दिल्ली में रुक-रुक कर हो रही बारिश, नहीं मिलेगी ठंड से निजात, पढ़िए- चौंकाने वाली वजह

India Meteorological Department के अधिकारियों का भी कहना है कि फरवरी के महीने में इतनी सर्दी होना असामान्य है, लेकिन सच यह है कि सर्दी मार्च तक जाएगी और लोगों को परेशान भी करेगी।

By JP YadavEdited By: Publish:Wed, 20 Feb 2019 01:18 PM (IST) Updated:Thu, 21 Feb 2019 07:29 AM (IST)
दिल्ली में रुक-रुक कर हो रही बारिश, नहीं मिलेगी ठंड से निजात, पढ़िए- चौंकाने वाली वजह
दिल्ली में रुक-रुक कर हो रही बारिश, नहीं मिलेगी ठंड से निजात, पढ़िए- चौंकाने वाली वजह

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दिल्‍ली समेत पूरे एनसीआर में रुक-रुक कर बारिश हो रही है। बारिश से ठंड बढ़ गई है।  India Meteorological Department इस साल फरवरी महीना खत्म होने में सिर्फ सप्ताह भर का समय बचा है, लेकिन सर्दी है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। इस बीच कुछ दिनों के अंतराल पर पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बर्फबारी के साथ मैदानी राज्यों में बारिश और ओलावृष्टि से मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है। इसके चलते ठंड में इजाफा हो रहा है। वहीं, इसको लेकर India Meteorological Department (मौसम विभाग) के अधिकारियों का भी कहना है कि फरवरी के महीने में इतनी सर्दी होना असामान्य है, लेकिन सच यह है कि सर्दी मार्च तक जाएगी और लोगों को परेशान भी करेगी।

मौसम विज्ञानियों की मानें तो  पश्चिमी विक्षोभ के चलते ही पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर बर्फबारी देखने को मिली है। इसके चलते उत्तर और मध्य भारत में तापमान अपेक्षाकृत कम रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक, इस साल मार्च के पहले सप्ताह तक सर्दी का मौसम जारी रह सकता है। एक मार्च को आखिरी पश्चिमी विक्षोभ के चलते उत्तर भारत में सर्दी बढ़ सकती है और ऐसा मौसम कई दिनों तक बना रह सकता है।

पश्चिमी विक्षोभ के चलते इस साल फरवरी में अच्छी खासी ठंड रही है। खासतौर पर उत्तर भारत के अधिकतकर इलाकों में इस महीने में ठंड जारी है। वहीं, रुक-रुक सर्दी में इजाफा होने कई तरह की बीमारियों को भी दावत दे रहा है, खासकर युवाओं के साथ बुजुर्ग व बच्चे सर्दी-खांसी की चपेट में जल्दी आ रहे हैं। 

इस बार मार्च तक जारी रहेगा सर्दी का मौसम

मौसम विभाग से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो जाहिर इस महीने इतनी सर्दी होना असामान्य है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मौसम में इस बदवाल की बड़ी वजह पश्चिमी विक्षोभ है। इसके चलते ही पहाड़ों पर बड़े पैमाने रुक-रुक पर बर्फबारी देखने को मिल रही है। इसके असर से उत्तर और मध्य भारत में तापमान में कमी जारी है।

फरवरी में छह बार पश्चिमी विक्षोभ ने डाला असर

मौसम से अधिकारियों का भी कहना है कि फरवरी को सर्दियों का आखिरी महीना माना जाता है, लेकिन यह सर्दी जाती हुई होती है और गर्मी का अहसास आ जाता है। पश्चिमी विक्षोभ के चलते इस बार सर्दी ज्यादा दिन तक है और रहेगी। सबसे बड़ी परेशानी की बात है कि दिन का तापमान बढ़ जाता है और सुबह-शाम न्यूनतम तापमान घट रहा है। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि कई सालों की तुलना में फरवरी में अब तक 6 बार पश्चिमी विक्षोभ के चलते मौसम प्रभावित हुआ है और जाती हुई सर्दी लौट आई है।

मौसम विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस महीने इतनी सर्दी होना असामान्य है। पश्चिमी विक्षोभ के चलते ही पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर बर्फबारी देखने को मिली है। इसके चलते उत्तर और मध्य भारत में तापमान अपेक्षाकृत कम रहा है।

वेस्टर्न डिस्टर्बन्स (Western Disturbance) क्या है?

वेस्टर्न डिस्टर्बन्स (Western Disturbance) जिसको पश्चिमी विक्षोभ भी बोला जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी इलाक़ों में सर्दियों के मौसम में आने वाले ऐसे तूफ़ान को कहते हैं जो वायुमंडल की ऊंची तहों में भूमध्य सागर, अटलांटिक महासागर और कुछ हद तक कैस्पियन सागर से नमी लाकर उसे अचानक वर्षा और बर्फ़ के रूप में उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल पर गिरा देता है। यह एक गैर-मानसूनी वर्षा का स्वरूप है जो पछुवा पवन (वेस्टर्लीज) द्वारा संचालित होता है।

वेस्टर्न डिस्टर्बन्स या पश्चिमी विक्षोभ का निर्माण कैसे होता है?

वेस्टर्न डिस्टर्बन्स या पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर में अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के रूप में उत्पन्न होता है। यूक्रेन और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर एक उच्च दबाव क्षेत्र समेकित होने के कारण, जिससे ध्रुवीय क्षेत्रों से उच्च नमी के साथ अपेक्षाकृत गर्म हवा के एक क्षेत्र की ओर ठंडी हवा का प्रवाह होने लगता है। यह ऊपरी वायुमंडल में साइक्लोजेनेसिस के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न होने लगती है, जो कि एक पूर्वमुखी-बढ़ते एक्सट्रैटॉपिकल डिप्रेशन के गठन में मदद करता है। फिर धीरे-धीरे यही चक्रवात ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मध्य-पूर्व से भारतीय उप-महाद्वीप में प्रवेश करता है।

भारतीय उप-महाद्वीप पर वेस्टर्न डिस्टर्बन्स या पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव

वेस्टर्न डिस्टर्बन्स या पश्चिमी विक्षोभ खासकर सर्दियों में भारतीय उपमहाद्वीप के निचले मध्य इलाकों में भारी बारिश तथा पहाड़ी इलाकों में भारी बर्फबारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कृषि में इस वर्षा का बहुत महत्व है, विशेषकर रबी फसलों के लिए। उनमें से गेहूं सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है, जो भारत की खाद्य सुरक्षा को पूरा करने में मदद करता है।

ध्यान दें कि उत्तर भारत में गर्मियों के मौसम में आने वाले मानसून से वेस्टर्न डिस्टर्बन्स या पश्चिमी विक्षोभ का बिलकुल कोई संबंध नहीं होता। मानसून की बारिशों में गिरने वाला जल दक्षिण से हिंद महासागर से आता है और इसका प्रवाह वायुमंडल की निचली सतह में होता है। मानसून की बारिश ख़रीफ़ की फ़सल के लिये ज़रूरी होती है, जिसमें चावल जैसे अन्न शामिल हैं। कभी-कभी इस चक्रवात के कारण अत्यधिक वर्षा भी होने लगती है जिसके कारण फसल क्षति, भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन होने लगता है

भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में, यह कभी-कभी शीत लहर की स्थिति और घना कोहरा लाता है। अन्य पश्चिमी विक्षोभ के आने तक यह स्थिति स्थिर रहती है। जब मानसून की शुरुआत से पहले पश्चिमी विक्षोभ उत्तरपश्चिम भारत में घूमता है, तो इस क्षेत्र पर मानसून की वर्तमान में अस्थायी उन्नति होती है।

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