कोरोना के कारण नक्सलियों को मिला मौका, आदिवासी बच्चों को कर रहे टारगेट

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिलों में नक्सलियों की गतिविधियां बढ़ी हैं। नक्सली गतिविधियों के बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि जंगल से जुड़े क्षेत्रों में कोरोना के चलते आवाजाही बंद रही और नक्सलियों ने इसे अपनी गलत विचारधारा के विस्तार का अवसर माना।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 09:37 PM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 09:37 PM (IST)
कोरोना के कारण नक्सलियों को मिला मौका, आदिवासी बच्चों को कर रहे टारगेट
नक्सली आदिवासी समुदाय के बच्चों से संपर्क बढ़ा रहे हैं।

 भोपाल, मोहम्मद रफीक। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के बच्चों को नक्सली अपनी गलत विचारधारा से प्रभावित कर रहे हैं। राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों से सूचनाएं आ रही हैं कि नक्सली इस समुदाय के बच्चों से संपर्क बढ़ा रहे हैं। नक्सली दलम (एक इकाई) को अपने विस्तार का यह अवसर कोरोना के कारण मिला है।

स्कूल बंद होने से लंबे समय से मूल निवास स्थानों पर हैं बच्चे

आदिवासी क्षेत्रों के बच्चे शिक्षा के लिए आमतौर पर छात्रावासों में रहते हैं और मई-जून में अवकाश के चलते घरों में आते थे। इसी दौरान अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए नक्सली सक्रिय होते थे, लेकिन इस बार कोरोना के कारण बच्चे अपने-अपने निवास स्थानों पर ही हैं। ऐसे में नक्सलियों को मौका मिल गया है और वे किसी न किसी बहाने इन बच्चों से संपर्क बढ़ा रहे हैं।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिलों में नक्सलियों की गतिविधियां बढ़ी हैं। मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला व डिंडौरी में नक्सली गतिविधियों के बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि जंगल से जुड़े क्षेत्रों में कोरोना के चलते आवाजाही बंद रही और नक्सलियों ने इसे अपनी गलत विचारधारा के विस्तार का अवसर माना।

समाज के लिए काम करने के नाम पर किया जा रहा है संपर्क

आदिवासी समुदाय के ऐसे बच्चे जो शहरी क्षेत्रों में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वे स्कूल बंद होने के कारण दूरस्थ अंचलों में रह रहे हैं। उनसे संपर्क बढ़ाने के लिए उन लोगों को जिम्मा सौंपा गया है, जो समाजसेवा के नाम पर नक्सली नेटवर्क के लिए काम करते हैं। इन बच्चों को आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए किए जाने वाले कार्यो का प्रलोभन दिया जा रहा है। इनके सामने समाज के साथ वर्षों से अन्याय किए जाने जैसे गलत तथ्य रखे जा रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि नक्सली गतिविधियां अब लेवी (अवैध वसूली) तक सीमित हो गई हैं। शिक्षा और जनसंचार के साधनों का लाभ मिलने से आदिवासी समुदाय नक्सलियों से संपर्क खत्म कर रहा है। ऐसे में अर्बन (शहरी) नक्सली समाजसेवा के नाम पर बच्चों से उनकी शिक्षा और रोजगार को लेकर संपर्क साधते हैं। संपर्क बढ़ने पर उन पर अपनी विचारधारा थोपते हैं। हालांकि, बालाघाट के पुलिस अधीक्षक अभिषेक तिवारी कहते हैं कि शासन की योजनाओं के कारण आदिवासी समुदाय नक्सलियों से दूर है। आदिवासी समुदाय समझ चुका है कि उनकी सामग्री ले जाने वाले नक्सली किस काम के लिए अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

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