वाजपेयी के लिए हनुमान थे जसवंत सिंह, कई कठिन मौकों पर दिया सूझबूझ का परिचय

जसवंत सिंह वाजपेयी के जहां करीबी थे वहीं पार्टी के लिए संकटमोचक भी थे। कई मुश्किल मोर्चों पर उन्होंने पार्टी को उबारा। बात चाहे भारत के न्‍यूक्लियर टेस्‍ट की हो या यूएनजीए में संबोधन की उन्‍होंने हर बार देश का पक्ष मजबूती से रखा।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 10:51 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 10:51 AM (IST)
वाजपेयी के लिए हनुमान थे जसवंत सिंह, कई कठिन मौकों पर दिया सूझबूझ का परिचय
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कई अहम पदों पर रहे थे जसवंत सिंह

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व वरिष्‍ठ नेता जसवंत सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। वो बीते कई वर्षों से कोमा में थे और जिंदगी की जंग लड़ रहे थे। भाजपा को मजबूत करने में भी उनका खासा योगदान था।पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्‍य नेताओं समेत अन्‍य पार्टियों के नेताओं ने भी उन्‍हें अपनी श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि वे राजनीति और समाज को लेकर अपने अलग तरह के नजरिए के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। पीएम ने उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्‍यक्‍त की हैं।

3 जनवरी 1938 को बाड़मेर जिले के जसोल गांव में जन्‍में जसवंत सिंह अपनी बातचीत की शैली और अपने ड्रेस के लिए खासा चर्चित थे। वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश, रक्षा और वित्त जैसे तीनों अहम विभागों के भी मंत्री थे। इसके अलावा उन्‍हें योजना आयोग का उपाध्‍यक्ष भी बनाया गया था। वो भाजपा के उन गिने-चुने नेताओं में से थे जो आरएसएस की पृष्ठभूमि से नहीं आते थे। उनके पास थी बात करने की जो कला थी वो कम ही लोगों के पास होती है। वो बहुत सोच-समझकर ही कुछ कहते थे। वो अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीबी और उनके विश्वासपात्र लोगों में शामिल थे। भाजपा के सहयोगी दलों के बीच सामंजस्‍य बिठाने और उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए भी वाजपेयी जसवंत पर ही भरोसा करते थे। शायद यही वजह थी कि वो उन्‍हें अपना हनुमान भी कहते थे।

कंधार विमान हाईजैक में बंदी यांत्रियों को छुड़वाने में भी उनकी अहम भूमिका थी। गौरतलब है कि 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर IC-814 का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। ये विमान नेपाल की राजधानी काठमांडू से दिल्‍ली आ रहा था। उड़ान के कुछ देर बाद ही आतंकियों ने इसको अपने कब्‍जे में लिया और इसको पहले अमृतसर, लाहौर, दुबई और फिर अफगानिस्‍तान के कंधार ले गए थे। इस विमान में सवार यात्रियों को छोड़ने के लिए उन्‍होंने भारतीय जेलों में बंद अपने 40 खूंखार आतंकियों को छोड़ने की मांग की थी। इसके बाद केंद्र में हलचल बढ़ गई थी और लगातार बैठकों का दौर जारी था।

ऐसे में सरकार की तरफ से आतंकियों से बातचीत करने वाले जसवंत सिंह ने केवल तीन आतंकियों को छोड़ने पर उनके साथ सह‍मति बना ली थी। सभी को विश्‍वास में लेकर यात्रियों के बदले तीन छोड़ने का फैसला किया। जसवंत सिंह खुद इन आंतकियों को लेकर कंधार गए और उनके बदले यात्रियों को छुड़वाया। इस घटना में विमान में सवार एक यात्री की आतंकियों ने हत्‍या कर दी थी जबकि 17 को घायल कर दिया था। इस विमान में क्रू को मिलाकर कुल 190 यात्री सवार थे। यात्रियों के बदले रिहा किए जाने वाले आतंकी मुश्ताक अहमद जरगर, अहमद उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर शामिल थे। आज भी पाकिस्‍तान में आतंक का बीज बो रहे हैं।

11 मई 1998 को भारत ने पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद अमेरिका ने बेहद सख्‍त रुख इख्तियार करते हुए भारत के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। उस वक्‍त इन प्रतिबंधों को लेकर केंद्र की तरफ से जसवंत सिंह ने भी अमेरिका के साथ सीधी बातचीत में भारत का पक्ष स्‍पष्‍ट शब्‍दों में रखा था। इस बातचीनत में उन्होंने अमेरिका को ये बात साफ कर दी थी कि भारत अपनी सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता है। उन्‍होंने ये भी साफ कर दिया था कि भारत अपनी परमाणु शक्ति का उपयोग हमेशा दूसरों की शांति और विकास के लिए ही करेगा, लेकिन साथ ही अपनी सैन्‍य ताकत को भी पूरी तरह से मजबूत रखेगा। इस परमाणु परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति का नाम दिया गया था। इसकी सबसे खास बात ये थी कि अमेरिका को इस परीक्षण की कानोकान खबर नहीं लग सकी थी। इस वजह से भी अमेरिका काफी बौखलाया हुआ था। उसको ये लग रहा था कि ये परीक्षण की बादशाहत को खुली चुनौती दे रहा है।

19 सितंबर 2000 को संयुक्‍त राष्‍ट्र की आम महासभा को संबोधित करते हुए भी उन्‍होंने भारत के परमाणु परीक्षण और अमेरिकी प्रतिबंधों पर देश का पक्ष मजबूती से रखा था। इस दौरान उन्‍होंने साफ कर दिया था कि भारत को सीटीबीटी (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treat) के मौजूदा स्‍वरूप से नाराजगी है। उनका कहना था कि इसके लिए होने वाली किसी भी अहम बैठक में भारत शरीक होने और अपना पक्ष रखने को भी तैयार है। उन्‍होंने कहा था कि किसी भी समझौते पर हस्‍ताक्षर से पहले ये जरूरी होता है कि इसमें शामिल सभी देशों के बीच विचारों का आपसी सामंजस्‍य स्‍थापित किया जा सके। इस संबोधन में उन्‍होंने हथियारों की होड़ रोकने की अपील के साथ आतंकवाद पर करारा प्रहार करने के लिए भी पूरी दुनिया को आगे आने का आह्वान किया था। यहां पर दिए संबोधन में उन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र में सुधारों की पुरजोर वकालत की थी।

जसवंत सिंह की सलाह पर अटल बिहारी वाजपेयी ने 14 से 16 जुलाई, 2001 के बीच जनरल परवेज मुशर्रफ को शिखर वार्ता के लिए आगरा बुलाने का फैसला किया गया था। मुशर्रफ ने ही कारगिल की पटकथा लिखी थी और इसको भारत के खिलाफ पाकिस्‍तान का एक सफल ऑपरेशन भी कहा था। हालांकि आगरा वार्ता के दौरान दोनों ही देश किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके और संयुक्त वक्तव्य के दस्तावेज के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई। इसका नतीजा ये हुआ कि मुशर्रफ को खाली हाथ पाकिस्तान वापस जाना पड़ा था।

2012 में भाजपा ने उन्हें उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन, यूपीए के हामिद अंसारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। अपनी किताब में जसवंत ने मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की। भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। 2010 में उनकी वापसी हुई। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने फिर भाजपा छोड़ दी। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसी साल उन्हें सिर में चोट लगी। इसके बाद से जसवंत कोमा में ही थे।

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