सबक दे गई सितंबर की बरसात, आम जनजीवन अस्त-व्यस्त; डेंगू और मौसमी बुखार ने बढ़ाई मुसीबत

शहरी क्षेत्र में अलग तरह की मुसीबत झेलनी पड़ी। लखनऊ में पुरानी आबादी वाले शायद ही किसी मकान में आंगन तक पानी न भरा हो। नालों की क्षमता जवाब दे गई। बारिश और आंधी के कारण गिरे पेड़ों और विज्ञापनपट यातायात में बाधक बन गए।

By Neel RajputEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 12:01 PM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 12:01 PM (IST)
सबक दे गई सितंबर की बरसात, आम जनजीवन अस्त-व्यस्त; डेंगू और मौसमी बुखार ने बढ़ाई मुसीबत
मानसून की विदाई से पहले बुधवार को बारिश की झड़ी लग गई

राजू मिश्र। हाल के दशकों में संभवत: यह पहली बार हुआ होगा कि उत्तर प्रदेश में चार दिन तक बारिश के कारण स्कूल-कालेज बंद रहे। महामारी-बीमारी के दौर से गुजर रहे उत्तर प्रदेश में पिछले सप्ताहांत भारी बारिश जहां आम जनजीवन के लिए एक बड़ी मुसीबत बनकर आई, वहीं पहले ही डेंगू और मौसमी बुखार से जूझ रहे चिकित्सा एवं सामान्य प्रशासन के लिए नई चुनौती भी प्रस्तुत कर दी।

मानसून की विदाई से पहले बुधवार को बारिश की झड़ी लग गई। बंगाल की खाड़ी में बने कम दबाव के क्षेत्र के कारण बारिश का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह शनिवार तक जारी रहा। कई जिले ऐसे रहे जहां दो दिन तक सूर्यदेव एक तरह से अवकाश पर रहे। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बारिश गुरुवार को हुई जिसने मध्य उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बड़ी तबाही मचाई। वर्षा जनित दुर्घटनाओं के कारण इस दिन प्रदेश में लगभग 45 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। किसी की मृत्यु जर्जर मकान ढहने से हुई तो किसी की सर्पदंश या वज्रपात से। कई लोगों को बिजली के तार टूटने से फैले करंट के कारण जान गंवानी पड़ी।

शहरी क्षेत्र में अलग तरह की मुसीबत झेलनी पड़ी। लखनऊ में पुरानी आबादी वाले शायद ही किसी मकान में आंगन तक पानी न भरा हो। नालों की क्षमता जवाब दे गई। बारिश और आंधी के कारण गिरे पेड़ों और विज्ञापनपट यातायात में बाधक बन गए। यही वजह रही कि लखनऊ में केवल जरूरी काम से ही घर से बाहर निकलने की एडवायजरी जारी करनी पड़ी। स्कूलों में गुरुवार को तो स्वत: प्रबंधन ने अवकाश घोषित कर दिया, लेकिन शुक्रवार और शनिवार को प्रदेश सरकार ने स्कूल-कालेज बंद कर दिए। साथ ही, नगरीय निकाय कर्मचारियों के अवकाश निरस्त कर दिए गए। सही समय पर सजग हुई राज्य सरकार ने तत्काल पूरे अमले को जलनिकासी की व्यवस्था करने, अस्पतालों में एंटी वेनम और रैबीज के इंजेक्शन की आपूर्ति सुनिश्चित करने, ग्रामीण क्षेत्रों में क्लोरीन की गोलियां बांटने आदि के निर्देश दिए हैं।

नगरीय निकाय कर्मचारियों के अवकाश निरस्त करने के पीछे बड़ी वजह भी यही रही कि वे तत्काल उन क्षेत्रों में पहुंचें जहां इस तरह के उपाय करने की सर्वाधिक आशंका है। ताकि पहले ही डेंगू से जूझ रहे प्रदेश में बीमारी की नई लहर न उठ खड़ी हो। यह काम चल भी रहा है, लेकिन जलजमाव की समस्या अब भी कई जगह बनी हुई है। धूप निकलने के बाद संक्रमण तेज होने की आशंका बनी हुई है। इस आशंका को कम करने का एक ही उपाय है कि सरकारी अमला ईमानदारी से फील्ड में काम करे और नागरिक- ग्रामीणजन इन्हें पूरा सहयोग उपलब्ध कराएं।

इस बारिश के दो सबक बहुत स्पष्ट हैं। पहला कि प्रकृति में मानव हस्तक्षेप के कारण बिगड़ता चक्र अब मानव समाज पर सीधे विपरीत प्रभाव डाल रहा है, जो साफ-साफ दिख भी रहा है। उत्तर प्रदेश में मानसून की विदाई सितंबर अंत में मानी जाती है। जुलाई और अगस्त में इसकी सर्वाधिक सक्रियता रहती है, लेकिन कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि विदाई के माह में मानसून ज्यादा सख्त तेवर दिखा रहा है। यह मानव हस्तक्षेप कड़ाई से न रोका गया तो हमको इससे भी बुरे हालात का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। दूसरा सबक यह कि स्वच्छता अभियान की आंदोलन के रूप में शुरुआती सफलता के बाद अब शिथिलता दिखाई दे रही है। एक वर्ग सजगता में निरंतरता अवश्य बनाए हुए है, लेकिन बड़ा वर्ग अब भी स्वच्छता को आदत नहीं बना सका है। जिस तरह लखनऊ में नाले चोक होकर ओवरफ्लो हुए उसका एक बड़ा कारण कूड़े को सीधे नालों में फेंक देने की आदत भी है। यह आदत बदलकर स्वच्छता को संस्कार बनाने की जरूरत है।

सीएम योगी के साढ़े चार साल

रविवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने साढ़े चार साल पूरे कर लिए। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रवादी एजेंडे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकासवादी सोच पर चल कर उन्होंने कई उपलब्धियां हासिल कीं। इनकी चर्चा हो रही है, लेकिन दो कामों में उनकी स्पष्ट छाप साफ-साफ दिखती है।

योगी आदित्यनाथ पहले ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जिन्होंने माफिया के खिलाफ अभियान चलाकर उनकी 1866 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त या ध्वस्त करवा दी। प्रदेश की कानून व्यवस्था को उन्होंने जिस तरह दुरुस्त किया है, उसे निचले स्तर तक महसूस किया जा रहा है। राजनीतिक रूप से ‘ठोक दो’ नीति के रूप में चर्चित जुमला भी इसका एक उदाहरण माना जा सकता है। अपराध और भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस के कारण ही अलग-अलग क्षेत्र में अपना राज चला रहे माफिया द्वारा अवैध ढंग से कमाई गई 1866 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या तो सरकार ने जब्त कर ली या बुलडोज करा दी।

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