अब तक किसी कानून का हिस्‍सा नहीं रही है MSP प्रणाली, पंजाब को मिला है इसका सबसे अधिक लाभ

नए कृषि कानून को लेकर किसानों विरोध लगातार जारी है। इस विरोध में सबसे आगे पंजाब के किसान है। हालांकि पंजाब के किसानों को ही एमएसपी का सबसे अधिक लाभ भी मिला है। इसके बाद भी किसान इसको लेकर आशंकित हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 08:17 AM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 08:17 AM (IST)
अब तक किसी कानून का हिस्‍सा नहीं रही है MSP प्रणाली, पंजाब को मिला है इसका सबसे अधिक लाभ
खत्‍म नहीं हो रहा है किसानों का विराध प्रदर्शन

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। कृषि कानूनों के विरोध में सड़क पर उतरे किसान जो मांगें कर रहे हैं, उनमें एमएसपी को कानूनी जामा पहनाना भी शामिल है। वे आशंका जता रहे हैं कि ऐसा नहीं हुआ तो न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी प्रणाली खत्म हो जाएगी। जबकि, हकीकत यह है कि एमएसपी प्रणाली अब तक किसी कानून का हिस्सा रही ही नहीं। पंजाब, जहां विरोध का स्वर मुखर है, उसे ही इस साल सबसे ज्यादा एमएसपी का लाभ मिला है। विडंबना ही है कि जिस एमएसपी के लिए किसान आज सड़कों पर हैं, उसका लाभ सिर्फ छह फीसद बड़े किसान ही ले पाते है...

सीएसीपी की सिफारिश पर तय होता है न्यूनतम समर्थन मूल्य

केंद्र सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों पर फिलहाल 23 प्रकार की जिंसों के लिए एमएसपी तय करती है। इनमें 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन व 4 नकदी फसलें शामिल हैं। दरअसल, सीएसीपी ही संसद से मान्यता प्राप्त वैधानिक निकाय नहीं है। वर्ष 1965 में हरित क्रांति के समय एमएसपीकी घोषणा की गई थी। वर्ष 1966-67 में गेहूं कीखरीद के साथ इसकी शुरुआत हुई। हालांकि, सीएसीपी ने वर्ष 2018-19 में खरीफ सीजन के दौरान मूल्य नीति रिपोर्ट में कानून बनाने का सुझाव दिया था।

मंडियों के खत्म होने की आशंका है किसान आंदोलन का आधार

किसानों को लगता है कि नए कृषि कानूनों के तहत मंडियों के बाहर फसल की खरीद-बिक्री होगी और उस पर टैक्स नहीं लगेगा। मंडियों में फिलहाल तीन फीसद आरडीएफ, तीन फीसद मंडी फीस, ढाई फीसद आढ़त लगती है। जीएसटी लागू होने से पहले चार फीसद परचेज टैक्स भी था, जो अब खत्म हो गया है। साढ़े आठ फीसद टैक्स को बचाने के लिए जब निजी क्षेत्र बाहर खरीद करेगा तो मंडियां कर संग्रह के अभाव में खत्म हो जाएंगी। बेशक एमएसपी को पहले कानूनी जामा नहीं पहनाया गया, लेकिन नए कानून के प्रावधानों नेकिसानों के मन में संदेह पैदा करदिया है कि सरकार धीरे-धीरे गेहूं व धान की खरीद भी बंद कर देगी।

हालांकि, केंद्र सरकार यह आश्वस्त कर रही है कि खरीद बंद नहीं होगी, लेकिन किसानों को लगता है कि शांता कुमार कमेटी की जिस रिपोर्ट के आधार पर ये कानून बनेहैं उनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली खत्म करके एफसीआई को भंग करने की सिफारिशें भी शामिल हैं।ऐसा हुआ तो मंडियों में खरीद भी बंद हो जाएगी। प्रदेश में मंडी प्रणाली पूरे देश में सबसे कारगर है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से भी धान पंजाब की मंडियों में बिकने के लिए आताहै। इस सिस्टम के कारण ही पंजाब ने इस बार धान खरीद में रिकार्ड कायम किया है। अब तक 2.04 करोड़ टन अनाज की खरीद हो चुकी है, जबकि पूरे देश में मात्र तीन करोड़ टन धान की खरीद हुई है।

राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की बात हो तो हरियाणा पहले पायदान पर खड़ा नजर आताहै। प्रदेश सरकार की ओर से मेरी फसल-मेरा ब्योरा वेब पोर्टल बनाया गया है जिस पर पंजीकृत किसानों का एक-एक दाना खरीदा जाता है। प्रदेश में कुल छह फसलें गेहूं, धान, बाजरा, सरसों, मूंग और कपास एमएसपी पर खरीदी जा रही है। हालांकि प्रदेश सरकार मंडियों में उन्हीं किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदती है, जिन्होंने पोर्टल पर जमीन और फसल की मात्रा का पंजीयन कराया है।

इनके बाद बाहरी राज्यों के किसानों को वेब पोर्टल पर अपनी फसल बेचने के लिए पंजीकरण कराने का विकल्प खुला है। हरियाणा के किसानों की सारी फसल खरीदने के बाद ही दूसरे राज्यों के पंजीकृत किसानों की फसल खरीदी जाती है। किसानों को डर है कि अगर निजी क्षेत्र को खरीद की छूट मिली तो धीरे-धीरे मंडियां खत्म हो जाएंगी और निजी कंपनियां मनमाने दाम पर फसलें खरीदेंगी। यही वजह है कि किसान एमएसपी पर ऐसा कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं देने वालों को सजा हो

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