कचरे के निपटारे की व्यवस्था होने तक नए उद्योग को अनुमति न दें, NGT के केंद्र व राज्य को निर्देश

राष्ट्रीय हरित अधिकरण(एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड निर्देश देते हुए ये बात कही है।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 09:24 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 09:24 AM (IST)
कचरे के निपटारे की व्यवस्था होने तक नए उद्योग को अनुमति न दें, NGT के केंद्र व राज्य को निर्देश
कचरे के निपटारे की व्यवस्था होने तक नए उद्योग को अनुमति न दें, NGT के केंद्र व राज्य को निर्देश

नई दिल्ली, प्रेट्र। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मंगलवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कचरे के निपटारे की व्यवस्था होने तक किसी भी नए उद्योग को परमिट नहीं दिया जाए।एनजीटी ने सीपीसीबी को निर्देश दिया कि वह 'प्रदूषणकर्ता चुकाएगा' सिद्धांत के अनुसार पर्यावरण को निरंतर नुकसान पर मुआवजे की वसूली के लिए अपने निर्देशों को लागू करे।

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीपीसीबी को खतरनाक अपशिष्ट पैदा करने वाले उद्योगों की स्थिति को सत्यापित करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने के लिए कहा। उन्होंने राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उद्योगों से मुआवजा वसूलने के लिए भी कहा। पीठ ने कहा, सीपीसीबी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड किसी भी नए उद्योग को खतरनाक कचरा पैदा करने की अनुमति नहीं दे सकते, जब तक कि उनके निपटान के लिए सुविधाएं सुनिश्चित नहीं की जाती हैं। एनजीटी ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे 31 अक्टूबर, 2020 तक सीपीसीबी को अपनी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बेंगलुरु के उपनगरीय क्षेत्र बोम्मसांद्रा के करीब किथिगनहल्ली झील में प्रदूषण फैलाने को लेकर कर्नाटक सरकार पर 10 लाख रुपये का अंतरिम जुर्माना लगाया है। एनजीटी ने कहा कि जलाशयों में प्रदूषण फैलाने वाली चीजों को डालने पर रोक न लगाकर अधिकारी अपराध कर रहे हैं।

एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कर्तव्यों को न निभा पाने के मामले में बोम्मसांद्रा निगम परिषद पर भी पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। पीठ ने कहा, 'संवैधानिक दायित्व के निर्वहन में निगम परिषद के विफल रहने तथा एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के प्रति राज्य के अधिकारियों की उदासीनता की कीमत पर्यावरण व जनस्वास्थ्य को चुकानी पड़ रही है। इसके लिए दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने व त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।'
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