Success Mantra: शिखर पर पहुंचकर अपनी जड़ों को याद रखने वाला ही सफल कहलाता है

सफलता के शिखर पर पहुंचकर यदि हममें अहंकार आ गया तो समझो हमने सीढ़ियों पर अपने पांव मजबूती से नहीं रखे। इसलिए शिखर पर पहुंचने वाला कई बार तेजी से नीचे आता है। आते समय उसे वही सीढ़ियां मिलती हैं जो आगे बढ़ने में उसकी सहायक थीं।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Thu, 25 Feb 2021 10:52 AM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 10:52 AM (IST)
Success Mantra: शिखर पर पहुंचकर अपनी जड़ों को याद रखने वाला ही सफल कहलाता है
सफलता जब तक हमसे दूर होती है, तब तक वह हमें काफी कठिन लगती है।

नई दिल्ली, डॉ. महेश परिमल। गुलजार की पंक्तियां हैं-हम ऊपर जा रहे हैं और ये सीढ़ियां नीचे जा रही हैं। सीढ़ियों का यह समीकरण बड़ा ही पेचीदा है। पहाड़ के नीचे खड़े होकर हम सीढ़ियों को दूर तक जाता हुआ देखते हैं। पर हम जब उन सीढ़ियों पर कदम रखकर आगे बढ़ते हैं, तब वही सीढ़ियां नीचे होती जाती हैं और हम ऊपर। सीढ़ियों के इस समीकरण को समझा आपने? नहीं न, जरा मुश्किल है, पर इतना भी नहीं कि समझा ही नहीं जा सके।

सफलता जब तक हमसे दूर होती है, तब तक वह हमें काफी कठिन लगती है। वैसे सफलता को कठिन होना भी चाहिए। क्योंकि परिश्रम से प्राप्त सफलता अपनी कहानी स्वयं कहती है। जब हम पहली सीढ़ी पर अपने कदम रखते हैं तो सामने अनेक सीढ़ियां देखकर हम पहले तो सहम जाते हैं। विचार आता है कि इतनी सारी सीढ़ियां किस तरह से पार हो पाएंगी। पर भीतर से आवाज आती है, शुरू तो करो, कई दुआएं तुम्हारे साथ हैं। बस इसी आवाज के सहारे हम कदम बढ़ाते जाते हैं, सीढ़ियां पीछे होती जाती हैं और हम आगे बढ़ते जाते हैं। आगे बढ़ते हुए एक ऐसा भी स्थान आता है, जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो नीचे कई सीढ़ियां दिखाई देती हैं। जिसको हमने अभी-अभी ही पार किया है।

आगे की सीढ़ियों को पार करने का हौसला हमें पीछे की सीढ़ियों से ही मिलता है। यह जीवन का अनुभव है। पिछली सीढ़ियों को पार करने में हमें जो परेशानी हुई, हम चाहते हैं कि आने वाली सीढ़ियों को पार करने में वे परेशानियां फिर न आएं। तो इसके लिए हम पहले हुई गलतियों को न दोहराने की कोशिश करते हैं। इस तरह से हमारी सफलता की यात्र जारी रहती है। इस तरह से धीरे-धीरे पार की गई सीढ़ियां हमें सफलता के द्वार तक पहुंचा देती हैं।

सफलता के शिखर पर पहुंचकर यदि हममें अहंकार आ गया तो समझो, हमने सीढ़ियों पर अपने पांव मजबूती से नहीं रखे। इसलिए शिखर पर पहुंचने वाला कई बार तेजी से नीचे आता है। आते समय उसे वही सीढ़ियां मिलती हैं, जो आगे बढ़ने में उसकी सहायक थीं। नीचे आते समय अहंकारी को सीढ़ियां भी स्वीकार नहीं करतीं। वे उसे अपने करीब से तेजी से जाने के लिए रास्ता दे देती हैं। यदि आगे बढ़ते हुए सीढ़ियों की गरिमा को समझा होता तो यही सीढ़ियां हमें रोक लेतीं। पर हमारी निष्ठुरता हमें नीचे की ओर ले जाती है।

इसलिए सीढ़ियों पर ध्यान दें। सीढ़ियां यानी हमारी छोटी-छोटी सफलता, हमारे संघर्ष की साथी। हमारा हौसला बढ़ाने वालीं। यदि हम इन्हें ही भूल गए तो समझो, हम अपनी जड़ों को ही भूल गए। शिखर पर पहुंचकर जो अपनी जड़ों को याद रखता है, वही सफल कहलाता है। खुद नीचे जाकर सीढ़ियां हमें ऊपर ले जाती हैं। इसलिए सीढ़ियों का अहसान कभी नहीं भूलना चाहिए। इस तरह से सीढ़ियों के समीकरण को आसानी से समझा जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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