अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: योग के माध्यम से स्वस्थ हुईं निवेदिता अब सैकड़ों लोगों को कर रही हैं प्रशिक्षित

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस योग के प्रति निवेदित भाव हो तो 12 वर्ष से व्हीलचेयर पर कट रही जिंदगी 12 दिन में अपने पांवों पर लौट आती है। नाउम्मीदी से भरे अंधेरे में एक आत्मविश्वास की किरण फूटती है। यह कहानी है योग गुरु निवेदिता जोशी की।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 08:56 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 08:15 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: योग के माध्यम से स्वस्थ हुईं निवेदिता अब सैकड़ों लोगों को कर रही हैं प्रशिक्षित
12 साल से टूटी उम्मीद 12 दिन में जी उठी

मनु त्यागी, नई दिल्ली। 12 साल तक असहाय शरीर। हर कार्य के लिए दूसरों पर आश्रित। व्हीलचेयर पर उदास सी बैठी जिंदगी। लेकिन, रोग असाध्य हो सकता है, हौसला नहीं, आत्मविश्वास नहीं। और जब इन दोनों के साथ ही योग के प्रति निवेदित भाव हो तो 12 वर्ष से व्हीलचेयर पर कट रही जिंदगी 12 दिन में अपने पांवों पर लौट आती है। नाउम्मीदी से भरे अंधेरे में एक आत्मविश्वास की किरण फूटती है। यह कहानी है योग गुरु निवेदिता जोशी की।

15 साल की उम्र में स्लिप डिस्क के कारण व्हील चेयर पर थीं

15 साल की उम्र से स्लिप डिस्क के कष्ट से व्हीलचेयर पर जिंदगी बिता रहीं निवेदिता के जीवन में बदलाव का पड़ाव उस वक्त आया जब 1996 में उनके पिता भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री डाॅ. मुरली मनोहर जोशी एक मित्र की सलाह पर उन्हें दुनिया के प्रख्यात योग गुरु बीकेएस आयंगर के पास ले गए। निवेदिता बताती हैं, चूंकि उस समय निराशाओं से घिरी थी, नौ साल से दुनिया के तमाम बड़े अस्पतालों में इलाज के प्रयास करा चुकी थी। इसलिए यहां भी कुछ होगा, इसकी उम्मीद अंधेरे से भरी थी।

प्रख्यात योग गुरु बीकेएस आयंगर ने दिया नया जीवन

योग गुरु आयंगर ने न कुछ जांचा, न ही एमआरआइ कराई, सिर्फ मेरी गर्दन के हिस्से को देखा। रोग को समझा और 12 साल से शिथिल पड़ी जिंदगी में महज 12 दिन में कंपन ला दिया। उसके बाद तो मेरे आत्मविश्वास के पंख बड़े होते चले गए। महज तीन साल में निवेदिता दूसरों को निरोग करने के संकल्प आगे की राह बना चुकी थीं। वह कहती हैं कि उसी का परिणाम रहा कि दिल्ली में आयंगर योगाक्षेम केंद्र बनाया गया। जहां आज सैकड़ों लोग असाध्य रोगों को साध्य सिद्ध कर रहे हैं, जैसे मैं कर सकी।

योगाक्षेम केंद्र: निवेदिता जोशी ने योग गुरु के सपनों को किया साकार

वह बताती हैं कि गुरु जी मुझे मार्गदर्शन देते थे, योग क्रियाएं, आसन कराते थे, मेडिकल क्लास देते थे। उस समय अंदाजा ही नहीं था कि वह मेरे भीतर एक शिक्षक भी तलाश और तराश रहे थे। एक विज्ञानी के रूप में मुझे आश्चर्य होता था, हैरानी होती थी उनके ज्ञान और अनुभव को देखकर क्योंकि वह महज आठवीं तक शिक्षित थे। जिस तरह से वह योग की शिक्षा देते थे, आज विज्ञान भी उसके महत्व को समझता है। कथक में निपुण और 'योगिक स्पर्श' किताब लिख चुकी माइक्रोबायोलाजिस्ट निवेदिता कहती हैं, 'मैं पूरी तरह स्वस्थ हो गई। तकरीबन पांच साल बीत चुके थे, गुरु जी एक दिन कहते हैं कि बरसों से मेरा एक सपना था कि योग का एक बड़ा केंद्र बने। जिसकी परिकल्पना उन्होंने योगाक्षेम केंद्र के रूप में की हुई थी। मैं बीमारी से तो जीत चुकी थी, लेकिन शायद गुरु की कसौटी पर एक शिक्षिका के रूप में खरी उतरने में खुद को निपुण नहीं पा रही थी, मैंने इन्कार किया, लेकिन गुरु के विश्वास ने मेरे भीतर योग की ज्योति को प्रज्ज्वलित किया। और आखिरी सांस तक भी मुझे सिखाने, बताने और आगे बढ़ाने का अपना संकल्प उन्होंने भी पूरा किया।

सेहत गाढ़ी मेहनत से बनती है

आज कोरोना संक्रमण काल में भी हजारों लोग योग की ओर चुंबकीय आकर्षण की भांति खिंचे आ रहे हैं। लोगों ने योग को चितभाव से स्पर्श किया है, इसकी अंदरूनी खुशी को महसूस किया है। दरअसल सेहत जिस गाढ़ी मेहनत से बनाई जाती है उसके लिए जिस गहराई में उतरना होता है वह योग से ही संभव है।

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