतर
देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या 302 से बढ़कर 351 हुई

नई दिल्ली([एजेंसी)]। देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2015 में ऐसे क्षेत्रों की संख्या 302 थी जो 2018 में बढ़कर 351 हो गई। यह जानकारी लोकसभा में एक सवाल के जवाब में दी गई। देश की नदियों में प्रदूषण को लेकर पूछे गए सवालों के लिखित उत्तर में केंद्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ([सीपीसीबी)] द्वारा जारी एक रिपोर्ट के आधार पर यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि नदियों में सबसे ज्यादा प्रदूषण गंदे नालों एवं सीवर के पानी से हो रहा है। इसके अलावा तेजी से ब़़ढते शहरीकरण के साथ औद्योगिकीकरण भी इसके लिए जिम्मेदार है। मंत्री ने कहा कि कुछ विशेषषज्ञों ने नदियों के जलप्रवाह में कमी को लेकर चिंता जताई है, लेकिन जलप्रवाह के आंक़़डों पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय जल आयोग ने विगत वषर्षो की स्थिति का अध्ययन किया है और उसने कहीं पर भी जल की उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी का संकेत नहीं दिया।

वहीं आज नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वेदों और पुराणों का हवाला देते हुए कहा कि जो व्यक्ति तालाबों, कुओं या झीलों के पानी को प्रदूषित करता है, वह नरक में जाता है। एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण पश्चिम की सोच या कोई ऐसी चीज नहीं है जिसकी उत्पत्ति कुछ दशक या कुछ शताब्दी पहले हुई है।

ट्रिब्यूनल ने कहा, 'भारत में कम से कम इस बात के पर्याप्त दस्तावेज हैं जो दिखाते हैं कि इस देश के लोगों ने प्रकृति और पर्यावरण को उचित सम्मान दिया है और समग्रता व श्रद्धा का व्यवहार किया है। इसमें सभी समुदाय और संगठन शामिल हैं।

'एनजीटी ने आगे कहा, 'असल में हमारे वैदिक साहित्य में मानव शरीर को पंचभूतों से निर्मित माना गया है जिनमें आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी शामिल हैं। प्रकृति ने इन तत्वों और प्राणियों में संतुलन बनाए रखा है। हम पाते हैं कि अनादि काल या वैदिक काल या पूर्व वैदिक काल से भारतीय उपमहाद्वीप के संत और ऋषि-मुनि महान दूरदृष्टा थे। उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से ब्रह्मांड के सृजन को समझा।

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