कोरोना की तीसरी लहर का बच्‍चों पर कितना पड़ेगा दुष्‍प्रभाव, WHO और AIIMS ने किया सर्वे, जानें नतीजे

कोरोना वायरस की तीसरी संभावित लहर का बच्‍चों पर कितना प्रभाव पड़ेगा इस बारे में अध्‍ययन जारी हैं। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलग अलग दावे भी सामने आ रहे हैं। इसी कड़ी में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) और AIIMS का सर्वेक्षण सामने आया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 17 Jun 2021 06:52 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:52 AM (IST)
कोरोना की तीसरी लहर का बच्‍चों पर कितना पड़ेगा दुष्‍प्रभाव, WHO और AIIMS ने किया सर्वे, जानें नतीजे
कोरोना वायरस की तीसरी संभावित लहर का बच्‍चों पर कितना प्रभाव पड़ेगा इस बारे में अध्‍ययन जारी हैं।

नई दिल्‍ली, एजेंसियां। कोरोना वायरस की तीसरी संभावित लहर का बच्‍चों पर कितना प्रभाव पड़ेगा इस बारे में अध्‍ययन जारी हैं। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलग अलग दावे भी सामने आ रहे हैं। इसी कड़ी में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) और AIIMS का सर्वेक्षण सामने आया है। समाचार एजेंसी एएनआइ ने इस सर्वेक्षण के हवाले से कहा है कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर का बच्चों पर अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना कम है...

सर्वे में वयस्कों के मुकाबले बच्चों में सार्स-सीओवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट ज्‍यादा थी। यह सर्वेक्षण देश के पांच राज्यों में किया गया था। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक सार्स कोवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट बच्चों में वयस्कों की तुलना में ज्‍यादा पाई गई इसलिए ऐसी संभावना नहीं है कि भविष्य में कोविड-19 का मौजूदा स्वरूप दो साल और इससे अधिक उम्र के बच्चों को ज्‍यादा प्रभावित करेगा।

बता दें कि सीरो-पॉजिटिविटी खून में एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी की मौजूदगी है। अध्ययन के अंतरिम नतीजे मेडआरक्सीव में जारी किए गए हैं। ये नतीजे 4,509 भागीदारों के मध्यावधि विश्लेषण पर आधारित हैं। इनमें दो से 17 साल की आयु समूह के 700 बच्चों को जबकि 18 या इससे अधिक आयु समूह के 3,809 लोगों को शामिल किया गया। ये लोग पांच राज्यों से लिए गए थे। अगले दो से तीन महीनों में और नतीजे आने की संभावना है।

18 साल से कम उम्र के आयु समूह में सीरो मौजूदगी 55.7 फीसद पाई गई जबकि 18 साल से अधिक उम्र के आयु समूह में 63.5 फीसद दर्ज की गई है। अध्ययन में पाया किया कि शहरी स्थानों (दिल्ली में) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीरो पॉजिटिविटी दर कम पाई गई। दक्षिण दिल्ली के शहरी क्षेत्रों की पुनर्वास कॉलोनियों में जहां बहुत भीड़भाड़ वाली आबादी है वहां सीरोप्रवेलेंस 74.7 फीसद थी।

यह अध्ययन पांच चयनित राज्यों में कुल 10 हजार की आबादी के बीच किया जा रहा है। वहीं आंकड़े जुटाने की अवधि 15 मार्च से 15 जून के बीच की थी। अध्‍ययन के लिए दिल्ली शहरी पुनर्वास कॉलोनी, दिल्ली ग्रामीण (दिल्ली-एनसीआर के तहत फरीदाबाद जिले के गांव), भुवनेश्वर ग्रामीण क्षेत्र, गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र और अगरतला ग्रामीण क्षेत्र से नमूने लिए गए थे।

फि‍र भी सरकार तीसरी लहर को लेकर सतर्क हो गई है। सरकार ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा है कि कोरोना के वयस्क रोगियों के उपचार में काम आने वाली आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन, फैविपिराविर जैसी दवाएं और डाक्सीसाइक्लिन व एजिथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं बच्चों के इलाज के लिए मुफीद नहीं हैं। सरकार ने बच्चों में संक्रमण के आंकड़े जमा करने के लिए राष्ट्रीय पंजीकरण की सिफारिश भी की है।

सरकार का कहना है कि बच्चों की उचित देखभाल के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को क्षमता बढ़ाने के काम शुरू कर दिए जाने चाहिए। बच्चों के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित बच्चों के लिए अलग बिस्तरों की व्यवस्था की जानी चाहिए। सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन में यह भी कहा गया है कि कोविड अस्‍पतालों में बच्चों की देखभाल के लिए अलग क्षेत्र बनाया जाना चाहिए जहां बच्चों के साथ उनके माता-पिता को आने जाने की इजाजत हो।

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