Farmers Protest: जानें कौन हैं शिवकुमार शर्मा 'कक्का जी', जो MP में किसान आंदोलनों का बड़ा चेहरा
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में सड़क पर उतरे किसानों का नेतृत्व यूं तो खुद किसान ही कर रहे हैं लेकिन इसमें एक चेहरा मध्य प्रदेश के जाने-माने किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्का जी का है।
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में सड़क पर उतरे किसानों का नेतृत्व यूं तो खुद किसान ही कर रहे हैं, लेकिन इसमें एक चेहरा मध्य प्रदेश के जाने-माने किसान नेता शिवकुमार शर्मा 'कक्का जी' का है। कुछ वर्षो पहले तक कक्का जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ से जुड़े थे लेकिन मध्य प्रदेश की तत्कालीन शिवराज सरकार के खिलाफ चलकर उन्होंने रास्ता बदला और कुछ समय बाद उन्होंने नए संगठन राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ का गठन किया। वे कई मौकों पर शिवराज सिंह चौहान का सार्वजनिक रूप से विरोध भी कर चुके हैं।
2010 में हुए थे चर्चित
कक्का जी ने किसान हित में काम तो बहुत पहले ही शुरू कर दिए थे, लेकिन उन्हें किसान नेता के रूप में पहली बार पहचान मिली 20 दिसंबर 2010 को भोपाल में हुए किसान आंदोलन से। दरअसल, इस आंदोलन में किसानों ने न धरना-प्रदर्शन किया, न रैली निकाली, बल्कि करीब 15 हजार किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचे और मुख्यमंत्री निवास सहित सभी वीआइपी क्षेत्रों को जाम कर दिया। पुलिस-प्रशासन को इसकी भनक भी नहीं लगी और देखते ही देखते शहर एक तरह से बंधक हो गया। 85 मांगों को लेकर यह आंदोलन तीन दिन तक चलता रहा। तब प्रदेश में भाजपा सरकार थी और कक्का जी आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ के मध्य प्रदेश के अध्यक्ष थे। मध्य प्रदेश के मंदसौर में जून 2017 में हुए बड़े किसान आंदोलन में भी कक्का जी की अहम भूमिका मानी जाती है।
अब तक क्या- क्या किया
कक्का जी होशंगाबाद जिले के बनखेड़ी के पास ग्राम मछेरा खुर्द में खेती करते हैं। उनका जन्म 28 मई 1952 को हुआ था। उन्होंने जबलपुर की रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से स्नातक किया है। कक्का जी जेपी आंदोलन और आपातकाल के दौरान भी कई बार जेल गए। उन्होंने 1981 में मध्य प्रदेश सरकार के विधि बोर्ड में सलाहकार के रूप में काम किया, लेकिन तत्कालीन मध्य प्रदेश के बस्तर में केंद्र सरकार के कानून 70 (ख) के तहत आदिवासियों की जमीन मुक्त करवाने के दौरान वे कई रसूखदारों के निशाने पर आ गए, जिसके बाद उनका तबादला भोपाल कर दिया गया। कुछ समय नौकरी करने के बाद वे किसान आंदोलन में कूद पड़े।