लॉकडाउन में नई पहल : फोन कॉल से बच्चियों से जुड़ रही महिलाएं, कर रही उनका मार्गदर्शन

लॉकडाउन के कारण घर से बाहर निकलना नहीं हो रहा तो काफी अकेलापन महसूस करने लगती हैं। ऐसे अकेलापन दूर करने के लिए ही द कॉल ऐंड कनेक्ट इनिशिएटिव की शुरूआत की गई है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 05:07 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 05:07 PM (IST)
लॉकडाउन में नई पहल : फोन कॉल से बच्चियों से जुड़ रही महिलाएं, कर रही उनका मार्गदर्शन
लॉकडाउन में नई पहल : फोन कॉल से बच्चियों से जुड़ रही महिलाएं, कर रही उनका मार्गदर्शन

नई दिल्ली [अंशु सिंह]। लॉकडाउन में बहुत कुछ नया हो रहा है। ‘द कॉल ऐंड कनेक्ट’इनिशिएटिव भी एक ऐसी ही अनूठी पहल है, जिसमें महिलाएं स्वेच्छा से बच्चियों के साथ ऑनलाइन जुड़ती हैं। फोन पर उनसे बातें करती हैं। दोस्त और टीचर बनकर उनका मार्गदर्शन करती हैं।

नेत्रा शहर से दूर एक छोटे से गांव में रहती हैं। लॉकडाउन के कारण घर से बाहर निकलना नहीं हो रहा, तो काफी अकेलापन महसूस करने लगती हैं। क्योंकि उन्हें ढेर सारी बातें करने का मन होता है, लेकिन घर के सभी लोगों के अपने-अपने काम में व्यस्त रहने के कारण वह किसी से कुछ कह नहीं पातीं।

ऐसे में जब एक दिन केरल की गृहणी मधुलिका का उनके पास फोन आया और उन्होंने उनसे उनका हालचाल पूछा, उनकी दिनचर्या की जानकारी ली,तो थोड़ी देर के लिए ही सही नेत्रा को बहुत अच्छा लगा। इसके अगले कुछ हफ्ते तक नियमित रूप से उनके पास फोन आते। आहिस्ता-आहिस्ता दोनों में एक आत्मीयता-सी बन गई। 15 वर्षीय नेत्रा ने बताया कि कैसे वे इस बातचीत से हल्कापन महसूस करने के साथ खुश रहने लगीं।

दोस्त बनकर जान रहीं मन का हाल 

‘मिलान बी द चेंज’ स्वयंसेवी संस्था द्वारा शुरू किए गए इस अभियान के तहत अलग-अलग क्षेत्रों की विशेषज्ञ महिलाएं,गृहणियां,कॉलेज स्टूडेंट्स स्वेच्छा से 13 से 20 वर्ष की लड़कियों को तीन हफ्ते में तीन कॉल करती हैं। उनसे बातचीत करती हैं, जो आधे घंटे या उससे अधिक की हो सकती है। चेन्नई की आरती मधुसूदन बताती हैं, लॉकडाउन में हर कोई कभी न कभी अकेला महसूस कर रहा है।

ऐसे में जब इन बच्चों को कोई फोन करता है उनसे दोस्त की तरह बात करता है,तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है।वाट्सएप ग्रुप में एक कॉलर द्वारा शेयर किए गए अनुभवों का जिक्र करते हुए वे बताती हैं कि अमुक कॉलर ने एक बच्ची को एपीजे अब्दुल कलाम की किताब पढ़ने की सलाह दी थी।

तब तीसरी बार उस बच्ची को कॉल किया,तो वह इंतजार कर रही थी उन्हें वह कहानी सुनाने के लिए। इतना ही नहीं, अगली कॉल में उसने एक तमिल किताब से कहानी सुनाने का वायदा भी किया। तब कॉलर ने उसे बताया कि पढ़ना तो उसकी हॉबी है, क्योंकि पहले कॉल में उसने कहा था कि उसकी कोई हॉबी नहीं है। समझा जा सकता है कि बच्चे किस कदर अपनी बात सबके साथ शेयर करने के मौके तलाश रहे हैं।

देश भर की महिलाओं ने लिया हिस्सा 

‘मिलान’के सीईओ धीरेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार, देश भर की महिलाओं द्वारा इन बच्चियों को कॉल करने की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। अब तक 800 से अधिक महिलाओं ने स्वेच्छा से इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इनमें करीब 65 प्रतिशत ने कम से कम तीन कॉल किए हैं।

वैसे, 18 वर्ष से ऊपर की कोई भी महिला, जिन्हें हिंदी व अंग्रेजी आती है,हल्के-फुल्के,सहज अंदाज में सार्थक बातचीत कर सकती हैं,वे इस अभियान का हिस्सा बन सकती हैं। इसके लिए उन्हें एक रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरना होता है, जिसके बाद उनसे बच्चियों का कॉन्टैक्ट नंबर शेयर किया जाता है। 

लड़कियों में आया आत्मविश्वास 

आरती मधुसूदन बताती हैं, शाश्वती मैथ्स टीचर बनना चाहती हैं। लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि वह अपने सपने को पूरा कर सकें। इसीलिए हमने तय किया कि इन जैसी अन्य बच्चियों को प्रोत्साहित करेंगे। अलग-अलग एनजीओ की मदद से हमने लड़कियों की पहचान की और उन्हें फोन कॉल के जरिये विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं से जोड़ा, उन्हें हर तरीके से गाइड करती हैं। इससे लड़कियों में आत्मविश्वास आया है कि वे किसी भी अनजान व्यक्ति से सहजता से बात कर पा रही हैं। कई वॉलंटियर्स ने तो लड़कियों के कॉलेज में दाखिला कराने तक की जिम्मेदारी ली है। वहीं, कुछ किशोर उम्र लड़कियां तो स्वयं से पहल कर आसपास के समुदाय को इस मुश्किल घड़ी में मदद पहुंचा रही हैं। जैसे, उत्तर प्रदेश की ज्योति रावत अपने घरों में सूती कपड़े से फेस मास्क बनाकर उन्हें आसपास बांट रही हैं।

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