पेगासस जासूसी मामले में इन चीजों की होगी जांच, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इसलिए बनाई समिति
पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति देखेगी कि क्या नागरिकों के डाटा और बातचीत टेप किए गए अगर हां तो किन-किन लोगों की हुई जासूसी। अगर पेगासस का प्रयोग हुआ तो किस कानून के तहत हुआ और क्या तय प्रोटोकाल व प्रक्रिया अपनाई गई।
नई दिल्ली, जेएनएन। पिछले संसद सत्र के लिए भूचाल बने पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश भी दिए और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरवी रविंद्रन की अध्यक्षता में समिति भी बना दी। समिति को कोई समयसीमा तो नहीं दी गई है, लेकिन मामले की सुनवाई आठ हफ्ते में होनी है लिहाजा माना जा सकता है कि उससे पहले रिपोर्ट आ जाएगी। कोर्ट ने कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक की निजता अहम है, उसका उल्लंघन नहीं हो सकता। बहरहाल, समिति जांच कर बताएगी कि क्या नागरिकों के फोन व अन्य उपकरणों में इजरायली पेगासस स्पाइवेयर का प्रयोग करके उनके डाटा और बातचीत को टेप किया गया, इस तरह किन-किन लोगों की जासूसी हुई और कौन लोग पीड़ित हैं। समिति यह भी जांचेगी कि अगर पेगासस का प्रयोग किया गया तो किस कानून के तहत किया गया और क्या इसके लिए तय प्रोटोकाल और प्रक्रिया अपनाई गई।
समिति इन चीजों की करेगी जांच क्या भारत के नागरिकों के फोन या उपकरणों का डाटा लेने, बातचीत जानने आदि के लिए पेगासस स्पाइवेयर का प्रयोग किया गया। कौन लोग इससे प्रभावित हुए या कौन लोग इसके पीड़ित हैं। 2019 में पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके भारतीय नागरिकों के वाट्सएप को हैक करने की आई खबर के बाद भारत सरकार ने क्या कार्रवाई की थी। क्या केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी केंद्रीय अथवा राज्य एजेंसी ने भारत के नागरिकों के खिलाफ प्रयोग के लिए पेगासस लिया है। अगर किसी सरकारी एजेंसी ने देश के नागरिकों के खिलाफ पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है तो ऐसा किस कानून, नियम, दिशा-निर्देश, प्रोटोकाल के तहत किया गया। ऐसा करने में कानून की तय प्रक्रिया का पालन हुआ या नहीं। अगर किसी घरेलू निकाय ने नागरिकों के खिलाफ स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है तो क्या ऐसा करना अधिकृत है। इसके अलावा इससे संबंधित किसी और पहलू जिसे समिति उचित समझे, जांच कर सकती है।
समिति इस बारे में देगी संस्तुति
निजता के अधिकार को और संरक्षित करने के लिए सर्विलांस के बारे में मौजूदा कानून और प्रक्रिया में बदलाव या कानून बनाना। राष्ट्र और उसकी संपत्ति की साइबर सिक्यूरिटी बढ़ाने और बेहतर करना। कानून की तय प्रक्रिया के अलावा सरकार या गैरसरकारी निकाय द्वारा इस तरह के साफ्टवेयर के जरिये नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन की रोकथाम सुनिश्चित करना। गैरकानूनी सर्विलांस (जासूसी) का संदेह होने पर नागरिकों के शिकायत करने के लिए एक तंत्र की स्थापना। देश में साइबर हमले और उसकी जांच और इससे बचाव के लिए पूरी तरह संसाधनों से सुसज्जित, स्वतंत्र प्रतिष्ठित जांच एजेंसी का गठन। संसद द्वारा मौजूदा खामियों को दूर करने तक नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोर्ट द्वारा अंतरिम उपाय और व्यवस्था।अन्य खास बातें
कोर्ट ने इसलिए बनाई जांच समिति
कोर्ट ने फैसले में कहा कि छह कारणों के चलते ही उन्होंने आरोपों की जांच के लिए केंद्र सरकार की विशेषज्ञ समित गठित करने की मांग नहीं मानी क्योंकि ऐसा करने से पक्षपात नहीं होने देने के न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होता। न्याय होना ही जरूरी नहीं है, न्याय होते हुए दिखना भी जरूरी है। ये छह कारण हैं: निजता और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार प्रभावित होने के आरोप थे, जिनकी जांच की आवश्यकता है। लगाए गए आरोपों के खतरनाक प्रभाव से सभी नागरिक प्रभावित हैं। इस मामले में कार्रवाई के बारे में केंद्र सरकार ने कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया। दूसरे देशों ने आरोपों को गंभीरता से लिया। भारत के नागरिकों के खिलाफ जासूसी में कुछ विदेशी अथारिटीज या एजेंसी या निजी निकायों के शामिल होने की संभावना। आरोप है कि नागरिकों को अधिकारों से वंचित करने में केंद्र या राज्य सरकारें पार्टी हैं। तथ्यात्मक पहलुओं में जाने की रिट क्षेत्राधिकार में सीमा है। उदाहरण के लिए, नागरिकों के खिलाफ टेक्नोलाजी का प्रयोग अधिकार क्षेत्र का तथ्य है, विवादित है और आगे तथ्यात्मक जांच की जरूरत है।