चीन से नहीं भारत से संबंध रखना चाहता है नेपाल : पूर्व प्रधानमंत्री भट्टाराई

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम (Baburam Bhattarai) ने मंगलवार को भारत (India) को आश्वासन दिया कि काठमांडू का झुकाव चीन की ओर नहीं है। यह नई दिल्ली के साथ गठबंधन करना चाहता है। भट्टराई का कहना है कि भारत और नेपाल के रिश्ते ऐतिहासिक और सांस्कृतिक हैं।

By Monika MinalEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 05:15 PM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 05:39 PM (IST)
चीन से नहीं भारत से संबंध रखना चाहता है नेपाल : पूर्व प्रधानमंत्री भट्टाराई
चीन से नहीं भारत से संबंध रखना चाहता है नेपाल

नई दिल्ली, एएनआइ। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम (Baburam Bhattarai) ने मंगलवार को भारत (India) को आश्वासन दिया कि काठमांडू का झुकाव चीन की ओर नहीं है। यह नई दिल्ली के साथ गठबंधन करना चाहता है। भट्टराई का कहना है कि भारत और नेपाल के रिश्ते ऐतिहासिक और सांस्कृतिक हैं। नेपाल के लिए जो भारत का स्थान है उसे कोई नहीं ले सकता। इन दिनों वे दिल्ली में हेल्थ चेकअप के लिए हैं।

2011 से 2013 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे बाबूराम ने नेपाल की सियासत, राजनीतिक स्थिरता, भारत और चीन से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब दिए। एक सवाल के जवाब में भट्टराई ने कहा- दिल्ली में कुछ लोग सोचते हैं कि नेपाल पूरी तरह चीन की तरफ झुक गया है या उसके पाले में चला गया है। यह सही नजरिया नहीं है। ऐतिहासिक तौर पर तो हम भारत के ही करीब हैं। चीन भी हमारा दोस्त है, लेकिन उनसे हमारी नजदीकियां इसलिए भी ज्यादा नहीं हैं क्योंकि वो हिमालय के दूसरी तरफ हैं।

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पर भट्टराई ने कहा, 'हमारा देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने बहुमत से सरकार बनाई, लेकिन अब यह दो हिस्सों में बंट गई है। अगर संसद का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उसे भंग कर दिया जाएगा तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।' 

भारत और नेपाल के बीच तनावपूर्ण रिश्तों पर पूछे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय वार्ता नहीं हो पा रही है। मैं यह मानता हूं कि यदि उच्च स्तरीय वार्ता हुई तो रिश्ते सामान्य किए जा सकते हैं। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता की एक वजह यह भी है कि वहां लोकतंत्र काफी देर से आया। अब हम वहां इसके लिए कोशिश कर रहे हैं। नेपाल में संसद भंग है और सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इसे फिर बहाल करने के आदेश दिए हैं। केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने तैयार नहीं हैं। उनकी इसी जिद की वजह से पार्टी में बंटवारा हो चुका है। 

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