36 साल से गंगा मैली की मैली, तय हो जवाबदेही, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने की तल्ख टिप्पणियां, जानें क्‍या कहा

एनजीटी ने कहा है कि पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई चुनौती बनी हुई है। अब नदी की सफाई के लिए आवंटित फंड के समयबद्ध उपयोग की जवाबदेही तय करने करने की जरूरत है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 07:26 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 01:04 AM (IST)
36 साल से गंगा मैली की मैली, तय हो जवाबदेही, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने की तल्ख टिप्पणियां, जानें क्‍या कहा
एनजीटी ने कहा है कि पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई चुनौती बनी हुई है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा है कि पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई चुनौती बनी हुई है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि अब समय आ गया है जब नदी की सफाई के लिए आवंटित फंड के समुचित व समयबद्ध उपयोग की जवाबदेही तय करने करने की जरूरत है। साथ ही प्रदूषण कम करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवंटित फंड और इसके उपयोग के संबंध में उचित जांच की आवश्यकता है।

गंगा का प्रदूषण बेरोकटोक बरकरार

एनजीटी चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, यद्यपि गंगा एक्शन प्लान एक और दो के जरिये केंद्र सरकार के स्तर पर पहल की गई हैं और उसके बाद नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा (एनएमसीजी) की स्थापना हुई, लेकिन गंगा का प्रदूषण बेरोकटोक बरकरार है। एनजीटी ने कहा कि जवाबदेही और प्रतिकूल परिणामों के बगैर ही समय सीमा का उल्लंघन किया जाता है।

सार्वजनिक धन की बर्बादी

पीठ ने कहा, 'निगरानी और जवाबदेही तय करने में विफलता से केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी, निरंतर प्रदूषण और इसके परिणामस्वरूप मौतें और बीमारियां होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित प्रशासन के शीर्ष स्तर को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के कामकाज में संरचनात्मक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है, ताकि समयसीमा बनाए रखने के लिए जवाबदेही तय की जा सके और निकट भविष्य में लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबंधन रणनीति का पता लगाया जाए।'

जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जाए

एनजीटी ने कहा कि प्रदर्शन मापदंडों और समयसीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और कार्य संपादन के आडिट की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, 'विफलता के कारणों और जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें उचित रूप से जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। प्रदर्शन में विफलता के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के संबंध में एक तंत्र को निरंतर आधार पर संचालित करने की आवश्यकता है। अनुशासनात्मक और गुणवत्ता नियंत्रण के बिना मिशन की सफलता की संभावना बहुत कम हो सकती है।'

आंतरिक समीक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की दरकार

ट्रिब्यूनल ने कहा कि आंतरिक समीक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है जो वर्तमान में प्रतीत नहीं होता। पीठ ने कहा, यदि यह पाया जाता है कि प्रदूषण उपशमन और नियंत्रण योजना को क्रियान्वित करने के लिए एनएमसीजी द्वारा नियोजित एजेंसियां ठीक तरह से प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं तो एक उपयुक्त एजेंसी - सरकारी, निजी या हाइब्रिड को काम सौंपकर संरचनात्मक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है, जिन्हें शतरें के अनुसार प्रदर्शन और लक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में जवाबदेह ठहराया जा सके।

जवाबदेही तय करने की दरकार

ट्रिब्यूनल ने कहा, 'संक्षेप में, प्रदर्शन का मूल्यांकन करने और जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है। आवंटित धन और प्रदूषण कम करने के लिए निर्धारित लक्ष्य हासिल करने में हुई प्रगति और अन्य मापदंडों का विवरण देने वाली तिमाही रिपोर्ट एनएमसीजी की वेबसाइट पर डाली जा सकती है ताकि समुदाय की भागीदारी एवं समर्थन बढ़ाया जा सके। क्षतिपूर्ति, जैसा कि पिछले आदेश में निर्देशित किया गया है, अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और एनएमसीजी द्वारा दो महीने के भीतर सकारात्मक रूप से एकत्र की जा सकती है।'

दंडात्मक उपाय किए जाएं

पीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा, 'गैर-अनुपालन के मामले में एनजीटी अधिनियम, 2010 की धारा-26 के तहत उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा शुरू करने सहित दंडात्मक उपाय किए जाएं। एनएमसीजी और सीपीसीबी 31 मार्च, 2022 तक की प्रगति के संबंध में रिपोर्ट 15 अप्रैल, 2022 तक दाखिल कर सकते हैं। इसे साथ ही उनकी संबंधित वेबसाइटों पर भी अपलोड किया जा सकता है।'

राष्ट्रीय योजना किया जाए तैयार

ट्रिब्यूनल ने इस मामले को 28 अप्रैल, 2022 को आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया है। एनजीटी ने इससे पहले देश की सभी 350 नदियों के कायाकल्प के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने और उस पर अमल के लिए केंद्रीय निगरानी समिति गठित की थी। ट्रिब्यूनल ने उत्तरी राज्यों के मुख्य सचिवों को समय-समय पर गंगा के कायाकल्प की निगरानी करने का निर्देश दिया था। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और बंगाल के मुख्य सचिवों को समय-समय पर कायाकल्प कार्य की निगरानी करने का भी निर्देश दिया था। 

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