बचपन में सर्दी-बुखार की यह दवा खाने से बड़े होने पर हो सकती है गंभीर बीमारी

ग्लूटाथियोन शरीर से जहरीले तत्वों को साफ करता है और पैरासिटामोल इस ग्लूटाथियोन का ही खात्मा कर देता है।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Publish:Mon, 17 Sep 2018 01:33 PM (IST) Updated:Mon, 17 Sep 2018 11:34 PM (IST)
बचपन में सर्दी-बुखार की यह दवा खाने से बड़े होने पर हो सकती है गंभीर बीमारी
बचपन में सर्दी-बुखार की यह दवा खाने से बड़े होने पर हो सकती है गंभीर बीमारी

मेलबर्न (प्रेट्र)। सर्दी-बुखार में खाई जाने आम दवा पैरासिटामोल बच्चों के लिए घातक साबित हो सकती है। ताजा शोध से पता चला है कि दो साल की उम्र तक इस दवा का सेवन करने वाले बच्चे 18 साल की उम्र में अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी का शिकार हो सकते हैं। खासकर ऐसे बच्चे जिनमें ग्लूटाथियोन एस-ट्रांसफेरेज (जीएसटी) जीन का एक विशेष प्रकार जीएसटीपी1 पाया जाता है, उनमें फेफड़े की इस बीमारी से प्रभावित होने का खतरा ज्यादा पाया जाता है।

अभी और शोध की जरूरत
हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी सिर्फ पैरासिटामोल और अस्थमा के संबंध का पता चला है। लिहाजा अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि पैरासिटामोल का सेवन के कारण ही अस्थमा होता है। बहरहाल, इतना तो तय है कि पैरासिटामोल शरीर में मौजूद ग्लूटाथियोन का खात्मा कर देता है।

फेफड़ों का जहर साफ करता है ग्लूटाथियोन
शोधकर्ताओं के अनुसार फेफड़े को जहरीले तत्वों से निजात दिलाने में ग्लूटाथियोन का अहम योगदान है क्योंकि जीएसटी जीन के निर्देश पर ही शरीर में ऐसे एंजाइम बनते हैं जो ग्लूटाथियोन का इस्तेमाल कर शरीर और खासकर फेफड़ों से जहरीले तत्वों का सफाया करता है। इससे फेफड़ों में सुजन नहीं होती और कोशिकाओं को क्षति नहीं पहुंचती है।

620 बच्चों पर किया गया शोध
यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न की शोधकर्ता शीन दाई ने कहा कि जिन लोगों के शरीर में जीएसटी एंजाइम की गतिविधियां नहीं पाई जाती हैं वे अगर पैरासिटामोल का इस्तेमाल करते हैं तो उनके फेफड़ों में संक्रमण होने की आशंका ज्यादा होती है। शोधकर्ताओं ने अपनी इस अवधारणा को 620 बच्चों पर आजमाया। इसके तहत बचपन से लेकर 18 साल तक की उम्र तक उनका अवलोकन किया गया। इन बच्चों का चुनाव उनके जन्म से पहले ही कर लिया गया था, क्योंकि उनके एलर्जी से प्रभावित होने का खतरा पहले से ही था। दरअसल, उनके माता-पिता में से एक को अस्थमा और एक्जिमा जैसी एलर्जी से जुड़ी बीमारी थी

जन्म के बाद लगातार निगरानी
इन बच्चों के जन्म के बाद पहले 15 महीने तक हर चार हफ्ते पर रिसर्च नर्स बच्चों के माता-पिता को फोन कर पता करती थी कि उन्हें इस दौरान कितनी बार पैरासिटामोल दी गई है। बच्चों के 18वें महीने और 24वें महीने भी इस आंकड़े इकट्ठे किए गए। फिर बच्चों के 18 साल का होने के बाद उनके खून या लार के नमूने लिए गए और जीएसटी जीन के लिए टेस्ट किया गया।

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