राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट मे एक याचिका दायर कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान कानून को चुनौती दी गई है और आबादी के हिसाब से राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की गई है।

By TaniskEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 01:06 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 01:06 PM (IST)
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मे एक याचिका दाखिल हुई है जिसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान कानून को चुनौती देते हुए आबादी के हिसाब से राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि कई राज्यों में हिन्दू,बहाई और यहूदी वास्तविक अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हे वहां अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पुराने टीएमएपाई के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि उसमें कोर्ट ने राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की बात कही थी जिसका आजतक पालन नहीं हुआ। 

टीएमएपाई फैसले में कानून का एक प्रश्न यही था कि अनुच्छेद 30 के मुताबिक धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक राज्यवार होंगे कि राष्ट्रीय स्तर पर। इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट की 11 सस्यीय संविधान पीठ ने तय किया था कि भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक राज्यवार होने चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना है कि अभी भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होती है लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यको की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर ही की जाती है। सुप्रीम कोर्ट मे यह याचिका भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल की है। 

योग कानून 2004 धारा 2 (एफ) को चुनौती दी गई

याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून 2004 धारा 2 (एफ) को चुनौती दी गई है। यह कानून 6 जनवरी 2005 को लागू हुआ। इस कानून के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग बना। इसके तहत अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त समुदायों को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार है। इसी कानून के तहत सरकार इन संस्थानों को वजीफा और अन्य सुविधाएं देती है।

नौ राज्यों में हिन्दू, यहूदी और बहाई वास्तविक अल्पसंख्यक

कानून की धारा 2 (एफ) में केंद्र सरकार को अल्पसंख्यक तय करने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत केंद्र मुस्लिम इसाई पारसी सिख बौद्ध को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है जैन को 30 जनवरी 2014 में अल्पसंख्यक का दर्ज दिया गया है। याचिका मे कहा गया है कि नौ राज्यों लद्दाख, कश्मीर, लक्ष्यदीप, मेघालय मणिपुर मिजोरम, अरुणाचल, आदि में हिन्दू, यहूदी और बहाई वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, लेकिन इन्हें अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान खोलने और प्रबंधन करने का अधिकार नहीं है। कहा गया है कि लक्ष्यदीप में मुस्लिम 96.58 और कश्मीर में 96 फीसद, लद्दाख में 44 फीसद, असम 34.20 फीसद, पश्चिम बंगाल में 27.5 फीसद केरल में 26.6 फीसद उत्तर प्रदेश में 19.5 और बिहार में 18 फीसद है, और वहां उन्हें अपनी पसंद के स्कूल खोलने और उनके प्रबंधन का अधिकार है।

पसंद का शैक्षणिक संस्थान खोलने और प्रबंधन का अधिकार

इसी तरह इसाई नागालैंड में 88.10 फीसद, मिजोरम में 87.16 फीसद, मेघालय में 74.59 फीसद, और अरुणाचल प्रदेश, गोवा केरल मणिपुर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी इसाइयों की संख्या अच्छी खासी है। फिर भी उन्हें अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान खोलने और प्रबंधन का अधिकार है। सिख पंजाब में बहुसंख्यक हैं तथा दिल्ली चंडीगढ़ और हरियाणा में भी पयार्प्त संख्या में हैं फिर भी उन्हें अपने स्कूल चलाने का अधिकार है। बौद्ध लद्धाख में बहुतायत में हैं उन्हें भी अपने स्कूल चलाने का अधिकार है।

कानून संविधान के अनुच्छेद 14,15,21, 29 और 30 के खिलाफ

याचिकाकर्ता का कहना है कि हिन्दू लद्दाख में मात्र एक फीसद, मिजोरम में 2.75, लक्ष्यद्वीप में 2.77 कश्मीर में 4 फीसद, नागालैंड में 8.74 मेघालय में 11.52 अरुणाचल में 29 फीसद पंजाब में 38.4 और मणिपुर में 41.2 फीसद हैं फिर भी हिन्दुओं को अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान खोलने और प्रबंधन का अधिकार नहीं है। जबकि 2002 में सुप्रीम कोर्ट की 11 सदस्यीय संविधान पीठ ने टीएमएपाई केस में स्पष्ट कर दिया था कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक  की पहचान राज्य के स्तर पर होगी न कि राष्ट्रीय स्तर पर। याचिका में कहा गया है कि बहाई धर्म को मानने वाले राष्ट्रीय स्तर पर भी 0.1 फीसद और यहूदी 0.2 फीसद हैं फिर भी इन्हें अल्पसंख्यक  का दर्जा नहीं दिया गया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक  संस्थान आयोग कानून संविधान के अनुच्छेद 14,15,21, 29 और 30 के खिलाफ है।

याचिका में कुल तीन मांगे रखी गई

याचिका में कुल तीन मांगे रखी गई हैं। पहली मांग राष्ट्रीय अल्पसंख्यक  शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून 2004 की धारा 2 (एफ) रद की जाए क्योंकि इसके जरिए केंद्र सरकार को मनमाने तरीके से अल्पसंख्यक घोषित करने की असीमित शक्ति मिलती है। दूसरी वैकल्पिक मांग है कि अगर कोर्ट यह धारा रद नहीं करता तो यहूदी बहाई और हिन्दुओं को लद्धाख मिजोरम लक्ष्यद्वीप कश्मीर नागालैंड मेघालय अरुणाचल प्रदेश पंजाब और मणिपुर में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान  खोलने और चलाने का अधिकार दिया जाए। तीसरी मांग है कि या फिर केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की गाइडलाइन जारी करे, जिससे कि जो समुदाय धार्मिक और भाषाई रूप से संख्या में नगण्य हैं और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावहीन हैं उन्हें अपनी पसंद का  स्कूल  स्थापित  करने और चलाने का अधिकार मिलना  सुनिश्चत हो।

18 साल बाद फैसले के मुताबिक राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान नहीं की गई

याचिका में कहा गया है कि 18 साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 2002 के टीएमएपाई फैसले के मुताबिक राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान नहीं की गई। कहा है कि संविधान की समय के अनुसार व्याख्या होनी चाहिए और प्रत्येक राज्य के प्रत्येक समुदाय की सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक स्थिति को देखते हुए अनुच्छेद 30 का संरक्षण मिलना चाहिए। यह अनुच्छेद  धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के स्कूल खोलने और चलाने की आजादी देता है।

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