राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का बड़ा फैसला, मेडिकल कॉलेजों की स्‍थापना के लिए पांच एकड़ जमीन की अनिवार्यता खत्म

देश में नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की राह आसान करते हुए नवगठित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने इसके लिए न्यूनतम पांच एकड़ जमीन की बाध्यता को खत्म कर दिया है। साथ ही कौशल विकास प्रयोगशालाओं को अनिवार्य कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 10:10 PM (IST) Updated:Sun, 01 Nov 2020 03:57 AM (IST)
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का बड़ा फैसला, मेडिकल कॉलेजों की स्‍थापना के लिए पांच एकड़ जमीन की अनिवार्यता खत्म
एमबीबीएस दाखिले के लिए नए नियम जारी, मेडिकल कॉलेजों के लिए पांच एकड़ जमीन की अनिवार्यता खत्‍म

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। देश में नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की राह आसान करते हुए नवगठित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने पहला बड़ा फैसला लिया है। आयोग ने नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना और उनसे संबद्ध शिक्षण अस्पतालों के लिए न्यूनतम पांच एकड़ जमीन की बाध्यता खत्म कर दी है। इसके साथ ही कौशल विकास प्रयोगशालाओं (स्किल लैब) को अनिवार्य कर दिया गया है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग जारी किए नए नियम 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को बताया कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना और शैक्षणिक वर्ष 2020-21 से एमबीबीएस की वार्षिक सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव करने वाले मेडिकल कॉलेजों पर लागू अनिवार्यताओं के विस्तृत नियम 'वार्षिक एमबीबीएस प्रवेश नियमों के लिए न्यूनतम आवश्यकताएं (2020)' जारी किए हैं। संक्रमण काल (ट्रांजिटरी पीरियड) में पहले से स्थापित मेडिकल कॉलेजों पर वर्तमान अधिसूचना से पूर्व के संबंधित वर्तमान नियम लागू होंगे। 

बेड्स की संख्या 530 से घटाकर 430 की गई 

नए नियमों के मुताबिक, सौ सीटों वाले कॉलेज के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बेड्स की संख्या 530 से घटाकर 430 कर दी गई है, जबकि दो सौ सीटों वाले कॉलेज के लिए बेड्स की संख्या 930 से घटाकर 830 कर दी गई है। शिक्षण अस्पताल के विभिन्न विभागों में आवश्यक बेड्स को छात्रों के हर साल प्रवेश, क्लीनिकल स्पेशियालिटी में बिताए जाने वाले शिक्षण के समय और अंडरग्रेजुएट मेडिकल प्रशिक्षण के लिए आवश्यक न्यूनतम चिकित्सकीय सामग्री के मुताबिक तर्कसंगत बनाया गया है।

विजिटिंग फैकल्टी का भी प्रावधान

नए नियमों के तहत शिक्षण संकाय में मानव संसाधन को भी युक्तिसंगत बनाया गया है। प्रशिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने के मकसद से शिक्षकों की न्यूनतम निर्धारित संख्या से ऊपर अतिथि शिक्षकों (विजिटिंग फैकल्टी) का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज और उससे संबद्ध शिक्षण अस्पताल जरूरत और मरीजों की संख्या के आधार पर आनुपातिक रूप से अतिरिक्त बेड्स, बुनियादी ढांचा, शिक्षक और अन्य मानव संसाधन उपलब्ध कराएंगे।

दो भूखंडों पर भी बन सकेगा मेडिकल कॉलेज परिसर

नए नियमों के मुताबिक, टायर-1 एवं टायर-2 शहरों, पर्वतीय एवं पूर्वोत्तर राज्यों और अधिसूचित आदिवासी इलाकों में परिसर दो भूखंडों पर भी बनाया जा सकता है। पहले भूखंड पर शिक्षण अस्पताल और दूसरे पर मेडिकल कॉलेज व छात्रावास बनाया जाएगा।

अगर मेडिकल कॉलेज परिसर एक से अधिक भूखंडों पर फैला है तो इनके बीच दूरी 10 किमी अथवा यात्रा के समय के लिहाज से 30 मिनट से कम होनी चाहिए। जहां सरकारी जिला अस्पताल मेडिकल कॉलेज के लिए शिक्षण अस्पताल के रूप में हैं, वहां जिला अस्पताल के सभी घटक (भले ही वे दो अलग-अलग भूखंडों पर स्थित हों) संबद्ध शिक्षण अस्पताल के रूप में माने जाएंगे। इसके लिए शर्त यह है कि मुख्य जिला अस्पताल में कम से कम 300 बेड हों। जबकि पर्वतीय और पूर्वोत्तर राज्यों में यह शर्त 250 बेड की है।

कौशल विकास प्रयोगशाला के लिए निर्देश 

नए नियमों के मुताबिक हर मेडिकल संस्थान में कौशल विकास के लिए प्रयोगशाला होगी, जहां छात्र अपने शिक्षण के दौरान अभ्यास कर सकेंगे और खास विधा में अपने कौशल को विकसित कर सकेंगे। कौशल विकास प्रयोगशाला स्थापित करने का उद्देश्य यह है कि प्रत्येक मेडिकल संस्थान में छात्रों को एक ऐसा माहौल उपलब्ध हो जहां वे किसी चिंता-खतरे के बिना प्रैक्टिस कर सकें। दूसरे शब्दों में उन्हें ऐसा वातावरण उपलब्ध कराया जाए जहां पर्याप्त तैयारी और निगरानी के बिना मरीज की चिकित्सा को लेकर उत्पन्न होने वाले खतरे को खत्म किया जा सके। 

कौशल विकास के लिए ये हैं नए मानक 

कौशल विकास प्रयोगशाला के लिए भूमि संबंधी जो मानक तय किए गए हैं उनके तहत 150 एमबीबीएस छात्रों के लिए इसका क्षेत्रफल कम से कम 600 वर्गमीटर होना चाहिए, जबकि 200 से 250 एमबीबीएस छात्रों के लिए यह आवश्यकता 800 वर्गमीटर की है। इसमें ऐसे ट्रेनर होंगे जो एमबीबीएस छात्रों की अध्ययन संबंधी आवश्यकताएं और उनके कौशल विकास में योगदान देने में सक्षम होंगे।

ऐसे बदलेगी मेडिकल शिक्षा की सूरत

- छात्रों के लिए काउंसिलिंग सेवाओं को अनिवार्य बनाया गया जिससे उन्हें दबाव से उबरने में मिलेगी मदद

- शिक्षण संकायों को युक्तिसंगत बनाने से बढ़ेगी प्रशिक्षण की गुणवत्ता

- सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में दो नए शैक्षणिक विभाग अनिवार्य (इमरजेंसी मेडिसिन विभाग और फिजिकल मेडिसिन एंड रिहेब्लिटेशन विभाग)

- पुस्तकालयों के लिए जगह की अनिवार्यता घटाई गई जिससे नए मेडिकल कॉलेज खोलने को लेकर बड़ी अड़चन दूर हुई

- दो भूखंडों पर मेडिकल कॉलेज खोलने की छूट से बड़े शहरों और पर्वतीय क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेज खोलना होगा आसान

एमसीआइ की जगह बना है आयोग

वर्तमान में मेडिकल कॉलेजों पर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) के नियम 'न्यूनतम मानक आवश्यकताएं-1999' लागू होते हैं। लेकिन विवादों में घिरने के बाद केंद्र सरकार ने एमसीआइ को भंग कर दिया था और देश में मेडिकल शिक्षा की सूरत सुधारने के लिए उसके स्थान पर 25 सितंबर, 2020 को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन किया गया।

इसलिए अहम हैं नए नियम

देश में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव की बड़ी वजह डॉक्टरों की कमी है। इसके लिए मेडिकल कॉलेजों की सीमित संख्या को जिम्मेदार माना जाता है। नए नियमों के लागू होने से नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना का मार्ग सुगम होगा। जिससे आगामी कुछ वर्षों में निश्चित तौर पर देश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी।

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