जहरीली हवा से दिल्ली-एनसीआर को बचाने की जंग जारी, कई राज्यों ने मिलकर बनाई रणनीति
Stop Pollution बारिश के बाद मौसम में बदलाव के साथ हर साल जहरीली हवाओं का खौफ सभी पर छाने लगता है। इस बार भी इसकी आहट लगते ही केंद्र से लेकर दिल्ली और सभी पड़ोसी राज्य सक्रिय हो गए है। इस जंग को लड़ने की रणनीति बनाई गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों को जहरीली हवाओं से बचाने की जंग वैसे तो साल 2015 से छिड़ी हुई है, इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी आए है, लेकिन समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है। बारिश के बाद मौसम में बदलाव के साथ हर साल जहरीली हवाओं का खौफ सभी पर छाने लगता है। इस बार भी इसकी आहट लगते ही केंद्र से लेकर दिल्ली और उसके सभी पड़ोसी राज्य फिर सक्रिय हो गए है। नए सिरे से इस जंग को लड़ने की रणनीति बनाई गई है। हालांकि इन सारी स्थितियों के बीच जो खास पहलू यह है, कि सभी को इस समस्या की याद सिर्फ इसी सीजन में ही आती है। वैसे भी दिल्ली -एनसीआर की हवा की गुणवत्ता में पिछले कुछ दिनों में तेजी से हो रहा बदलाव चिंताजनक है।
जहरीली हवाओं को लेकर राजनीति भी खूब होती है। हर कोई पंजाब, हरियाणा में जलने वाली पराली को इसके लिए जिम्मेदार बताता है। लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण प्रकाश जावडेकर का कहना है कि इन जहरीली हवाओं के पीछे की वजह सिर्फ पराली नहीं है। इनमें पराली की धुंआ सिर्फ 40 फीसद ही होता है। जबकि बाकी 60 फीसद प्रदूषण स्थानीय वजहों के चलते होता है। इनमें धूल, वाहनों से होने वाला प्रदूषण, निर्माण कार्यो सहित उद्योगों से होने वाला प्रदूषण शामिल होता है। ऐसे में प्रदूषण से बचाव के लिए पराली के जलने की घटनाओं पर रोकथाम के साथ स्थानीय प्रदूषण में भी कमी लाने की जरूरत है।
दिल्ली-एनसीआर को जहरीली हवाओं से बचाने की छिड़ी जंग में पिछले कुछ सालों में काफी काम भी हुआ है। जिसमें पराली को जलने से रोकने के लिए राज्यों को ऐसे मशीनें उपलब्ध कराई गई है, जिसकी मदद से पराली को खेतों में छोटे-छोटे टुकडों में काट कर बदल दिया जाएगा। इससे वह खेतों में ही नष्ट हो जाती है और उसे जलाने की जरूरत नहीं है। केंद्र ने इसके लिए दिल्ली सहित उसके पांचों पड़ोसी राज्यों को करीब 17 सौ करोड़ रुपए की मदद भी उपलब्ध कराई थी। जिसमें पचास फीसद सब्सिड़ी में कोई भी किसान खरीद सकता है।
वहीं यदि सामूहिक रूप से खरीदने में अस्सी फीसद तक सब्सिडी दी गई। इस बीच पराली को खेतों में ही नष्ट करने वाली मशीनें खूब बांटी गई, लेकिन किसानों में पराली जलाना बंद नहीं किया। यह बात जरूर है कि पिछले सालों में इनमें लगातार कमी देखी जा रही है। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर धूल प्रबंधन से लेकर इस सीजन में निर्माण कार्यो पर रोक सहित दूसरे उपाय भी किए गए। साथ ही राज्यों को इसके रोकथाम की जवाबदेही भी दी गई है। इसके साथ ही पराली जलने की घटनाओं और वायु प्रदूषण की गुणवत्ता पर चौबीसों घंटे निगाह रखी जाएगी। राज्यों से भी इसे लेकर हर दिन रिपोर्ट ली जाएगी। साथ ही निगरानी के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(सीपीसीबी)की भी पचास टीमें गठित की गई है।
दिल्ली सहित पड़ोसी राज्यों के साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने बनाई योजना
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जावडेकर ने गुरूवार को दिल्ली और एनसीआर को प्रदूषण से बचाने के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के साथ मिलकर बैठक की। जिसमें आने वाली स्थितियों से निपटने का रोडमैप तैयार किया गया। बैठक में पंजाब जैसे राज्यों ने पैसे की कमी की समस्या भी बताई, जिस पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने बताया कि उन्हें कृषि अनुसंधान के लिए उपलब्ध कराए गए 80 करोड़ की राशि का इसमें इस्तेमाल कर सकते है। केंद्रीय मंत्री ने इस दौरान सभी राज्यों के अपने-अपने क्षेत्र के हॉट स्पाट पर प्रभावी नजर रखने के निर्देश दिए है। फिलहाल दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक 25 क्षेत्र चिन्हित किए गए है। इनमें अकेले 13 दिल्ली के है। इस वर्चुअल बैठक में पंजाब को छोड़कर सभी राज्यों के पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
पराली को नष्ट करने के लिए ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल होगा डीकंपोज
राज्यों के साथ बैठक में पराली को खेत में ही नष्ट करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की पूसा इकाई द्वारा विकसित किए गए डिकंपोज को लेकर भी चर्चा हुई है। जिसमें बताया गया कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित सभी राज्य इस साल इसका ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। इसके जरिए दिल्ली ने आठ सौ हेक्टेयर, पंजाब ने सौ हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश ने दस हजार हेक्टेयर क्षेत्र की पराली को नष्ट करने की योजना बनाई है। साथ ही पूसा को डिकंपोज के लिए आर्डर भी कर दिया है। यह डिकंपोज वैक्टीरिया से तैयार किया जाता है। हालांकि डीकंपोज के जरिए पराली को नष्ट करने की समयावधि को लेकर सवाल उठे है। बताया जा रहा है कि इससे जरिए पराली को नष्ट होने में 25 से 36 दिन तक लगते है, जबकि किसानों के पास धान की फसल कटने के बाद दूसरी फसल की बुआई के लिए इतना समय नहीं होता है।
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